पारसी वंश वृद्धि रोकने वाले जीन की तलाश
2011 में इतनी थी पारसी आबादी
पारसी आबादी भारत के सबसे छोटे समुदायों में से एक है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में अब केवल 57264 पारसी ही जीवित बचे हैं। जबकि वर्ष 2001 में 69601 और 1940 में 114000 सदस्य इस समुदाय में थे। पारसी समुदाय के संरक्षण के लिए जरूरी है कि वह सेहतमंद हों और उनकी वंश वृद्धि हो। इसके लिए वैज्ञानिक अब उस जीन का पता लगाने में जुटे हैं जो उनकी वंशावली को रोकने के लिए जिम्मेदार है। बीरबल साहनी पुरासाइंसेस संस्थान बीएसआइपी के वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय बताते हैं कि यूनेस्को के सहयोग से किए जा रहे इस शोध में एस्टोनिया के डॉ. ज्ञानेश्वर चौबे सहयोग कर रहे हैं।
चार हजार डीएनए नमूनों की होगी मैपिंग
डॉ. राय ने बताया कि यूनेस्को के सहयोग से यह पता लगाने की कोशिश हो रही है कि पारसियों की गिरती सेहत व उनमें वंशावली रोकने के लिए आखिर कौन सा जीन जिम्मेदार है। द्विवर्षीय शोध अध्ययन में मुंबई व हैदराबाद में रहने वाली पारसी आबादी से चार हजार डीएनए के नमूने एकत्र किए गए हैं। जीन का पता लगने के बाद विलुप्त होते पारसी समाज की आबादी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
लखनऊ से भी है पारसियों का नाता
लखनऊ में भी दो दर्जन से अधिक पारसी परिवार हैं। मीराबाई मार्ग स्थित लखनऊ पारसी अंजुमन एलपीए के अध्यक्ष होमी सिपई के बेटे सरोश सिपई ने बताया कि पारसी बहुत शांत स्वभाव के होते हैं। उन्होंने कभी किसी के लिए कोई दिक्कत नहीं पैदा की। यही वजह है कि वह अपने समुदाय के बीच ही रहे और उसी में शादियां हुईं। हालांकि अब युवा समुदाय से बाहर भी विवाह कर रहे हैं लेकिन यह सच है कि आबादी तेजी से कम हो रही है। वैज्ञानिकों ने अपने आधार को साबित करने के लिए प्राचीन जैविक डीएनए का प्रयोग किया है। इस अत्याधुनिक विधा से यह साबित हो गया है कि भारत-पाकिस्तान के पारसी एक ही मूल से संजान में आए थे।
प्रो. सुनील बाजपेई, निदेशक, बीएसआइपी