क्यों पेड़ों पर लटकाई जा रही हैं महिलाएं?
इनमें से तीन के परिजनों, जिनमें से दो चचेरी बहनें थीं, ने आरोप लगाया है कि उनकी बलात्कार के बाद हत्या की गई थी.क्या हत्याओं की यह बाढ़ नई है? ऐसे अपराध उत्तर प्रदेश या भारत के लिए नए नहीं है.जब मैं छोटी थी और गर्मियों की सालाना छुट्टियों में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में अपने पैतृक गांव दादा-दादी के पास जाती थी, तब कभी-कभी मैंने अपनी मां और पड़ोसियों को महिलाओं पर हमलों के बारे में बात करते सुना था.हमलावर शायद हमेशा ही मेरी जाति- उच्च वर्गीय ब्राह्मण- के होते थे. और पीड़ित शायद हमेशा ही नीची जाति की या दलित (पहले अछूत) महिलाएं होती थीं.कई बार हमले की शिकार महिला शोर मचा देती थी और बच निकलने में कामयाब हो जाती थी, लेकिन बाकियों को पकड़ लिया जाता था.
कोई भी पुलिस के पास नहीं गई, क्योंकि जैसे कि मेरी मां कहती थीं, अक्सर उन्हें ही मुसीबत की वजह मान लिया जाता था.'रोज़मर्रा की बात'2011 में उत्तर प्रदेश में निर्मम बलात्कारों की बाढ़ आने पर मैं ख़बर करने गई थी. पीडितों में से एक 14 साल की सोनम थी जो अपने घर के ठीक सामने एक पुलिस स्टेशन के अंदर मौजूद पेड़ से लटकी मिली थी.
यकीनन मेरे बचपन से अब तक स्थितियां बदली हैं- धीमी ही सही, लेकिन बदली हैं.महिलाओं के लिए काम करने वाले लखनऊ के संगठन साझी दुनिया की रूप लेखा वर्मा कहती हैं, "इससे पहले महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के हम रोज़ दो या तीन मामलों के बारे में सुना करते थे, लेकिन अब यह रोज़ 10-12 दिन हो गए हैं."
दो हफ़्ते पहले, जब दो किशोर बहनों की आम के पेड़ से लटकी हुई तस्वीर एक समाचार वेबसाइट पर दिखाई दीं तो देश भर में आक्रोश फैल गया था.उत्तर प्रदेश की राजधानी, लखनऊ, में लोग सड़कों पर उतर आए और राज्य सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर इंसाफ़ की मांग की थी.