भारत की 8 बातें जो नेपालियों को पसंद नहीं
दोनों देशों के बीच 1,700 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है जिसके दोनों ओर रहने वाले लोग ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और राजनीतिक रूप से बहुत ही घुले-मिले हैं।लेकिन इतिहास बताता है कि रिश्ते हमेशा मधुर नहीं रहते हैं।समय-समय पर इन दोनों देशों के रिश्तों में भी तनाव आया है, और कभी-कभी तो हालात यहां तक पहुंचे हैं कि उनसे उबरने में ख़ासा समय लगा।नेपाल में पिछले दिनों नया संविधान लागू होने के बाद भी हालात कुछ-कुछ ऐसे ही पैदा हो रहे हैं, ख़ासकर इस संविधान को लेकर भारत की 'ठंडी प्रतिक्रिया' के बाद।संविधान पर 'तनातनी'
ऐसी संधियों की एक लंबी सूची है जिन्हें नेपाली पक्ष असमान मानता है।1950 की शांति और मित्रता संधि से लेकर इस सूची में गंडक, कोशी और महाकाली जल संधियां शामिल हैं। बहुत से लोगों को लगता है कि नेपाल को उसके हिस्से का पानी नहीं दिया जा रहा है।
पिछले साल अपने नेपाल दौरे में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्थिति में सुधार का वादा किया था, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।5. सीमावर्ती इलाकों का ‘अतिक्रमण’नेपाल की ज़मीन के अतिक्रमण से जुड़ी शिकायतें भी दोनों देशों के बीच अक्सर तनाव का कारण बनती हैं।हालांकि ये समस्या कुछ ही सीमावर्ती इलाक़ों तक सीमित है, लेकिन इससे दोतरफ़ा रिश्तों में समस्याएं तो आ ही जाती हैं।मिसाल के तौर पर कालापानी और लिपुलेक के इलाक़ों में नेपाली पक्ष का कहना है कि भारत ने (चीन से लगने वाले) अहम रणनीतिक बिंदुओं का अतिक्रमण कर दिया है, जो उसके मुताबिक़ नेपाली क्षेत्र का हिस्सा हैं।6. 'असंवेदनशील' भारतीय मीडिया
बहुत से लोग मानते हैं कि नेपाल में 'बढ़ते हुए चीन के असर' को लेकर भारत की चिंताओं को ज़रूरत से ज़्यादा तूल दिया जाता है।ज़्यादातर नेपाली लोगों का मानना है कि कोई भी देश नेपाल के इतने क़रीब नहीं हो सकता जितना भारत है क्योंकि उनके बीच बहुत सी समानताएं हैं।लेकिन वो इस बात से ख़ुश नहीं हैं कि भारत नेपाल जैसे छोटे देश के मुश्किल हालात को नहीं समझ रहा है। जबकि नेपाल दो बड़े देशों के बीच संतुलन साधने में जुटा है।