ओपन स्पेस ऑफिस है सेहत के लिए ख़तरनाक
बहुत से ऐसे ऑफिस भी होते थे जिसमें हरेक कर्मचारी के लिए अलग से कमरा होता था। उसके कमरे में बिना इजाज़त कोई जा भी नहीं सकता था।
फिर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ज़माना आया। कम स्टाफ़ और कम लागत में ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने का चलन शुरू हो गया।मल्टीनेशनल कंपनियां अपने साथ एक और नई बला लेकर आईं। इस नई बला का नाम था ओपन स्पेस ऑफ़िस।दरअसल काम करने के लिए सुकून ज़रूरी है। और जब एक साथ कई लोग काम कर रहे होते हैं तो इससे उन्हें अपने काम में ध्यान लगाने के लिए मशक़्क़त करनी पड़ती है।
काम पूरा करने में दिक़्क़तरिसर्च में बहुत से कर्मचारियों ने इस बात को तसलीम किया है कि उन्हें ऑफिस में काम पूरा करने में दिक़्क़त होती है। लिहाज़ा घर लाकर काम पूरा करते हैं। इससे उन पर काम का दोगुना बोझ पड़ता है। जो वक़्त वो घर पर अपने परिवार और दोस्तों, रिश्तेदारों को दे सकते हैं, उससे वो महरूम हो जाते हैं।
अमरीका के इलिनॉय की मनोवैज्ञानित प्रोफेसर सैली ऑगस्टीन कहती हैं कि किसी भी कर्मचारी को उसकी सुविधा के मुताबिक़ काम का माहौल और जगह मुहैया कराना कंपनी का फ़र्ज़ है। अगर ऐसा नहीं हो पाता तो ये बहुत शर्म की बात है। गहमा-गहमी के माहौल में काम तो हो सकता है। लेकिन काम के जैसे नतीजे आप चाहते हैं वो शायद नहीं मिल सकते। कर्मचारियों को एक दूसरे के क़रीब लाने के और भी बहुत से तरीक़े हो सकते हैं। जैसे लंच टाइम, या चाय का समय सभी के लिए एक मुक़र्रर किया जा सकता है। जहां सभी मिल कर एक दूसरे से हर तरह की बात कर सकते हैं। लोगों में मेल-जोल बढ़ाने के लिए वर्कशॉप कराई जा सकती हैं।
वैसे तो किसी भी काम को करने के लिए फ़ोकस करने की ज़रूरत होती है। लेकिन बहुत से ऐसे काम हैं जिनमें अगर ठीक से ध्यान लगाने का मौक़ा न मिले, तो काम हो ही नहीं सकता। जैसे, विज्ञापन बनाने का काम, लिखने का काम, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग या फिर फाइनेंस का काम।