कैसे बनाई जाती है ये मिठाई
इस मिठाई को बनाने के लिए सबसे पहले कच्चे दूध को बड़े-बड़े कड़ाहों में खौलाया जाता है। फिर इसके बाद रात में उस खौले दूध को खुले आसमान के नीचे रख दिया जाता है। पूरी रात ओस पडऩे की वजह से इसमें झाग पैदा होता है। सुबह दूध को मथनी से मथा जाता है। फिर इसकेबाद छोटी इलायची, केसर एवं मेवा डालकर पुन: मथा जाता है। इसकी विशेषता यह है कि इसे कुल्हड़ में डालकर बेचा जाता है।
आयुर्वेदिक दृष्टि से भी स्वास्थ्यवर्धक है यह मिठाई
ओस की बूंदों से तैयार होने वाली मलाई आयुर्वेदिक दृष्टि से अत्यंत लाभकारी होती है। क्योंकि ओस की बूंदों में प्राकृतिक मिनरल पाए जाते हैं जो की त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं। ये चेहरे की झुर्रियों को रोकते हैं। बादाम, केसर शरीर को शक्ति प्रदान करता हैं। केसर से चेहरे की सुंदरता बढ़ती है। इसके अलावा नेत्र ज्योति के लिए वरदान मानी जाती है यह मिठाई।
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इसके दीवाने हैं पर्यटक
यह रामबाण मिठाई सर्दियों में केवल 3 महीने ही मिलती है। जितनी अधिक ओस पड़ती है उतनी ही इस मिठाई की गुणवत्ता बढ़ती है। इसकी बिक्री सुबह से प्रारम्भ होती है और 12 बजे तक सारा स्टॉक खत्म हो जाता है। उसके बाद मलाई खाने के लिए अगले दिन का ही इंतजार करना पड़ता है। यह मिठाई सबसे अधिक गंगा के किनारे बसे मोहल्लों में ही बिकती है। यहां के स्थानीय निवासी ही नही बल्कि देश-विदेश से आने वाले पर्यटक भी इसके बहुत शौकीन हैं।
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