Mahashivratri 2020 Isha Celebration: शिव सिर्फ देवता ही नहीं हैं, जो उनकी पूजा करते हैं। दैत्य, पिशाच और सभी किस्म के प्राणी उनकी पूजा करते हैं। भूत, असुर, पिशाच, दानव, दैत्य - ये सारे प्राणी, जिन्हें हर किसी ने खारिज कर दिया है, उन्हें शिव ने स्वीकार किया है। जब उनकी शादी हुई, तो लोक-कथाएं बताती हैं कि सारे देवता और दिव्य प्राणी, सारे असुर, दैत्य, नशे में बावले, दानव और भूत-प्रेत, हर कोई आया। आमतौर पर ये लोग एक दूसरे से मेल नहीं रखते, लेकिन शिव की शादी में हर कोई वहां था।
शिव के परमानंद का आकर्षण
चूंकि शिव पशुपति, पशु-प्रकृति के भगवान थे, तो सारे पशु भी आए और निश्चय ही सांप भला कैसे चूकने वाले थे, तो वे सारे भी आए. पक्षी और कीड़े भी चूकना नहीं चाहते थे, तो वे भी मेहमान थे। इस शादी में हर जीवित प्राणी आया। यह कहानी बता रही है कि जब हम इस प्राणी की बात करते हैं, तो हम सुशील, सभ्य आदमी की नहीं, बल्कि एक आदिकालीन मनुष्य की बात कर रहे हैं, जो जीवन संग पूरी तरह से एकत्व में है। आमतौर पर शिव चरम पौरुष के प्रतीक माने जाते हैं, लेकिन शिव के अर्धनारीश्वर रूप में आप देखेंगे कि उनका आधा हिस्सा एक पूर्ण विकसित स्त्री का है। मैं उसकी कहानी बताता हूं। शिव परमानंद की अवस्था में थे और उस कारण पार्वती उनकी ओर आकर्षित हुईं। उनको लुभाने के लिए पार्वती ने बहुत सी चीजें कीं। उसके बाद उन दोनों की शादी हो गई. शादी के बाद, स्वभाविक रूप से शिव अपने अनुभवों को साझा करना चाहते थे। पार्वती ने कहा, 'आप अपने भीतर जिस अवस्था में हैं, मैं भी उस अवस्था को अनुभव करना चाहती हूं। मुझे क्या करना चाहिए? शिव ने कहा, तुम मेरी गोद में बैठ जाओ. पार्वती उनकी बाईं गोद पर बैठ गईं। शिव ने उन्हें अपने भीतर खींच लिया और वे उनका आधा हिस्सा बन गईं।
अर्धनारीश्वर बनना नहीं है आसान
हमें समझने की जरूरत है कि अगर उन्हें पार्वती को अपने शरीर में शामिल करना हो, तो उन्हें खुद का आधा हिस्सा त्यागना होगा। तो उन्होंने अपना आधा हिस्सा त्यागकर पार्वती को शामिल किया। यह मौलिक रूप से यह दर्शाना है कि पुरुषत्व और नारीत्व आपके अंदर बराबर-बराबर बंटे हुए हैं। नटेश या नटराज, नृत्य के भगवान के रूप में शिव-उनके सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है। जब मैं स्विट्जरलैंड में सर्न प्रयोगशाला गया, जहां परमाणुओं को तोडऩा होता है, तो मैंने प्रवेश द्वार के सामने नटराज की मूर्ति देखी, क्योंकि उन्होंने यह पहचाना कि वे अभी जो कर रहे हैं, उससे ज्यादा नजदीक मानव संस्कृति में कुछ नहीं। यह सृष्टि के उल्लास को, सृष्टि के नृत्य को दर्शाता है, जिसने स्वयं को शाश्वत स्थिरता से स्वत: पैदा किया है।
वैज्ञानिक ने खोजा शिव का परमानंद देने वाला नशा
अब बात करें कि वे हमेशा आनंद में होते हैं। शिव को एक ही समय में एक नशेड़ी और एक तपस्वी के रूप में निरंतर दर्शाया गया है। वे एक योगी हैं, अगर वे ध्यान में बैठते हैं, तो वे निश्चल हो जाते हैं। योग का विज्ञान यह संभावना प्रदान करता है कि आप शांत रहें और फिर भी हर समय सुख के चरम भाव में रहें। योगी छोटे-मोटे सुख से संतुष्ट होने को तैयार नहीं हैं। वे लालची हैं। वे जानते हैं कि अगर आप एक गिलास शराब पीते हैं, तो यह आपको थोड़े सुरूर के बाद फिर कल सुबह सिरदर्द देगी। आप नशे का आनंद सिर्फ तब ले सकते हैं, जब आप पूरी तरह से धुत हों, लेकिन सौ प्रतिशत स्थिर और सजग हों। पकृति ने आपको यह संभावना दी है। एक इजराइली वैज्ञानिक ने मानव मस्तिष्क के कुछ पहलुओं पर कई साल तक शोध किया और उसने पाया कि मस्तिष्क में भांग के लिए करोड़ों ग्राही-कोशिकाएं होती हैं! फिर स्नायु-वैज्ञानिकों को पता चला कि शरीर एक केमिकल - अपनी खुद की भांग पैदा कर सकता है। जब उन्हें इस केमिकल का पता लगा, जो उन ग्राही-कोशिकाओं की ओर जाता है, तो वह वैज्ञानिक उसे ऐसा नाम देना चाहता था, जो सचमुच प्रासंगिक और सटीक हो। जब उसने विभिन्न ग्रंथों में खोजा, तो उसे आश्चर्य हुआ कि सिर्फ भारतीय ग्रंथ ही हैं, जो आनंद की अवस्था की बात करते हैं। तो उसने उस केमिकल को 'आनंदामाइड' नाम दिया।
आप भी थोड़ा-सा आनंदा माइड पैदा करें
वे सबसे बड़े नियम-विरोधी हैं। जब आप 'शिव कहते हैं तो यह धर्म के बारे में नहीं है। आज, दुनिया इस संदर्भ में विभजित हो गई है कि आप किस धर्म से संबंध रखते हैं। इस वजह से, अगर आप कुछ बोलते हैं तो ऐसा लगता है कि आपका किसी धर्म से संबंध है। यह धर्म नहीं है, यह आंतरिक विकास का विज्ञान है। यह सीमाओं से परे उठने और मुक्ति के बारे में है। भौतिक प्रकृति के नियमों को तोडऩा आध्यात्मिक प्रक्रिया है। इस मायने में हम नियम-विरोधी हैं और शिव सबसे बड़े नियम-विरोधी हैं। मेरी कामना है कि शिवरात्रि की यह रात सिर्फ जगे रहने की रात ही न रहे, बल्कि आपके लिए यह तीव्र जीवंतता और जागरूकता की रात भी बन जाए.
सद्गुरु, ईशा फाउंडेशन
एक योगी और दिव्यदर्शी सद्गुरु, एक आधुनिक गुरु हैं। 2017 में भारत सरकार ने सद्गुरु को उनके कार्यों के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया है।
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