काबिलियत का बजाया डंका
4 साल पहले वानखेड़े स्टेडियम में वर्ल्डकप की ट्रॉफी अपने हाथों में उठाकर महेंद्र सिंह धोनी ने करोड़ो इंडियन फैंस को झूमने पर मजबूर कर दिया था. वह दिन ऐसा था, जब 28 साल बाद इंडियन टीम एक बार फिर वर्ल्ड चैंपियन बनकर सामने आई. यह सिर्फ धोनी का मैजिक ही था, जिन्होंने फाइनल मैच में विजयी छक्का लगाकर अपनी काबिलियत का डंका बजाया. अगर पूरी मेहनत से कोई काम किया जाये तो उसमें सफलता मिलना लगभग तय है. धोनी ने इस बात को अच्छी तरह से साबित किया, कभी खड़गपुर रेलवे स्टेशन पर टिकट कलेक्टर की नौकरी करने वाले धोनी आज क्रिकेट के सम्राट कहे जाते हैं. पान सिंह और देवकी देवी के बेटे धोनी मिडिलक्लॉस फैमिली में रहते थे. इसके चलते उन्हें अपने क्रिकेट करियर को आगे बढ़ाने के लिये नौकरी करनी पड़ी. पत्रकार और लेखक विश्वदीप घोष ने अपनी किताब 'MSD, द मैन द लीडर' में रांची के इस खिलाड़ी की भारत के सबसे सफल कप्तान बनने के सफर का जिक्र किया है.
तो टिकट कलेक्टर बन गये धोनी
धोनी के टीटी बनने के पीछे क्रिकेट का अहम रोल है. बिहार ट्राफी में अंडर-19 क्रिकेट खेल चुके धोनी नौकरी की खातिर पश्चिम बंगाल के खड़गपुर चले गये. दरअसल दक्षिण पूर्वेत्तर रेलवे (SER) के तत्कालीन मंडल रेल प्रबंधक और क्रिकेट प्रेमी रहे स्वर्गीय अनिमेश गांगुली को तब ऐसे ट्रेन टिकट निरीक्षक की जरूरत थी, जो क्रिकेटर हो और SER की टीम से भी खेल सके. इसके बाद धोनी को यह सुनहरा अवसर मिला और उन्होंने न सिर्फ टीटीई की परीक्षा उत्तीर्ण की बल्कि वह SER टीम का अहम हिस्सा भी बन गये. यह कल्पना करना मुश्किल है कि कभी भारतीय कप्तान ने टिकटों की जांच की होगी लेकिन किताब के अनुसार यह विकेटकीपर बल्लेबाज न सिर्फ पूरी ईमानदारी से अपना काम करता था बल्कि उन्होंने टेनिस बाल क्रिकेट खेलकर खड़गपुर में अपनी पहचान भी बना दी थी.
अमिताभ की मूवी नहीं देखना चाहते थे धोनी
आपको बताते चलें कि, स्टेशन में कई घंटों काम करने के बाद धोनी टेनिस बाल क्रिकेट खेला करते थे जिसे इस क्षेत्र में 'खेप' कहा जाता है. वहीं धोनी ने कुछ बड़े क्लबों से खेलना भी शुरु कर दिया. बताया जाता है कि, वह प्रत्येक मैच के लिये 2000 रूपये लिया करते थे लेकिन लेखक का कहना है कि यह स्टार खिलाड़ी आयोजकों के साथ सौदेबाजी नहीं करता था. आमतौर पर धोनी शांत और एकाग्रचित रहते थे, यहां तक कि क्रिकेट इतिहास में उनको कैप्टन कूल भी कहा जाता है. लेकिन किताब में धोनी के बारे ऐसा वाक्या लिखा गया है जिस पर यकीन होना मुश्किल है. दरअसल एक बार टीवी चैनल बदलने को लेकर धोनी की अपने साथी और रूममेट दीपक के साथ झगड़ा हो गया था. झगड़ा इतना बढ़ गया था कि टेलीविजन को नुकसान पहुंच गया. तब उस दौरान धोनी को नौकरी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले और उस कमरे में रहने वाले उनके एक अन्य साथी सत्यप्रकाश कृष्णा ने बीच बचाव किया. यह पूरा मामला शारजाह कप मैच देखने के लिये हुआ था. धोनी वह मैच देखना चाह रहे थे जबकि दीपक अमिताभ बच्चन की 'मुकद्दर का सिकंदर' देखने में व्यस्त था.
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