कानपुर। Mahavir Jayanti 2020: महावीर जयंती को जैन धर्म को मानने वाले ऋषि महावीर की जयंती के रूप में मनाते हैं। महावीर को वर्धमान के नाम से भी जाना जाता है। इन्होंने जैन धर्म के मूल सिद्धांतों की स्थापना की। महावीर स्वामी 24 वें और अंतिम जैन ऋषि थे।
वैशाली में हुआ जन्म
महावीर स्वामी का जन्म चैत्र माह के उगते हुए चंद्रमा के तेरहवें दिन हुआ था, जो कि चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के दौरान त्रयोदशी तिथि थी। दिर्क पंचांग के अनुसार महावीर स्वामी का जन्म 599 ई.पू. और72 साल की उम्र में निर्वाण 527 ई.पू. में हुआ था हांलाकि उनके निर्वाण को उनके अर्दश्य होने के रूप में माना जाता है। महावीर का जन्म कुंडलग्राम में हुआ था जो बिहार में वैशाली जिले के अंतर्गत आता है। महावीर स्वामी जन्मोत्सव को उनके जन्म कल्याणक के रूप में मनाते हैं।
सिंहासन त्याग कर लिया सन्यास
भगवान महावीर का जन्म बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज और मां त्रिशला के यहां हुआ था। उनके बचपन का नाम वर्धमान था। कहते हैं 30 सालों तक शासन करने के बाद ज्ञान की प्राप्ति के लिए महज उन्होंने राजमहल का सुख और वैभव त्याग कर साधना का रास्ता अपना लिया और जीवन के सत्य की खोज में निकल गए। उन्होंने तप और ज्ञान से अपनी इच्छाओं और विकारों पर पूर्ण नियंत्रण कर लिया था इसलिए उन्हें महावीर के नाम से पुकारा गया।
जैन धर्म का विकास
वैशाख शुक्ल दशमी को ऋजुबालुका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई ।इसके बाद महावीर स्वामी ने जैन धर्म को फिर से प्रतिष्ठित किया। जैन ग्रन्थों के अनुसार जन्म के बाद देवों के मुखिया, इन्द्र ने सुमेरु पर्वंत पर ले जाकर उनका क्षीर सागर के जल से अभिषेक किया था। इसीलिए ही उनके जन्मदिन को जन्म कल्याणक कहते है। हर तीर्थंकर के जीवन में पंचकल्याणक मनाए जाते है। महावीर स्वामी ने जैन धर्म मानने वालों को पांच मुख्य शिक्षायें दीं। जिनके अनुसार उनको अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।
होता है विशेष उत्सव
इस दिन जैन समुदाय बड़े धूमधाम से उत्सव मनाते हैं। इस दिन जैन मंदिरों में महावीर की मूर्तियों का अभिषेक किया जाता है।इसके बाद भगवान की मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बिठा कर विशाल जुलूस निकलते हैं, जिसमें सभी उत्साहपूर्वक शामिल होते हैं।इस दिन भक्त महावीर जी को फल, चावल, जल, सुगन्धित द्रव्य आदि वस्तुएं अर्पित करते। कई स्थानों पर इस अवसर पर प्रभात फेरी भी निकाली जाती है। जुलूस के साथ पालकी यात्रा का आयोजन होता है जैन मंदिरों में शिखर पर ध्वजा चढ़ाई जाती है। जैन समाज दिन भर अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करता है। इस बार ये सारे आयोजन होना तो संभव नहीं लगता पर लोग अपने अपने घरों पर महावीर स्वामी को स्मरण कर पूजन कर सकते हैं।
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