माता पिता भगवान का सबसे अनमोल तोहफा होते हैं। माता-पिता अपने बच्‍चों की खुशी के लिए क्‍या नही करते हैं लेकिन क्‍या आप ने कभी कोई ऐसा बेटा देखा है जो अपनी मां के लिए श्रवण कुमार बन गया। युवक ने अपनी नेत्रहीन मां को लेकर चार धामों की पदयात्रा की जिसमे उसे कई सालों का समय लगा पर ना वो थका ना हारा। अपनी मां को लेकर उसने चारो धामों सहित ज्‍योर्तिंलिंगो की भी यात्रा की।


1996 मे शुरु की थी यात्रामध्यप्रदेश के जबलपुर जिले के वर्गी गाँव निवासी कैलाश गिरी अपनी नेत्रहीन माँ को कांवड़ में बैठाकर बीस वर्षो से देश के प्रशिद्ध धार्मिक स्थलों की यात्रा कराते हुए सोमवार को हिंडोन पहुचें। कैलाश अभी तक 36000 किलोमीटर की पैदल यात्रा तय कर चूके हैं। जिले के प्रशिद्ध धार्मिक स्थल जगत जननी माँ कैला देवी के पावन धाम के दर्शनों के बाद श्रवण कुमार कैलाश गिरी की धार्मिक यात्रा समाप्त होगी। ब्रह्मचारी बने कैलाश गिरी ने बताया की दो फरवरी 1996 को अपनी नेत्रहीन माँ कीर्तिदेवी की मनोकामना पूरी करने के लिए उसे अपने कंधो पर बैठाकर 3868 किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा यात्रा पर पूरी आस्था के साथ निकले थे। 20 सालों तक मां को कांवड़ मे बिठा किया सफर
इसी यात्रा में उसे देश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों की यात्रा कर अपनी नेत्रहीन माँ को साथ ले जाने की श्रद्धा जाग उठी और उसने रास्ते में ही लकड़ी और बांस से कांवड़ बना कर माँ को बैठा निकल पड़ा त्रेता युग के श्रवण कुमार की तरह धार्मिक यात्रा पर। गिरी ने तिरुपति बालाजी, रामेश्वरम, बाबा वैजनाथ धाम, नैमीशरन्य, सोमनाथ, महाकालेश्वर, द्वारिकापुरी, सहित चारो धाम की यात्रा पूरी की है। अपनी मां को यात्रा पूरी करा कर वह करौली जिले के हिंडोन तहसील पहुंचे। जिसके बाद वह 65 किलोमीटर की यात्रा कर माँ कैलादेवी पहुचेंगे।

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Posted By: Prabha Punj Mishra