आखिर अमरीकियों को बंदूक से इतनी मोहब्बत क्यों?
जून, 2016 में ऑरलैंडो के एक नाइट क्लब में हुई गोलीबारी में 49 लोग मारे गए थे।
इससे पहले दिसंबर, 2015 में कैलिफोर्निया में हुई ऐसी ही एक घटना में 14 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।इन सब वारदारतों के लिए अमरीका के गन कल्चर को भी जिम्मेदार ठहराया जाता है। अमरीका के किसी न किसी कोने से बंदूक़ हमले की ख़बरें आना आम बात है।उसके बाद सचमुच एक राजनीतिक आंदोलन की शुरुआत हुई। हमें सक्रिय होना पड़ा क्योंकि क़ानून की मौजूदगी दिखने लगी थी।
इसके अलावा 1968 के बंदूक़ नियंत्रण क़ानून के तहत ज़्यादा लाइसेंसी डीलरों की ज़रूरत थी ताकि हथियार बेचे जा सकें।हाईवे पर चलने वालों जान लो रोड पर बनी इन लाइनों का मतलब, कहीं देर ना हो जाए...
दूसरे संशोधन में साफ कहा गया है: एक नियमित नागरिक सेना स्वतंत्र राज्य की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है।
लोगों के हथियार रखने के अधिकार का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।और ऐसा कहने का मतलब यह है कि अगर संघीय सरकार नागरिक सेना को हथियार नहीं देती तो लोग यह काम कर सकते हैं।दूसरे संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट में सिर्फ़ तीन केस दर्ज हुए।सबमें माना गया कि दूसरा संशोधन नागरिक सेना से जुड़ा है और सामूहिक अधिकार देता है न कि व्यक्तिगत। 1960 तक माना जाता रहा कि मामला सुलझ गया है। एनआरए ने इसे बदलने के लिए बड़ा अभियान चलाया। अमरीका की क़ानून समीक्षाओं में उन्होंने खूब लेख लिखवाए।इनमें कहा गया कि दूसरे संशोधन को व्यक्तिगत अधिकार (हथियार रखने) की मंज़ूरी देनी चाहिए।उन्होंने 2008 में एक बड़ी जंग जीत ली जब द डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया बनाम हेलर केस में सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार कहा कि दूसरा संशोधन व्यक्तिगत अधिकार की मंजूरी देता है।सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की बेंच में जज विचारों के आधार पर दो खेमों में बंटे थे।रूढ़िवादियों ने व्यक्तिगत अधिकारों को हां कहा जबकि उदारवादियों ने सामूहिक अधिकारों की बात की।एनआरए ऐसे चुनावों में कोई असर नहीं डाल पाती जब फ़ासला बड़ा हो। लेकिन मामला नज़दीकी हो तो पांच फ़ीसदी वोटरों का झुकाव भी हार को जीत में बदल सकता है।
1994 में जब राष्ट्रपति क्लिंटन ने असॉल्ट हथियारों पर प्रतिबंध लगाया तो मुझे याद है कि मुझसे पूछा गया आपको इन हथियारों की क्या ज़रूरत है।मेरा जवाब था मुझे पहले कभी जरूरत नहीं पड़ी लेकिन अगर सरकार सोचती है कि मैं इन्हें हासिल नहीं कर सकता तो मुझे लगता है कि मैं उन्हें लेना चाहूंगा।मैं अभी जाऊंगा और प्रतिबंधों से पहले कम से कम 15 खरीदकर लाऊंगा।जब भी कोई राष्ट्रपति बंदूक़ ख़रीद पर रोक लगाने की सोचता है, लोग और अधिक हथियार खरीदते हैं। प्रोफ़ेसर ब्रायन आंस पैट्रिक, विशेषज्ञ, गन कल्चरएनआरए पहला ऐसा ग्रुप था जो ऑनलाइन था। इसके पास ईमेल बुलेटिन थे। इसका लोगों के बीच काफ़ी असर है।बहुत से लोग गन कल्चर के बारे में न्यूयॉर्क टाइम्स से ज़्यादा फोरम में पढ़ते हैं। एनआरए खुद तीन पत्रिकाएं छापता है।इनमें से एक राजनीतिक है, दूसरी शिकारियों के लिए है और तीसरी उनके लिए है जो बस गोली चलाना चाहते हैं।एनआरए के पास कम से कम 50 लाख ऐसे लोग हैं जिन्हें ये पत्रिकाएं मिलती हैं।इसके अलावा बहुत से छोटे-छोटे गुट हैं, जैसे टारगेट शूटर्स, वूमन एंड गन ऑर्गनाइजेशन, गे गन राइट्स ग्रुप।
अगर न्यूयॉर्क टाइम्स और गन कल्चर के ख़िलाफ़ उसकी घेराबंदी नहीं होती तो शायद एनआरए आज जितना शक्तिशाली नहीं होता।मैं 10 सालों की कवरेज से बता सकता हूं कवरेज जितनी ज़्यादा नकारात्मक होती है एनआरए को उतने ही ज़्यादा सदस्य मिलते हैं।इसकी एक वजह यह है कि यहां गन कल्चर को सामाजिक क्रांति समझा जाता है। इन सामाजिक क्रांतियों से लोगों में पहचान की भावना जगती है।ऐसी पहचान जो किसी मुश्किल से जुड़ी है। यहीं संघर्ष होता है और इसका नतीजा यह होता है कि लोग इसके साथ खड़े हो जाते हैं।International News inextlive from World News Desk