भारत में स्मार्टफ़ोन बड़े धड़ल्ले से बिक रहे हैं. फ्री वाई-फाई जैस मुद्दे राजनीति के केंद्र में आ गए हैं. लेकिन आम भारतीय इंटरनेट पर वीडियो देखने के ज़्यादा शौक़ीन नहीं प्रतीत होते.


भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन वीडियो के मामले में लोग ऑफ़लाइन वीडियो देखना ज़्यादा पसंद नहीं करते.भारतीयों को इस आदत की वजह से कई लोगों को उठाना पड़ता है नुकसान.पढ़ें रिपोर्ट विस्तार सेगुड़गांव के एक भीड़-भाड़ वाले बाज़ार में बड़ी साधारण सी दिखने वाली एक डीवीडी की दुकान में ऐसी डीवीडी बिक रही हैं जिसमें 10 फ़िल्में होती है- भले ही वो ख़राब पिक्चर क्वालिटी वाली ही क्यों ना हो.26 साल के असीम मंडल अक्सर इस दुकान पर आते हैं. उन्होंने अपना मेमरी कार्ड दुकानदार को दिया और दुकानदार ने बदले में वैसा ही आठ जीबी का मेमोरी कार्ड उन्हें वापस लौटा दिया.उन्होंने इस कार्ड में बॉलीवुड की हालिया विवादास्पद फ़िल्म ली है जो वो अपने स्मार्टफ़ोन पर देखेंगे.क़ीमत
अगर फ़िल्म अच्छी हो तो वे अपने कमरे में साथ रहने वाले दोस्त के लैपटॉप की मदद से उसे अपने हार्डडिस्क में रख लेते हैं या फिर दोनों ही एक साथ लैपटॉप पर फ़िल्म देखते हैं.मंडल ने पिछले साल अक्तूबर में पाँच हज़ार रुपए में माइक्रोमैक्स का मोबाइल खरीदा था जिसमें मौजूद 2-जी कनेक्शन पर वीडियो देखना लगभग नामुमकिन है.


उन्होंने व्हाट्सएप इस्तेमाल करने और मेमरी कार्ड की मदद से वीडियो देखने के लिए स्मार्टफ़ोन खरीदा था.मंडल की तरह लाखों भारतीय अपने स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल वीडियो देखने और संगीत सुनने के लिए मेमरी कार्ड के माध्यम से करते हैं, न कि वीडियो डाउनलोड करने या ऑनलाइन देखने-सुनने के लिए.भारतीय के इस आदत के पाँच प्रमुख कारण हैं. जिनके बारे में हम आपको एक-एक बताएंगे.3- डेटा प्लान- मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करना खर्चीला है. तेज़ डेटा प्लान वाली योजनाओं में यूजर्स को बहुत सीमित डेटा मिलता है. एक अच्छी पिक्चर क्वालिटी वाली बॉलीवुड फ़िल्म डाउनलोड करने में एक जीबी डाटा खर्च हो जाता है.एयरटेल 3-जी सेवा का एक जीबी डेटा 249 रुपए में मुहैया कराता है जबकि औसतन भारतीय एक महीने में 116 रुपए अपने मोबाइल फ़ोन पर खर्च करते हैं.4- वाई-फ़ाई हॉटस्पॉट- यूज़र्स सस्ते और तेज़ वाई-फ़ाई इस्तेमाल करना चाहते हैं. लेकिन अधिकांश 2-जी डेटा यूज़र्स सस्ते वाई-फ़ाई का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं और ना ही वे महंगे कॉफी शॉप में जाते हैं जहां मुफ्त वाई-फ़ाई सेवा उपलब्ध होती है.कुछ शहरों मसलन बैंगलुरू, पुणे और कोलकाता में कुछ सार्वजनिक स्थलों पर मुफ्त वाई-फ़ाई उपलब्ध तो है लेकिन उनका प्रभाव बहुत कम है.

5- डाउनलोड की समस्या- कभी-कभार मुफ्त वाई-फ़ाई सेवा इस्तेमाल करने के बावजूद भारतीय लोगों की आदत यूट्यूब पर वीडियो देखने की नहीं है. वे वही वीडियो डाउनलोड करते हैं जो आसानी से ऑनलाइन उपलब्ध नहीं होता है.वीडियो डाउनलोड करने वाला टॉरेंट ऐप बहुत लोकप्रिय नहीं है. इसलिए भारतीय लोग वीडियो के प्रति अपने लगाव को पूरा करने के लिए मेमरी कार्ड का सहारा लेते हैं.लेकिन भारतीयों को अपनी इन आदतों की वजह से कुछ नुकसान भी उठाना पड़ता है.नकली वीडियोभारत में लोगों के स्मार्टफ़ोन पर उपलब्ध अधिकांश वीडियो नकली होते हैं. इससे सिर्फ फिल्म उद्योग को ही नहीं बल्कि ऑफ़लाइन वीडियो के इस्तेमाल से मोबाइल ऑपरेटर्स को भी ख़ासा नुकसान उठाना पड़ता है.एक मोबाइल ऑपरेटर कंपनी की मैनेजर नाम नहीं बताने की शर्त पर कहती हैं, "हमें वीडियो की वजह से डेटा ट्रैफिक मिलता है लेकिन ये वीडियो ज़्यादातर व्हाट्सएप या ईमेल पर वीडियो या यूट्यूब लिंक शेयर करने की वजह से होता है."
ऑपरेटर्स वीडियो से जुड़ी सेवा देने की कोशिश कर रहे हैं. एयरटेल की 'तेरामेरा' सेवा के तहत आप 35,000 शॉर्ट वीडियो में से एक वीडियो एक रुपए के खर्च में देख सकते हैं लेकिन उनकी ऐसी कोई योजना नहीं है जिसके तहत यूजर्स फ़िल्मों को ऑफ़लाइन देख सके या डाउनलोड कर सके.लगता है कि अगर ऐसा हो भी जाता है तो भी ऑफलाइन वीडियो ही भारत के मोबाइल स्क्रीन पर छाए रहेंगे.

Posted By: Satyendra Kumar Singh