"सोनू की लड़ाई सिर्फ इंतजार या आरोपियों को जेल के पीछे पहुंचाने की नहीं थी. ये लड़ाई थी एक मां बनाम जंग खा रहे सिस्टम की. उस पर रुपए लेकर चुप हो जाने का दबाव बना. केस को गलत साबित करने के लिए पुलिस ने ये तक कहला दिया कि नौ साल की मासूम अनुष्का प्रेग्नेंट थी. पब्लिक प्रेशर बना तो सोनू के एक पड़ोसी को पकडक़र थर्ड डिग्री टॉर्चर देकर उससे ही जुर्म कुबूल करवा दिया. फिर शुरू हुआ आरोपी को बचाने का खेल. आवाज उठाने वालों के खिलाफ लाठीचार्ज, मीडियावालों के खिलाफ एफआईआर. तमाम प्रेशर, धमकी, दबाव झेलने के बाद भी सोनू ने लड़ाई जारी रखी. आखिरकार मामला सीबीसीआईडी को दिया गया और डीएनए टेस्ट में पीयूष दोषी निकला."
कानपुर में एक हादसा हुआ. हंसती-खेलती बेटी अनुष्का को स्कूल छोडक़र आने के चंद घंटे के बाद ही सोनू के पास उसकी मौत की खबर आई. पुलिस ने मामले को हादसा बताया. अनुष्का की मां सोनू को विश्वास था कि अनुष्का की मौत हादसा नहीं बल्कि घिनौने तरीके से की गई हत्या है. तीन महीने की लम्बी लड़ाई के बाद उसकी बेटी के साथ कुकृत्य करने वाले पकड़े गए. लड़ाई आसान नहीं थी. एक ओर केस को गलत साबित करने में जुटी पुलिस और दूसरी ओर बेमौत मारी गई बेटी को खोने का दर्द. सोनू आखिर हारती कैसे...
बहुत साधारण परिवार से हूं. मेरा कोई बेटा नहीं है इसलिए मै अपनी दो बेटियों अनुष्का और दीक्षा को पढ़ाकर डॉक्टर बनाना चाहती थी. इसके लिए मै गांव छोडक़र शहर के रावतपुर में एक छोटे से किराए के कमरे में अपनी बेटियों के साथ रह रही थी. मैंने उनके और अपने सपने पूरे करने के लिए सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की.
27 सितम्बर 2010
भूलूंगी नहीं ये दिन. मैं रोज की तरह बेटियों को स्कूल छोडक़र काम पर निकल गई. एक बजे मुझे कॉल आया कि अनुष्का की तबियत स्कूल में अचानक खराब हो गई. मैं घबरा गई लेकिन इसका अंदाजा नहीं था कि उस दिन मेरी जिंदगी में कितना बड़ा तूफान आ चुका था. उसकी मौत हो चुकी थी. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे इतनी जल्दी सब खत्म हो गया. अनुष्का के बैग में मिले खून से लथपथ कपड़ों ने मेरी उलझन बढ़ा दी. बेटी के साथ रेप होने का शक हुआ. पुलिस को सूचना दी और स्कूल मैनेजर के बेटे पीयूष पर शक जताया.
पुलिस ने अनुष्का की मौत को तबीयत खराब होना बताकर रफा-दफा कर दिया, लेकिन ये हो ही नहीं सकता था. मेरी बच्ची के साथ कुकृत्य हुआ था. मैं चीख-चीख कर पीयूष को गुनहगार बता रही थी लेकिन मेरी किसी ने नहीं सुनी. मेरी बेटी और मेरे ऊपर कई आरोप लगाए गए. यहां तक मुझे अपनी नौ साल की बच्ची से बुरे काम करवाने का आरोप तक लगाया गया. ये बातें इतनी बढ़ीं कि मन में आने लगा कि आत्महत्या कर लूं. खासकर तब जब पुलिस बेटियों के गुनहगारों को पकडऩे की बजाए मेरे ऊपर कीचड़ उछालती. फिर सोचती कि अगर मैने ऐसा किया तो ये इस बात को साबित कर देंगे कि मैं और मेरी नौ साल की मासूम अनुष्का गलत थे.
उन्होंने मुझे धमकाना शुरू कर दिया. रात के अंधेरे में सिपाही से लेकर डीआईजी तक मुझे धमकी देते. कहा गया, ‘तुम कुछ नहीं कर पाओगी. जैसे दूसरे रेप केस दबकर रह जाते है उसी तरह अनुष्का की फाइल भी दब जाएगी. मुंहमांगे रुपए ले लो और शहर छोडक़र चली जाओ.’ जिस मकान में मैं रह रही थी वहां के मकान मालिक पर दबाव बनाकर मुझे घर छोडऩे पर मजबूर कर दिया गया. मैं एक चïट्टे में गोबर की गंध और तिरपाल में रहने को मजबूर हो गई.
झूठ नहीं कहूंगी......कई बार मेरी हिम्मत जवाब देती. मुझे लगता कि शायद मैं यह लड़ाई हार जाऊंगी लेकिन मेरी बेटी अनुष्का की वो खून से लथपथ लाश और उसका मासूम चेहरा मेरी आंखों के सामने आ जाता. मैं रात-रात भर सो न पाती. जैसे-जैसे लोगों ने मेरा साथ दिया मेरी हिम्मत बढ़ती गई. मेरे पास अब खोने को कुछ नहीं था. पुलिस ने दूसरी बेटी दीक्षा की दुहाई दी और कहा कि ज्यादा मत उड़ो तुम्हारी दूसरी बेटी भी है उसके भविष्य की चिंता करो.
एक बार तो कुछ लोग रात में सीबीसीआईडी की तरफ से जांच का बहाना बनाकर घर आए. मुझे साथ चलने को कहा. इस बार शायद मुझे ले जाकर मार देने का इरादा था. मुझे डर लगा, मैं नहीं गई. बाद में वही बात सामने आई जिसका मुझे शक था. वे सीबीसीआईडी या पुलिस के नहीं थे.
मैं शुक्रगुजार हूं कि मेरी लड़ाई में मीडिया ने मेरा साथ दिया, दबाने और केस बदलने की कोशिश शुरू हुईं तो कानपुर के लोगों ने साथ दिया. ये न होता तो मैं बहुत कमजोर हो गई होती. बात बढ़ी, लोग साथ जुड़े तो कानपुर से आगे भी निकली. हर ओर दबाव बढऩा शुरू हुआ तो आखिर पीयूष पकड़ा गया, मगर मुझे धमकाना नहीं छोड़ा गया. लोगों ने सलाह दी, गांव चली जाओ. कैसे चली जाती. अपनी बच्ची को कुछ बनाने लाई थी, और उसे ही छोडक़र कैसे चली जाती. बहुत बुरा वक्त था वो. चुप रहना बहुत आसान होता है, लेकिन एक बार चुप रहे तो बार-बार चुप रहना पड़ेगा, और किस-किस हद तक? मैं भी चुप हो सकती थी, लेकिन अगर ऐसा करती तो सारी जिंदगी अपनी ही बच्ची की गुनहगार बनकर रह जाती.