दरअसल भारत में स्वतंत्रता आंदोलन का बिगुल फूंकने से पहले गांधी दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग में अपने मित्र हरमन कालेनबाख के साथ रहा करते थे.
महात्मा गांधी के भारत चले आने के बाद दोनों मित्रों ने एक दूसरे को कई पत्र भी लिखे जिन्हें हाल ही में लंदन के एक नीलामघर सदबीस ने नीलाम करना था लेकिन अब रिपोर्टों के अनुसार इन्हें भारत सरकार ने खरीद लिया है.
दक्षिण अफ्रीका में स्थित घर में जहां महात्मा गांधी और कालेनबाख रहते थे, उसका नाम सत्याग्रह हाऊस आंदोलन से प्रेरित था.
गांधी और कालेनबाख के जीवन की यादों की एक झलक पाने के लिए बीबीसी संवाददाता मिलटन एनकोसी ‘सत्याग्रह हाऊस’ गए.
दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग में स्थित सत्याग्रह हाऊस को जाने-माने वास्तुकार हरमन कालेनबाख ने बनाया था, जो कि बाद में महात्मा गांधी के मित्र बने और उनके साथ इसी घर में रहे. अब ये घर एक संग्रहालय और यात्री निवास स्थल में तब्दील हो चुका है.
हरमन कालेनबाख से दो पीढ़ी छोटे उनके रिश्तेदार ऐलन लिपमैन बिल्कुल हरमन जैसे ही दिखते हैं.
गांधी से प्रेरणा
अपने युवा काल में रंगभेद के खिलाफ काम करने वाले कार्यकर्ता ऐलन लिपमैन को महात्मा गांधी से प्रेरणा मिली थी.
उन्होंने कहा, “हरमन कालेनबाख मुझे काफी प्रभावित करते थे. मैं एक वास्तुकार बना क्योंकि वो एक वास्तुकार थे. उनकी ही तरह मैं भी एक सक्रीय सामाजिक कार्यकर्ता बना जिस वजह से दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने मुझे 27 साल के लिए निर्वासित कर दिया.”
लिपमैन कहते है कि जब महात्मा गांधी और कालेनबाख साथ रहते थे तो कालेनबाख गांधी के लिए खाना भी पकाया करते थे.
लिपमैन ने कहा, “जब शुरू-शुरू में दोनों मित्र साथ रहते थे तो कालेनबाख खाना पकाया करते थे. उस खाने का जायका गांधी को बिलकुल नहीं पसंद था. इसलिए उन्होंने एक दिन कालेनबाख से कहा कि वो घर साफ करें और गांधी खाना पकाने का काम अपने जिम्मे ले रहे हैं. तो गांधी बन गए सत्याग्रह हाऊस का रसोइया....गांधी भारतीय खाना अच्छा बनाते थे जो सबको पसंद आता था. उन्हें पारंपरिक जीवन जीना बेहद पसंद था.”
गांधी पहली बार दक्षिण अफ्रीका में साल 1896 में आए और अगले 21 वर्षों तक वही उनका निवास रहा. कालेनबाख और गाधी के बीच लिखे गए कई पत्र इसी जगह लिखे गए हो सकते हैं.
गांधी और कालेनबाख के इस घर की सैर कराने वाले गाइड बताते है कि 19वीं शताब्दी में वहां के समाज पर रंगभेद बुरी तरह हावी था.
सत्याग्रह हाऊस के संग्रहालय की देखरेख करने वाली डिथेबे मेलाटो चाहती हैं कि ज्यादा से ज्यादा दक्षिण अफ्रीकी युवा संग्रहालय में आए.
उन्होंने कहा, “मैं यहां पर युवाओं को आते देखना चाहती हूं ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग गांधी के बारे में जान पाएँ और अपना जीवन सीधा और सरल बना पाएँ.”
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