पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आम लोग इस्लामी चरमपंथियों का ख़ुद मुक़ाबला कर रहे हैं और इनका नेतृत्व कर रही हैं महिलाएं.


पिछले तीन सालों में इन महिलाओं ने अपने इलाके, नीलम घाटी, से चरमपंथियों को बाहर करने के लिए गहन और सतत् आंदोलन चला रखा है. नीलम घाटी पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर के उत्तरी इलाके में है.पिछली गर्मियों के दिन भी कोई अपवाद नहीं थे.बीते अगस्त के मध्य में नीलम ज़िले के मुख्यालय अतमुक़ाम में प्रदर्शन करने जा रहीं घरेलू महिलाओं से भरी बस को पुलिस ने रोक लिया था. पुलिस ये बस थाने ले गई और इसके कागज़ात जब्त कर लिए, ड्राइवर को निर्देश दिया कि वो यात्रियों को लेकर न जाए.नाराज़ महिलाएं बस से उतरीं, उन्हें रोकने की कोशिश कर रहे पुलिस वालों को धकेला और पैदल ही नज़दीक के सेना के शिविर की ओर चल पड़ीं, ये शिविर एलओसी के पास है.


नीलम नदी के पार हरे भरे पहाड़ पर भूरे धब्बे साफ दिखाई दे रहे थे. सरवर ने बताया कि ये भारतीय सेना की चौकियां हैं.वह बताती हैं कि इन चौकियों से पहले यह इलाक़ा खुला हुआ था.लौट रहा दहशत का साया

अगस्त के प्रदर्शन की वजह समझाते हुए उन्होंने कहा, ''हाल के दिनों में पाकिस्तानी सेना लोगों से बंकर बनाने के लिए कह रही है. इसका मतलब है कि बुरे दिन फिर से आने वाले हैं.''

सरवर ने कहा, ''इसके अलावा इलाक़े में चरमपंथियों की गतिविधियां बढ़ गई हैं. हमें डर है कि घुसपैठ की घटनाएं भारत की ओर से फ़ायरिंग को उकसाएंगी. हमें कुछ न कुछ करना ही पड़ेगा.''इन परिस्थितियों ने घाटी की महिलाओं को विरोध दर्ज करने के लिए मज़बूर किया.महिलाओं के प्रदर्शन के बाद हुई दो घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि यह आंदोलन पूरे क्षेत्र में अंदर ही अंदर मौजूद भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है.प्रदर्शन की उस रात चरमपंथियों का एक दल एलओसी पार कर भारतीय क्षेत्र में चला गया था. वहां उनकी सुरक्षा बलों से मुठभेड़ भी हुई.स्थानीय लोगों ने बताया कि फ़ायरिंग की आवाज़ यहां तक सुनाई दे रही थी.ग्रामीणों ने खदेड़ादशकों तक भारतीय गोलीबारी के कारण अधिकांश समय बंकर में रहने से यहां गठिया रोग पांव पसारने लगा है.दवा दुकानदार मोहम्मद खुर्शीद बताते हैं कि युद्ध ने यहां की आबादी को एक ऐसा रोग, दिया है जो पहाड़ में नहीं पाया जाता है.उन्होंने बताया कि अब तक उन्होंने सैकड़ों गठिया रोगियों का इलाज किया है.
ख़्वाजा फैयाज़ हुसैन बताते हैं कि बमबारी के दौरान लोगों को लगातार 18-18 घंटे या कभी कभी कई दिनों तक बंकरों में रहना पड़ता है. इससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होता है.चरमपंथी गतिविधियां बढ़ींलेकिन क्या महिलाओं और उनका समर्थन करने वाले स्थानीय लोग चरमपंथियों को हमेशा के लिए खदेड़ पाएंगे?विश्लेषकों का मानना है कि साल 1947 में आज़ादी के बाद भारत-पाक के बीच शुरू हुए भू-रणनीतिक युद्ध में नीलम घाटी की महिलाएं बहुत छोटी हस्ती हैं.इन पड़ोसी देशों के बीच पहली दोनों लड़ाइयां कश्मीर को लेकर हुईं. इससे कश्मीर दो हिस्सों में बंट गया और उन्हें बांटने वाली लाइन नियंत्रण रेखा बन गई. दोनों देश अब भी कश्मीर पर अपना-अपना दावा करते हैं.1989 से शुरू हुआ भारत प्रशासित कश्मीर में चरमपंथियों के घुसपैठ का सिलसिला साल 2003 तक चला. इस दौरान 50,000 लोग मारे गए फिर भी कश्मीर में भारतीय शासन को डिगाया नहीं जा सका.आज़ादी को लेकर स्थानीय लोगों का शुरू किया गया आंदोलन भारत के ख़िलाफ़ जिहाद में बदल गया और उसकी कमान बाहरी लोगों खासकर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के चरमपंथियों के हाथों में आ गई.
साल 2003 में संघर्ष विराम के बाद इन पर पाक सेना का शिकंजा कस गया था. लेकिन हाल के वर्षों में एलओसी के पास पंजाबी चरमपंथियों का नेटवर्क फिर सक्रिय हो गया है.अतमुक़ाम के एक अधिकारी ने बताया कि अंधेरा होने के बाद यहां चरमपंथियों के वाहनों की चहल-पहल बढ़ जाती है.विश्लेषक कहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधरने के संकेत मिलने के साथ ही इस तरह की घटनाएं बढ़ गई हैं.बीते जनवरी में जब पाकिस्तानी सरकार भारत को व्यापार के लिए सबसे पसंदीदा देश का दर्जा देने की तैयारी कर रही थी तब से इस तरह की घटनाएं बढ़ गई हैं.पाकिस्तान में मई में हुए आम चुनावों में नवाज़ शरीफ के जीतने से स्थितियां और बिगड़ गई हैं क्योंकि वो भारत से साथ संबंध सुधारने के हिमायती हैं.एलओसी पर ताज़ा झड़पें नीलम घाटी से दूर दक्षिण की ओर हुई है.ये पहले से अलग है, क्योंकि पहले नीलम घाटी का दूरदराज़ का इलाका भारत प्रशासित कश्मीर पर हमले करने के लिए चरमपंथियों का पसंदीदा बन चुका था.नीलम घाटी के लोग प्रशासन को इन चरमपंथियों को खदेड़ने में मजबूर कर पाएंगे या नहीं इसका जवाब सिर्फ़ वक़्त देगा लेकिन ये साफ़ है कि नीलम घाटी की महिलाएं इस समस्या के खिलाफ स्थानीय लोगों की लड़ाई में सबसे आगे हैं.

Posted By: Subhesh Sharma