कानपुर। देश में 17वीं लोकसभा चुनाव के चाैथे चरण में यूपी की 13 सीटों पर भी मतदान किया जाना है। इसमें शाहजहांपुर, खेरी, हरदोई, मिसरिख, उन्नाव, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, कानपुर, अकबरपुर, जालौन, झांसी और हमीरपुर लोकसभा सीटें शामिल हैं। वैसे तो बीजेपी कांग्रेस और महागठबंधन ने सभी सीटों पर काफी सोच-समझ के प्रत्याशियों को उतारा है लेकिन इसमें कानपुर, कन्नाैज, उन्नाव और फर्ररूखाबाद जैसी सीटों पर काफी नामी चेहरे उतारे हैं। इनमें पूर्व केंद्रीय मंत्रियों में कांग्रेस की ओर से कानपुर में श्रीप्रकाश जायसवाल तो फर्ररूखाबाद में सलमान खुर्शीद चुनावी मैदान में उतरे हैं।
कानपुर - लोकसभा क्षेत्र
पांच विधानसभा क्षेत्रों वाली इस संसदीय सीट पर 1991, 1996 और 1998 में हुए चुनाव में बीजेपी जीती। इसके बाद 1999, 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल सांसद चुने गए। जायसवाल दो बार केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। मोदी लहर में 2014 में डॉ मुरली मनोहर जोशी से चुनाव हारे। क्रांतिकारियों की इस धरती सर्वाधिक बार कांग्रेस के सांसद जीते। उन्नाव सीट पर भी पार्टियों ने साेचसमझ कर प्रत्याशियों का ऐलान किया है। कानपुर सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प होगा। यहां बीजेपी ने सत्यदेव पचौरी को टिकट दिया है ताे वहीं कांग्रेस ने श्रीप्रकाश जायसवाल को उतारा है। श्रीप्रकाश जायसवाल पहले भी कांग्रेस पार्टी की तरफ से कानपुर से सांसद रह चुके हैं। वहीं सपा-बसपा व रालोद के महागठबंधन ने राम कुमार (सपा) को टिकट दिया है।
उन्नाव - लोकसभा क्षेत्र
गंगा और सई नदी के बीच पड़ने वाले उन्नाव संसदीय क्षेत्र की पहचान कलम और तलवार के धनी जनपद के रूप में होती है। पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और शहीदे आजम चंद्रशेखर, हसरत मोहानी जैसे आजादी के दीवानों ने उन्नाव को अलग पहचान दिलाई है। गत चुनाव में सांसद साक्षी महराज ने कांग्रेस से सीट छीनकर भाजपा के पाले में की थी। इस संसदीय क्षेत्र में उन्नाव सदर, भगवंतनगर, मोहान, सफीपुर, बांगरमऊ विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा जबकि पुरवा में बसपा विधायक अनिल सिंह जीते। हालांकि वह भी अब भाजपा के समर्थक हैं। विधानसभा अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित भी उन्नाव लोकसभा की भगवंतनगर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं। बांगरमऊ के विधायक कुलदीप सिंह दुष्कर्म के मामले में आरोपित हैं और जेल भेजे गए हैं। यहां बीजेपी ने माैजूदा सांसद स्वामी सच्चिदानंद हरी साक्षी तो कांग्रेस की अन्नू टंडन मैदान में उतरी हैं। वहीं सपा-बसपा व रालोद के महागठबंधन ने अरुण शंकर शुक्ला (सपा) को टक्कर लेने के लिए उतारा है।
फर्ररूखाबाद - लोकसभा क्षेत्र
जनपद का इतिहास ताम्रयुग काल तक का मिलता है। कंपिल क्षेत्र में हुई खोदाई के दौर में मिले बर्तन हस्तिनापुर में मिले अवशेषों से मिलते जुलते हैं। महाभारत काल में भी जनपद को महत्वपूर्ण स्थान रहा है। कांपिल्य जो आज कंपिल के नाम से जाना जाता है कभी पांचाल राज्य की राजधानी हुआ करता था। द्रोपदी का जन्म यहीं होना माना जाता है और यहीं पर उनका स्वयंवर भी हुआ था। द्रोपदी कुंड आज भी विद्यमान है। जैन तीर्थांकर कपिल देव का जन्म भी यहीं होने के मान्यता है। जनपद में स्थित संकिसा में भगवान बुद्ध के स्वर्गावतरण की भी मान्यता है। प्रतिवर्ष हजारों विदेश श्रद्धालु यहां बौद्ध स्तूप के दर्शन को आते हैं। शहर फर्रुखाबाद की स्थापना नवाब मोहम्मद खां बंगश ने वर्ष 1747 में नवाब फर्रुखसियर के नाम पर की थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में जनपद ने प्रमुखता से भागीदारी की। सैकड़ों लोगों को अंग्रेजों ने फांसी चढ़ा दिया। अंतिम नवाब तफज्जुल हुसैन खां को 1857 में मुल्कबदर कर उनकी मर्जी के अनुसार मक्का भेज दिया गया। वहीं उनकी मृत्यु हुई। द्वितीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी से लेकर जवाहर लाल नेहरू तक यहां कई बार आए। आजादी के बाद से अब तक 17 बार हो चुके लोकसभा चुनाव व उपचुनाव में सात बार यहां कांग्रेस ने बाजी मारी। समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया अपनी कर्मभूमि फर्रुखाबाद से वर्ष 1962 में सांसद चुने गए थे। जनता पार्टी के दौर में दयाराम शाक्य ने दो बार संसद में जनपद का प्रतिनिधित्व किया। कांग्रेस नेता खुर्शीद आलम खां और उनके पुत्र सलमान खुर्शीद यहां से सांसद चुने गए और केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान पाया। भाजपा से साक्षी महाराज दो बार सांसद रहे। वर्तमान में भाजपा के मुकेश राजपूत यहां से सांसद हैं। यहां की जनता आम तौर पर स्वच्छ छवि के नेता को ही पसंद करती है। इस सीट पर भी नामी उम्मीदवार उतरे हैं। इस बार भी यहां बीजेपी की ओर से मुकेश राजपूत तो कांग्रेस की ओर से सलमान खुर्शीद ताल ठोंक रहे हैं। वहीं सपा-बसपा व रालोद के महागठबंधन की ओर से मनोज अग्रवाल (बसपा) उतरे हैं।
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राजा हर्षवर्धन की नगरी में समाजवादी विचारधारा का झंडा हमेशा बुलंद होता रहा है। इस संसदीय क्षेत्र में 1967 तक रहा कांग्रेस का दबदबा राममनोहर लोहिया ने तोड़ा और लगातार आगे बढ़े। वहीं वर्ष 1999 से अब तक हुए आम चुनाव और उप चुनाव में लगातार सपा जीती। अखिलेश यादव ने हैट्रिक मारी। उनके मुख्यमंत्री बनने पर जब डिंपल को लड़ाया गया वह निर्विरोध जीती। मोदी लहर में सुब्रत पाठक ने जरूर लड़ाई दिखाई लेकिन हार गई। यहां भाजपा केवल एक बार वर्ष 1998 में जीती। कन्नाैज सीट पर भी मुकाबला काफी राेचक होगा। यहां बीजेपी ने सुब्रत को टिकट दिया है तो सपा-बसपा व रालोद के महागठबंधन ने कन्नाैज से मौजूदा सांसद डिंपल यादव (सपा) को चुनावी रण में उतारा है। डिंपल यादव का पिछली बार भी मुकाबला सुब्रत पाठक से हुआ था।