Mahavir Jayanti 2020 : महावीर को वर्धमान नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 599 ईसा पूर्व भारत के क्षत्रिय कुण्ड ग्राम में हुआ था और उनकी मृत्यु 527 ईसा पूर्व में हुई। जैन धर्म में दो मुख्य संप्रदाय होते हैं एक श्वेतांबर और दूसरा दिगंबर। दोनों संप्रदायों के अनुसार भगवान महावीर ने राजसी ठाटबाट को ठुकराकर एक भिक्षु और तपस्वी का जीवन जिया। उन्होंने दुनिया को अपने तप से मिले ज्ञान के बारे में सिखाया। उन्होंने जग को सिखाया कि किसी भी प्रकार की परिस्थिति हो आपा नहीं खोना चाहिए, सदैव अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए। उन्होंने संसार को त्याग का पाठ पढ़ाया।
आरंभिक जीवन व सांसारिक मोह माया का त्याग
भगवान महावीर का जन्म क्षत्रिय कुंडग्राम में 599 ईसा पूर्व में पिता सिद्धार्थ व माता त्रिशला के यहां हुआ। उनके पिता शासक थे व उनका बचपन राजसी वैभव के बीच बीता। श्वेतांबर संघ की मान्यता के अनुसार उन्होंने विवाह व एक बेटी के जन्म के बाद 30 वर्ष की आयु में संसार का त्याग कर दिया और एक भिक्षु बन गए। वहीं दिगंबर पंथ की मान्यता है कि वे आजीवन ब्रह्मचारी ही रहे। भिक्षु बनकर उन्होंने अनेक कष्ट सहे व अहिंसा के सिद्धांत को विकसित किया। यह कहा जाता है कि 12 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद उन्होंने कैवल्य को प्राप्त किया, जिसे धारणा का उच्चतम स्तर माना जाता है।
धार्मिक जीवन के नियम
महावीर को जैन धर्म का संस्थापक माना जा सकता है। परंपरा के अनुसार, उन्होंने 7वीं शताब्दी के शिक्षक 23 वें तीर्थंकर, पार्श्वनाथ, (वाराणसी, उत्तर प्रदेश) से की शिक्षाओं पर अपने सिद्धांतों को आधारित किया, उन्होंने पूर्व के सिद्धांतों के साथ-साथ जैन धर्म की आध्यात्मिक, पौराणिक और ब्रह्मांड संबंधी मान्यताओं को व्यवस्थित किया। उन्होंने जैन भिक्षुओं, भिक्षुणियों और धर्मावलंबियों के लिए धार्मिक जीवन के नियम भी स्थापित किए।
पांच प्रतिज्ञाएं
भगवान महावीर ने सिखाया कि लोग अपनी आत्मा को अत्यधिक संन्यासी का जीवन जीने और सभी जीवित प्राणियों के प्रति अहिंसा का अभ्यास करके संदूषण से बचा सकते हैं। अहिंसा की इस वकालत ने उनके अनुयायियों को प्रेरित किया, जो शाकाहार के प्रबल समर्थक बने। महावीर के अनुयायी पांच महाव्रतों द्वारा मोक्ष की तलाश में सहायता प्राप्त कर रहे थे। जिन्हें महावीर से जोड़कर देखा जाता है। इन महान प्रतिज्ञाओं में जीवित प्राणियों की हत्या का त्याग, असत्य बोलना, लालच, यौन सुख, और सभी जीवित व निर्जीव वस्तुओं के प्रति मोह का त्याग हैं। उनके पूर्ववर्ती, पार्श्वनाथ ने चार प्रतिज्ञाओं का प्रचार किया था। उन्हें लोगों ने 'जिन' कहकर बुलाया जिसका अर्थ होता है विजेता।