अदालत ने ये सजा लड़की को विवाह-पूर्व यौन संबंध स्थापित करने के आरोप में सुनाई है. लड़की ने पिछले साल आरोप लगाया था कि उसके सौतेले पिता ने उसका यौन शोषण किया और उनके बच्चे को मार डाला था.

अभियोजकों का कहना था कि इस आरोप से बलात्कार का मामला साबित नहीं होता है. मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस सजा की आलोचना की है और इससे “क्रूर, अपमानजनक और अमानवीय” बताया है. मालदीव सरकार का भी कहना है कि वो इस फैसले से सहमत नहीं है और कानून में बदलाव की जरूरत है.

नजरबंद
बाल न्यायालय की प्रवक्ता ज़ैमा नशीद का कहना है कि इस लड़की को आठ महीने तक बच्चों के एक घर में नजरबंद रहने का आदेश दिया गया है. प्रवक्ता ने इस सजा की पैरवी करते हुए कहा कि लड़की ने अपनी इच्छा से कानून का उल्लंघन किया था.

अधिकारियों का कहना है कि लड़की को कोड़े तब लगाए जाएंगे जब वो 18 साल की हो जाएगी, या फिर यदि वो इसके लिए पहले तैयार हो जाती है. करीब चार लाख की आबादी वाले द्वीप समूहों के देश मालदीव में कानूनी तौर पर शरीया के साथ-साथ अंग्रेजी कानून से भी प्रभावित है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के शोधकर्ता अहमद फैज़ का कहना है कि मारने-पीटने की सज़ा देना बहुत क्रूरता है और सरकार को इसे खत्म कर देना चाहिए.

उनका कहना था, “हमें इस बात पर बेहद आश्चर्य है कि सरकार इस कानून को खत्म करने के लिए कुछ नहीं कर रही है. कानून की किताबों से ऐसी सजाओं को पूरी तरह से हटा देना चाहिए.” मालदीव में ये इस तरह का अकेला मामला नहीं है. ऐसे मामले इससे पहले भी प्रकाश में आते रहे हैं.

 

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