चीन क्यों बनना चाहता है सार्क का सदस्य?
आम तौर पर चीनी विश्लेषक और अर्थशास्त्रियों की जमात ये मानती है कि सार्क का उस तरह से विकास नहीं हुआ जिस तरह से आसियान या फिर यूरोपीय यूनियन जैसे दूसरे मंचों का हुआ है.सार्क इन सबसे पीछे रह गया है. इसमें शामिल देशों के बीच आपसी कारोबार उनके कुल कारोबार का पांच फ़ीसदी भी नहीं होता है.सार्क एक आर्थिक सहयोग का मंच है. आर्थिक मंच एक तरह से राजनीतिक संबंधों को मज़बूत करने का मंच भी होता है.
वैसे ये चीन के लिए बेहतर भी है क्योंकि वह सार्क के मंच का इस्तेमाल सार्क देशों से अपने संबंधों को बढ़ाने के लिए करता है.पूर्ण सदस्यता का असरचीन सार्क का पूर्ण सदस्य बनना चाहता है क्योंकि इससे ना केवल चीन को फ़ायदा होगा बल्कि सार्क देशों को भी होगा.
चीन सार्क की सदस्यता के लिए पात्रता भी पूरी करता है. चीन का सार्क के आठ सदस्य देशों में से पांच के साथ कारोबारी रिश्ते हैं.चीनी अधिकारी इसलिए सार्क प्लस वन देश या फिर सार्क में डायलॉग पार्टनर की भूमिका के लिए दबाव डालते रहे हैं, क्योंकि चीन सार्क के मंच पर बड़ी भूमिका निभाना चाहता है.