मोदी और शी, कितने समान, कितने अलग?
अनुशासित राजनीतिक प्रशिक्षण के मामले में भी दोनों में काफ़ी समानता है. एक का प्रशिक्षण कम्युनिस्ट कैडर के रूप में और दूसरे का एक दक्षिणपंथी संगठन और पार्टी में एक कार्यकर्ता के रूप में हुआ है.जिंदगी और काम के प्रति 'सबकुछ संभव है' का नज़रिया रखने वाले इन दोनों नेताओं को बहुमुखी और ताक़तवर नेता माना जाता है.इनमें से एक भ्रष्टाचार विरोधी सख़्त अभियान चला रहे हैं और दूसरा विकास के उस एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है, जिसका वादा कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता तक पहुंची है.लेकिन इन दोनों नेताओं में काफ़ी अंतर भी हैं.पढ़िए विस्तार से
इससे ऐसा संदेश जाता है कि रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते हुए उन्होंने अच्छे और बुरे दोनों ही तरह के लोगों से निपटने का हुनर सीखा.अनुशासित दिनचर्या के लिए चर्चित होने के नाते, यह संभव है कि मोदी ने खुद पर सख़्त नियंत्रण रखने की कला आरएसएस की शाखाओं में सीखी हो.
हालांकि, आरएसएस में इतने सालों तक खाक़ी हाफ़ पैंट पहनते हुए, उन्हें फैंसी कपड़े पहनने का शौक कैसे पैदा हुआ, यह एक रहस्य है.यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि मोदी दशकों तक आरएसएस के कैडर के रूप में प्रशिक्षण लेने वाली बात पर उतना जोर नहीं देते हैं जितना वो कभी अपने 'चायवाला' होने पर देते हैं.विवाह
उनकी संगठनात्मक क्षमता को देखते हुए आरएसएस ने उन्हें 1985 में भारतीय जनता पार्टी में भेज दिया. उन्होंने लालकृष्ण अडवाणी की अयोध्या रथ यात्रा की ज़िम्मेदारी गुजरात में अच्छी तरह निभाई. इसके बाद उन्हें पार्टी का महासचिव बनाया गया.मोदी की संगठनात्मक क्षमता के कारण 1998 के गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया. इससे गुजरात में उनकी पहचान बनती गई. पार्टी में वो आडवाणी के करीब नेताओं में शुमार होने लगे. भाजपा ने 2001 में उस समय के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल को हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया.इसके अगले साल फरवरी में गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए. इससे उनकी छवि खराब हुई. लेकिन उसी साल हुई विधानसभा चुनाव में भाजपा को भारी जीत मिली. इसका श्रेय मोदी को दिया गया और वो मुख्यमंत्री पद पर बने रहे.इसके बाद हुए दो विधानसभा चुनावों में भी भाजपा की भारी विजय हुई. पार्टी ने 2013 में उन्हें आम चुनाव के प्रचार का कमान दी गई. उनके नेतृत्व में भाजपा ने 2014 के चुनाव में भारी जीत दर्ज की और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी.बड़ा सवाल
हालांकि दोनों देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा और अन्य विवादों पर सहमति की राह आसान नहीं है.