मुसलमान क्यों ख़िलाफ़त चाहते हैं?
आईएस प्रमुख अबू बकर अल-बग़दादी ने ख़ुद को 'ख़लीफ़ा' यानी दुनिया के मुसलमानों का नेता बताया.ख़िलाफ़त क्या है? ये कैसे शुरू हुआ. ख़लीफ़ा कौन हैं? आईएस की घोषणा के पीछे उनकी कौन सी महत्वाकांक्षाएं छिपी हैं?विश्लेषण कर रहे हैं बीबीसी के एडवर्ड स्टुअर्टजून में इस्लामिक स्टेट ने जब 'ख़िलाफ़त' की घोषणा की तो ऐसा लगा कि उसकी महत्वाकांक्षाओं और ऐतिहासिक फंतासी को स्वीकृति मिल गई हो.अल-बग़दादी का कहना था कि 'ख़िलाफ़त' के प्रति अपनी निष्ठा जाहिर करना दुनिया भर के मुसलमानों की धार्मिक जिम्मेदारी है.मध्य-पूर्व क्षेत्र में इसके ख़िलाफ़ तीखी प्रतिक्रिया हुई और आईएस को भारी आलोचना का सामना करना पड़ा.
पनख़र्स्त कहते हैं कि पहले चार ख़लीफ़ाओं को आदर्श ख़लीफ़ा माना जाता है. वो कहते हैं कि सच्चे ख़लीफ़ा ख़ुद भी क़ानून से ऊपर नहीं होते.तख्तापलट
शिया मुसलमान इतिहास की इस व्याख्या को स्वीकार नहीं करते. वो मानते हैं कि पैगंबर के चचेरे भाई अली को ख़लीफ़ा न बनने देने के लिए पहले दो ख़लीफ़ाओं ने आपस में मिलकर एक सफल तख्तापलट किया था.
पहली ख़िलाफ़त को लेकर हुआ यह विवाद इस्लाम के इतिहास में सबसे लंबे समय से चल रहा विवाद है.लेकिन आज के सुन्नी मुसलमानों, जिनमें से अधिकांश तानाशाही शासन में रहते हैं, वो आम सहमति से बने ख़लीफ़ा शासन को लेकर गहरा आकर्षण हो सकता है.ख़िलाफ़त को लेकर आकर्षण का दूसरा बड़ा कारण ये है कि ये मुसलमानों को मुस्लिम शासकों की महानता की याद दिलाता है.पहले चार 'आदर्श ख़लीफ़ाओं' के दौर के बाद उम्मयद और अब्बासी शासन के शाही ख़लीफ़ाओं का दौर आया.इस्लाम का स्वर्ण युगइतिहासकार प्रोफेसर ह्यूग केनेडी का कहना है, "पैगंबर की मृत्यु के 70 साल बाद स्पेन और मोरक्को से लेकर मध्य एशिया और फिर मौजूदा पाकिस्तान के दक्षिणी छोर तक फैला मुसलमानों का विशाल साम्राज्य एक मुसलमान नेता के अधीन रहा."
ओटोमन सुल्तान ने अगले 400 सालों तक इस्लामिक दुनिया पर शासन किया.ख़िलाफ़त आंदोलन का अंत
इतिहासकार ह्यूग केनेडी बताते हैं कि उनकी वर्दी और झंडे का रंग जानबूझकर काला रखा गया है ताकि इससे इस्लाम के स्वर्ण युग की याद आए. 8वीं सदी में अब्बासी भी अपने दरबार में काले रंग की ड्रेस पहनते थे.उनका मूल नाम, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवान उस दौर की याद दिलाता है जब दो देशों के बीच कोई सरहद नहीं थी, क्योंकि दोंनो के इलाक़े इस्लामी ख़िलाफ़त का हिस्सा थे.आईएस की सफलता से प्रतीत होता है कि ख़िलाफ़त कितना गंभीर और अत्यंत महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षा बन चुकी है.