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PATNA: क्या आपको मालूम है कि चुनाव आयोग आपके मतदान के लिए क्या-क्या इंतजाम करता है और कितना खर्च करता है. इस साल लोकसभा चुनावों में लगभग 6500 करोड़ रुपये के खर्च होने का अनुमान है. जबकि कुल वोटर लगभग 90 करोड़ हैं. यानी हर मतदाता पर लगभग 72 रुपये खर्च होने का अनुमान है. चुनाव आयोग से जुड़े लोगों का कहना है कि हर बार खर्च बढ़ जाता है. जबकि वर्ष 2014 के आम चुनाव में लगभग 3870 करोड़ रुपये खर्च हुआ था. यदि हम देश के पहले लोकसभा चुनाव में होने वाले खर्च की बात करें तो चुनाव आयोग को कुल 10 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. जो कि प्रति वोटर के हिसाब से लगभग 60 पैसे थे. मतदाताओं की संख्या और प्रति मतदाता की लागत के मामले में 17वीं लोकसभा का चुनाव विश्व का सबसे बड़ा चुनाव होगा. गौरतलब है कि भारत के पहले लोकसभा चुनाव वर्ष 1951 में जिसमें लगभग 17 करोड़ लोगों ने मतदान किया था और प्रति मतदाता चुनाव आयोग को लगभग 60 पैसे खर्च करने पड़े थे.
पटना में 32.40 करोड़ खर्च
पटना जिले में पटना साहिब और पाटलिपुत्र लोकसभा सीट है. दोनों सीटों पर लगभग 45 लाख वोटर हैं. प्रति वोटर 72 रुपए के हिसाब से 32.40 करोड़ रुपये खर्च होगे. ऐसे में हर वोटर का दायित्व बनता है कि मतदान में अवश्य भाग लें ताकि चुनाव आयोग द्वारा खर्च किए जा रहे पैसे की बर्बादी न हो. आयोग मतदान के प्रति जागरूक करने के लिए प्रचार के हर प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहा है. बिहार में करीब 6 करोड़ 97 लाख मतदाता हैं.
बढ़ता गया आयोग का खर्च
निर्वाचन आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो चुनावी खर्च में सबसे पहले 1977 में वृद्धि दर्ज की गई. उस वक्त वोटर खर्च बढ़कर डेढ़ रुपये तक चला गया था. 1971 के चुनाव में यही खर्च मात्र 40 पैसे था. इसके बाद से चुनावी खर्च लगातार बढ़ता चला गया. 1984-85 प्रति वोटर खर्च डेढ़ रुपये से बढ़कर दो रुपए हो गया. 1977 के बाद 1991-1992 के चुनाव में प्रति वोटर खर्च में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई. 1984-85 में जो खर्च दो रुपये था, वह 91-92 में बढ़कर सात रुपये हो गया.
खर्च बढ़ने के कारण
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनावी खर्च में बढ़ोतरी के दो बड़े कारण माने जाते हैं. पहला रुपये का अवमूल्यन. आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि पुराने जमाने की महंगाई दर और आज महंगाई दर में भी फर्क आया है. दूसरा कारण है मतदाता के लिए बूथ पर सुविधाओं में वृद्धि.