जीवन में मिलने वाले प्रत्येक सुख को यदि हम गौर से देखेंगे, तो यह पाएंगे कि उनके साथ किसी न किसी कर को भी चुकाना पड़ता है। यह कर दु:ख है। चाहे घटना कितनी भी सुखद लगे, उसके अंत में दर्द मिलता है। जितना अधिक सुख होगा, उतनी ही तीव्रता से दु:ख भी होगा। किसी चीज को पाने की चाह से पहले, उस चाह से जुड़ा ज्वर कष्टदायक है। जब वह आपको प्राप्त हो जाता है तो उसे खोने का डर कष्टदायक है। जब वह खो जाता है, तो बीते हुए सुनहरे पलों की यादें कष्टदायक होती हैं। इस रचना में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दर्द से विहीन हो।
साधना करने में व्यक्ति को अभ्यास करना पड़ता है और वह कष्टदायी है। उसको नहीं करने पर और भी ज्यादा कष्ट मिलता है। दर्द और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। प्रेम के कारण भीषण दर्द होता है, और बिछडऩे का भी उतना ही दर्द है। किसी को खुश करने का प्रयास दर्द देता है, यह जानना और समझना कि वे खुश हुए कि नहीं भी दर्द पैदा करता है। आप जानना चाहते हैं कि दूसरे व्यक्ति का मन कैसा है। लेकिन यह संभव नहीं है क्योंकि आप अपने ही मन को अभी नहीं जानते हैं। अगर तुम एक ज्ञानी की आंखों से देखोगे तो पाओगे कि अपने स्वरूप का विस्मरण, अपने परिवेश से अलग होकर अपने को देखना ही दर्द का मुख्य कारण है।
इस दर्द को समाप्त कैसे करें? तीन चीजें हैं- आत्मा, दृष्टा और दर्शन। अल्पदृष्टि से दर्द होता है। हम अपने जीवन को कहीं और रखते हैं, अपने भीतर नहीं। कुछ लोगों के लिए उनका जीवन उनके बैंक खाते में है। यदि बैंक बंद हो जाए तो उस व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ जाएगा। आप जिसको भी जीवन में अधिक महत्व देते हैं, वही दर्द का कारण बन जाता है। ध्यान के माध्यम से, आप अनुभव कर सकते हैं कि आप शरीर नहीं हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि आपको दुनिया से भागना है। यह दुनिया आपके आनंद के लिए है। लेकिन, उसका आनंद लेते हुए, अपने आत्मस्वरूप को नहीं भूलना है। विवेक यह बोध है कि आप अपने आपसे अलग हैं। जब आप यह अंतर समझ जाते हैं कि दृष्टा दृश्य से अलग होता है, तब यह दर्द समाप्त करने में सहायक होता है।
सारी सृष्टि पांच तत्वों और दस इंद्रियों से बनी है- पांच ज्ञान इंद्रियां और पांच कर्म इंद्रियां। यह पूरी सृष्टि आपको आनंद और विश्राम देने के लिए है। जिससे भी तुम्हें आनंद मिलता है, उसी से ही आपको राहत भी मिलनी चाहिए, वरना वही आनंद दर्द बन जाता है। जो ज्ञान में जाग गया है, उसके लिए दुनिया बिल्कुल अलग है। उसके लिए कोई पीड़ा नहीं है, उसके लिए इस सृष्टि का हर कण आनंद से या आत्मा के अंश से ही भरा हुआ है। दर्द को जड़ से खत्म करने के लिए यह तत्व ज्ञान जरूरी है- पूरा ब्रह्मांड तरल है। शरीर, मन और यह सारी दुनिया निरंतर परिवर्तित हो रहे हैं। तत्व ज्ञान यह है, 'मैं शरीर नहीं हूं, मैं आत्मा हूं, मैं आकाश हूं। मैं अविनाशी, अछूता, मैं अपने आस-पास की दुनिया से बेदाग हूं।‘ यही तत्व ज्ञान इस चक्र से हमें बाहर निकाल सकता है।
ध्यान का है बड़ा महत्व
कई बार हम सुख की तलाश में इतना खो जाते हैं कि दु:ख को महसूस करने और उसे दूर करने की सुध ही बिसरा देते हैं। ऐसी अवस्था में ही ध्यान के असल महत्व से परिचय होता है। ध्यान हमें सुख-दु:ख के इस चक्र से मुक्ति प्रदान करने में मदद करता है।
— श्री श्री रविशंकर जी
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