जानिए, बर्थ डे पर फूंक मार कर क्यों बुझाते हैं मोमबत्तियां
यहां से हुई शुरुआत बताते हैं कि बर्थ डे केक पर मोमबत्तियां लगाने और बुझाने की परंपरा प्राचीन ग्रीस (यूनान) से आई है। इस परंपरा की शुरुआत उस समय हुई थी जब ग्रीस के लोग केक पर जलती हुई मोमबत्तियां लेकर अपने भगवान के पास जाते थे। भगवान के पास पहुंचकर ये लोग मोमबत्तियों से ग्रीक भगवान का चिह्न बनाते थे। चिह्न को बनाने के बाद इन मोमबत्तियों को बुझा दिया जाता था। यूनानी लोग मोमबत्तियों के धुएं को शुभ मानते हैं। इन लोगों का मानना है कि मोमबत्तियों का उड़ता धुआं सीधे भगवान के पास जाता है। इसे भी मानते हैं शुरुआत
वहीं कुछ तथ्य ऐसा भी बताते हैं कि केक पर मोमबत्तियां लगाने की परंपरा जर्मनी की देन है। बताते हैं कि 1746 में पहली बार केक के ऊपर कैंडल लगाई गई। ये मौका था धार्मिक और सामाजिक सुधारक निकोलर जिंजोनडार्फ के बर्थडे का। इस दिन बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा होकर सामने आए और केक के ऊपर मोमबत्तियां जलाकर इनके बर्थडे को त्योहार की तरह मनाया।
वहीं कुछ लोग ये भी कहते हैं जर्मनी की इस परंपरा के शुरू होने के पीछे कारण कुछ और ही था। ये परंपरा जर्मनी के प्रसिद्ध त्योहार किंडफेस्ट के दौरान सामने आई। वहीं अब बात करें कि ये परंपरा भारत कैसे आई। इसपर अनुमान लगाया जाता है कि शर्तिया ये पश्िचम भारत की देन है। वैसे भारतीय संस्कृति पर गौर करें तो किसी भी खुशी के मौके पर मोमबत्तियों को बुझाने को शुभ नहीं माना जाता। इसकी जगह पर सरसों के तेल के दिये को प्रज्वलित किया जाता है।Interesting Newsinextlive fromInteresting News Desk