अब से कुछ साल पहले अगर आपको किसी ऑफिस में जाने का मौक़ा मिला होगा तो आपने देखा होगा कि हरेक कर्मचारी के बैठने के लिए अलग जगह टेबल कुर्सी अलमारी होती थी।

बहुत से ऐसे ऑफिस भी होते थे जिसमें हरेक कर्मचारी के लिए अलग से कमरा होता था। उसके कमरे में बिना इजाज़त कोई जा भी नहीं सकता था।

फिर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ज़माना आया। कम स्टाफ़ और कम लागत में ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने का चलन शुरू हो गया।

मल्टीनेशनल कंपनियां अपने साथ एक और नई बला लेकर आईं। इस नई बला का नाम था ओपन स्पेस ऑफ़िस।

उनका तर्क है कि इससे सभी कर्मचारियों का रिश्ता मज़बूत होता है। हल्के-फुल्के माहौल में सभी कर्मचारी हंसी-मज़ाक़ करते हुए काम करते हैं। लेकिन रिसर्च के नतीजे कुछ और ही बयान करते हैं।

ये नतीजे बताते हैं कि ऐसे ऑफिस में काम करने से कर्मचारियों की क्रिएटिविटी और सेहत पर बुरा असर असर पड़ता है। साथ ही याददाश्त भी कमज़ोर होती है।

दरअसल काम करने के लिए सुकून ज़रूरी है। और जब एक साथ कई लोग काम कर रहे होते हैं तो इससे उन्हें अपने काम में ध्यान लगाने के लिए मशक़्क़त करनी पड़ती है।

 

काम पूरा करने में दिक़्क़त

रिसर्च में बहुत से कर्मचारियों ने इस बात को तसलीम किया है कि उन्हें ऑफिस में काम पूरा करने में दिक़्क़त होती है। लिहाज़ा घर लाकर काम पूरा करते हैं। इससे उन पर काम का दोगुना बोझ पड़ता है। जो वक़्त वो घर पर अपने परिवार और दोस्तों, रिश्तेदारों को दे सकते हैं, उससे वो महरूम हो जाते हैं।

ओपन स्पेस ऑफिस का सिस्टम इसलिए लाया गया था, ताकि लोग एक खुले माहौल में एक दूसरे से नए आइडियाज़ पर बात कर पाएंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। सभी लोग काम की बात काम और गपशप करते ज़्यादा नज़र आते हैं। कौन फोन पर किस से क्या बात कर रहा है, ऑन लाइन किस के लिए क्या ऑर्डर कर रहा है, सभी कुछ सब के सामने आ जाता है।

 

काम के नतीजों पर असर

अमरीका के इलिनॉय की मनोवैज्ञानित प्रोफेसर सैली ऑगस्टीन कहती हैं कि किसी भी कर्मचारी को उसकी सुविधा के मुताबिक़ काम का माहौल और जगह मुहैया कराना कंपनी का फ़र्ज़ है। अगर ऐसा नहीं हो पाता तो ये बहुत शर्म की बात है। गहमा-गहमी के माहौल में काम तो हो सकता है। लेकिन काम के जैसे नतीजे आप चाहते हैं वो शायद नहीं मिल सकते। कर्मचारियों को एक दूसरे के क़रीब लाने के और भी बहुत से तरीक़े हो सकते हैं। जैसे लंच टाइम, या चाय का समय सभी के लिए एक मुक़र्रर किया जा सकता है। जहां सभी मिल कर एक दूसरे से हर तरह की बात कर सकते हैं। लोगों में मेल-जोल बढ़ाने के लिए वर्कशॉप कराई जा सकती हैं।

वैसे तो किसी भी काम को करने के लिए फ़ोकस करने की ज़रूरत होती है। लेकिन बहुत से ऐसे काम हैं जिनमें अगर ठीक से ध्यान लगाने का मौक़ा न मिले, तो काम हो ही नहीं सकता। जैसे, विज्ञापन बनाने का काम, लिखने का काम, कंप्यूटर प्रोग्रामिंग या फिर फाइनेंस का काम।

बहुत से दफ़्तरों में माहौल बहुत अजीब होता है। लोगों को ब्रेक लेने के लिए अपनी जगह से उठने में संकोच होता है। प्रोफेसर ऑगस्टीन कहती हैं कि अलग कमरे में काम करना बहुत बार आपकी कमज़ोरी भी माना जाने लगता है।

इसीलिए ऐसे ऑफिस बनाए जा रहे हैं, जहां सभी लोग एक साथ बैठ सकते हैं। अगर उन्हें बाहर के शोर से दिक़्क़त होती है, तो, वो अपनी जगह को ब्लॉक करके शोर को रोक सकते हैं।

बहरहाल, अगर सभी कंपनियां अपने कर्चारियों की क़ाबिलियत का बेहतर इस्तेमाल करके, ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाना चाहती हैं, तो, उन्हें अपने कर्मचारियों को एक बेहतर माहौल देना होगा।


Posted By: Satyendra Kumar Singh