12 घंटे के इस ऑपरेशन में ख़ून की नलियों की सिलाई के ज़रिए मूत्र और सेक्स प्रणाली को फिर से स्थापित किया जाएगा।

इससे पहले दक्षिण अफ़्रीका में पिछले साल पहला सफल लिंग प्रतिरोपण किया गया था।

जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की टीम अपने ट्रायल के तहत पहले 60 सेवानिवृत्त सैनिकों का ऑपरेशन करेगी।

इन्हें परिवार की इजाज़त से दान में मिले मृत व्यक्ति का लिंग लगाया जाएगा।

टीम के मुताबिक़ इसमें संवेदना का अहसास छह से 12 महीनों में ही महसूस होगा। अगर ऑपरेशन सफल रहा तो ये लोग पिता बन सकेंगे।

अमरीका में पूर्व सैनिकों का लिंग प्रतिरोपण

दूसरे बड़े प्रतिरोपण ऑपरेशनों की तरह इसमें भी ख़तरे हैं जैसे संक्रमण या ऑपरेशन के दौरान ख़ून का बहाव। इसके अलावा जीवन भर ली जाने वाली दवाओं के प्रभाव का भी आकलन किया जाएगा।

मरीज़ों की मानसिक स्थिति को भी परखा जाएगा कि इस सर्जरी की वजह का उन पर दुष्प्रभाव तो नहीं हुआ है।

हाथ और चेहरे के जटिल प्रतिरोपणों के दौरान देखा गया है कि मरीज़ों को उन्हें अपना मानने में कठिनाई होती रही है।

जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में क्लीनिकल रिसर्च मैनेजर कैरिसा कूनी कहती हैं कि उनकी टीम ऐसे ऑपरेशनों और इनसे जुड़े सवालों को लेकर सालों से तैयारी कर रही है।

उन्होंने बताया, "असल में यह मरीज़ों की ज़िंदगी को पूरी तरह बदल सकता है और उन्हें समाज में फिर उनकी जगह दिला सकता है।"

टीम इन पूर्व सैनिकों से पांच साल तक संपर्क में रहेगी और वैज्ञानिक इस दौरान सुबूत इकट्ठे करेंगे कि ऐसे प्रतिरोपणों को बड़े पैमाने पर किया जाए या नहीं।

नौजवान सैनिकों पर हुए ताज़ा शोध में पता चला है कि लड़ाई के दौरान सात फ़ीसदी को जननांगों में चोटें आई हैं। इनमें से कई को विस्फोट में चोटें लगीं।

हालांकि बचाव उपकरण मौजूद हैं लेकिन शोधकर्ता कहते हैं कि कई उन्हें नहीं पहनते क्योंकि इससे उनके काम में बाधा पैदा होती है।

इससे पहले केवल दो लिंग प्रतिरोपण हुए हैं। एक चीन में 2006 में हुआ था। पता चला है कि ऑपरेशन तो ठीक हुआ था लेकिन बाद में लिंग नाकाम रहा।

दूसरा ऑपरेशन दक्षिण अफ़्रीका में हुआ जिसमें ख़तने के बाद एक नौजवान का सिर्फ़ एक सेंटीमीटर लिंग बचा था। तब मेडिकल टीम ने इस ऑपरेशन की नैतिकता को लेकर काफ़ी चर्चा की थी।

अब ख़बरें हैं कि यह प्रतिरोपण सफल रहा और उस व्यक्ति के एक बच्चा भी है।

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