मुंबई (एएनआई / न्यूजवायर)। उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव के किसान का बेटा कैसे अपने राज्य का सर्वोच्च नेता बनता है। इसी कहानी को लेकर आये हैं निर्देशक सुवेंदु घोष और निर्माता मीना सेठी मंडल अपनी फिल्म में जिसमें मुलायम सिंह यादव के लीड रोल में अमित सेठी नजर आयेंगे। उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के एक छोटे से गांव सैफई में एक किसान के बेटे ने अपने राज्य का सर्वोच्च नेता बनने के लिए कैसे ऑड सिचुएशन में स्ट्रगल किया और कैसे वो आगे बढ़ा इस सफर की झलक टीजर में नजर आती है।

पिता बनाना चाहते थे पहलवान

एक बेहद हंबल बैकग्राउंड को बिलांग करने वाले मुलायम सिंह के पिता चाहते थे कि वह एक पहलवान बनें, लेकिन उनके इरादे कुछ और थे। इसी दौरान कुश्ती के एक कंप्टीशन में, एक लोकल पॉलिटीशियन नाथूराम ने यंग मुलायम को देखा जिसने अपने से दोगुने आकार के पहलवान को धूल चटा दी।उसके दबंग अंदाज को देश कर नाथूराम ने उन्हें राजनीति में एंट्री करने का पहला मौका दिया।

लोहिया से मुलाकात

नाथूराम ने उन्हें उस दौर के देश के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक राम मनोहर लोहिया से मिलवाया, और करहल में एक टीचर की जॉब भी दिलवाने में मदद की लेकिन उनका मुख्य ध्यान राजनीति में ही रहा। लोहिया के लोगों को सामाजिक न्याय दिलवाने के मुद्दों और समानता पर दृढ़ विश्वास ने यादव को उनका सर्थक बना दिया। उन सिद्धांतों के आधार पर उनके कामों से इंस्पायर हो कर मुलायम सिंह ने अपने पॉलिटिकल करियर आगे बढ़ाने का फैसला किया।

राजनीति की समझ

लोहिया के जीवन में आने के बाद वे भारत के पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह से मिले जिनसे उन्होंने राजनीति की बारीकियां सीखीं और जिसके बाद मुलायम सिंह यादव यूपी की राजनीति में एक बड़ा नाम बन गए। वे चौधरी चरण सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी भीमाने जाते थे । नाथूराम, राम मनोहर लोहिया और चौधरी चरण सिंह 3 ऐसे स्तंभ थे जिन्होंने मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक ज्ञान को तैयार किया और उन्हें आकार दिया।

जीवन की संघर्षों से भरी कहानी

ये फिल्म एक स्कूल में शिक्षक से लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने तक, एक ऐसे आदमी की यात्रा है जो आपातकाल के समय 19 महीने तक जेल में रहा था। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसे उस दिन गोली मारी गई थी जब उसने अपना पहला चुनाव जीता था। यह एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जिसने दिग्गजों के बीच स्ट्रगल करते हुए अपना रास्ता बनाया। जब पूंजीवाद और नौकरशाही राजनीति के मुख्य स्तंभ थे, तो उन्होंने आकर पूरा सिनारियो चेंज कर दिया। उन्होंने बड़े राजनीतिक दलों और बड़े नामों के खेल को बदल कर रख दिया।

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