भारत में इंटरनेट पड़ोसी देश श्रीलंका से भी महंगा है. ऐसा क्यों है इसके पीछे की कहानी थोड़ी जटिल है.


एक तरफ़ सरकार दो लाख ग्राम पंचायतों को ब्रॉडबैंड इंटरनेट से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क स्थापित कर रही है.वहीं दूसरी तरफ़ इंटरनेट कंपनियों पर टैक्स और लाइसेंस फीस का दबाव बढ़ाया जा रहा है.इंटरनेट सर्विस प्रदाता कंपनियों के संगठन यानी ‘इसपाई’ के अध्यक्ष राजेश छरिया ने बीबीसी हिन्दी से बातचीत में स्थिति स्पष्ट की है.रजेश छरिया ने बताया, “इंटरनेट कंपनियां भारत सरकार को 35 से 36 फ़ीसदी टैक्स चुका रही हैं जो दुनिया के किसी भी देश से ज़्यादा है. अभी जो अतिरिक्त 8 फ़ीसदी लाइसेंस फीस लगाई जानी है वो तो डाटा नेटवर्क ट्रांसफर के हर पड़ाव पर देनी पड़ेगी. यानी कि एक इंटरनेट कनेक्शन पर ही कई चरणों में लाइसेंस फीस लगेगी.”इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर पर निवेश से 'नुकसान'
इसपाई का कहना है कि ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवा यूज़र्स के घरों तक पहुंचाने के लिए कंपनियों को इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश करना पड़ता है, जिसकी भरपाई कई वर्षों में होती है.इसकी एक बड़ी वजह भारत में इंटरनेट की कीमतें भी है.अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ यानी आईटीयू की रिपोर्ट के अनुसार भारत में इंटरनेट 60 से ज्यादा देशों से महंगा है.


आईटीयू के अनुसार किफायती ब्रॉडबैंड देने वाले देशओं की सूची में भारत 93वें स्थान पर हैं, जबकि मोबाइल इंटरनेट पर 67वें स्थान पर.अगर एशियाई देशों से ही तुलना करें तो पता चलता है कि भारत में इंटरनेट मॉरीशस, माल्टा और पड़ोसी देश श्रीलंका से भी महंगा है.मोबाइल इंटरनेट भी है महंगामोबाइल इंटरनेट बेहद सीमित तरीके से यूज़र्स तक कम कीमतों में पहुंच रहा है, लेकिन वो सिर्फ इंटरनेट का स्वाद देने जैसा है.ज़्यादा प्रयोग करने पर वो ब्रॉडबैंड से कहीं ज़्यादा महंगा साबित होता है.राजेश छरिया कहते हैं, “मोबाइल पर इंटरनेट देने के लिए करोड़ों रुपए देकर स्पेक्ट्रम खरीदने पड़ते हैं और कुछ ही वर्षों में तकनीक पुरानी हो जाती है. लिहाज़ा अपना निवेश निकालने के लिए कंपनियों के पास कम समय होता है.”ऐसे में सरकार के सामने पारदर्शी नीतियां बनाने और लोगों, कंपनियों को प्रोत्साहित करने की बड़ी चुनौती है.

Posted By: Satyendra Kumar Singh