मानव के वास्तविकता को जानना ही आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता है
आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता की परिभाषा क्या है? राजू द्विवेदी, गोरखपुर
आप प्रकृति में कभी भी किसी को भी यह भूलते हुए नहीं देखेंगे कि वह कौन है या फिर यह नहीं देखेंगे कि कोई कुछ अलग होना चाहता हो। सेब का पेड़ कभी यह नहीं चाहता कि उस पर संतरे उगें, कुत्ता कभी भी पक्षी की देखा देखी यह सोचकर छत से नहीं कूदता कि वह भी पक्षी की तरह उड़ सकता है, हाथी दूसरे जानवरों को नहीं खाता है और बाघ पत्तियां नहीं खाता है। पक्षी दिन में चहचहाते और उड़ते हैं, जबकि बाघ रात में शिकार की खोज में निकलते हैं। लेकिन मनुष्यों को नहीं पता कि वे कौन हैं और इसीलिए वे नहीं जान पाते कि उन्हें अपना जीवन कैसे जीना है।
हमने खुद की पहचान इन बातों तक सीमित कर ली है कि हम काम क्या करते हैं, हम कैसे दिखते हैं, हमारे पास पैसा कितना है और हमारे रिश्ते किस तरह के हैं। अपनी पहचान बताते हुए हम कहते हैं कि 'मैं एक डॉक्टर हूं’, या 'मैं एक इंजीनियर हूं’, या 'मैं अमीर हूं’, या 'मैं फलां-फलां का पति या पत्नी हूं।‘ यह आप नहीं हैं। आप परमात्मा हैं। आप चैतन्य हैं। आप आत्मा हैं। जब तक हम अनजाने में अपनी पहचान अपने शरीर, उसकी भूमिकाओं, उसके इतिहास और उसके घटनाचक्रों तक सीमित रखेंगे, तब तक हम अज्ञानता में ही रहेंगे।आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता इस सच को जानना है कि हम वास्तव में कौन हैं। जब हम यह जान जाते हैं कि हम परमात्मा हैं, हम प्रेम हैं, हम चैतन्य हैं, तब हमारे कुछ करने से दुनिया में परिवर्तन आता है। हम सलीके से सच्चाई को जानते हुए जीवन जीते हैं न कि अज्ञानता में।— साध्वी भगवती सरस्वतीईश्वर एक है, तो दुनिया में 4,000 से अधिक धर्म क्यों हैं?
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