क्यों सर्दी में ही ज़ुकाम ज़ोर पकड़ता है
एक शोध से संकेत मिले हैं कि ठंड के दिनों में लोग एक-दूसरे के ज़्यादा क़रीब आते हैं जिससे ज़ुकाम के विषाणु को तेज़ी से फैलने में मदद मिलती है.साथ ही तापमान में गिरावट और शुष्की बढ़ने से विषाणु को अधिक तेज़ी से पनपने में मदद मिलती है.शोध में सुझाया गया है कि मौसम में आ रहे उतार-चढ़ाव की वजह से इंसान की प्रतिरोधक क्षमता भी कमज़ोर पड़ जाती है.कड़कड़ाती सर्दी में सूरज की रौशनी और उष्मा दोनों ही घट जाते हैं, इससे शरीर को विटामिन डी कम मिलता है जो प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर बनाए रखने के लिए जरूरी है.वजह कोई भी, पर यह पक्की बात है कि सर्दी के दिनों में हर जगह, हर तरह के लोगों में ज़ुकाम के मामले बढ़ जाते हैं.आखिर क्यों होता है ज़ुकाम
इस सवाल का जबाव जानने के लिए हमें पहले यह जानना ज़रूरी है कि हमारा शरीर अपना बचाव किस तरह करता है और विषाणु कैसे हमारे शरीर में सेंध लगा देता है.संक्रमण की जैसे ही शुरुआत होती है, हमारे शरीर के भीतर मौजूद कुछ ख़ास क़िस्म की कोशिकाएं विषाणु से लड़ने के लिए हथियारबंद हो जाती हैं और उन्हें नष्ट कर देती हैं.
शरीर में मौजूद कुछ विशेष तरह के प्रोटीन होते हैं जिन्हें 'एंटी-बॉडीज़' कहा जाता है. ये प्रोटीन श्वेत रक्त कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं जिन्हें 'बी-सेल' कहते हैं.यही 'एंटी-बॉडीज़' अन्य कोशिकाओं को विषाणुओं की चपेट में आने से बचाते हैं. यहां इंसान की प्रतिरोधक क्षमता भी अहम भूमिका निभाती है.लेकिन यहीं ये विषाणु रक्षक कोशिकाओं को चकमा देकर अपनी संख्या बढ़ा लेते हैं और फिर एक इंसान से दूसरे इंसान में फैल जाते हैं.फिर भी कुछ रक्षक कोशिकाएं इन विषाणुओं से लड़ती रहती हैं और ज़ुकाम को बढ़ने से रोकने की कोशिश करती हैं.नए विषाणु तब पैदा होते हैं जब दो अलग-अलग विषाणु एक ही कोशिका को संक्रमित करते हैं और गुणसूत्रों का आदान-प्रदान करते हैं. विज्ञान की भाषा में इसे 'जेनेटिक शिफ्ट' कहते हैं.