Movie review: कब्रिस्तान में अंताक्षरी जैसी है फिल्म 'वेलकम बैक'
हंसने और ठहाके लगानेअनीस बज्मी का फार्मूला पिछली फिल्म में काम कर गया था। इस फिल्म में भी कई हिस्सों में हंसी आती है। खास कर फिल्मों के हवाले से लिए गए सीन और द्विअर्थी संवादों पर दर्शक हंसते हैं। शालीन दर्शकों के अंदर भी एक अश्लाल व्यक्ति बैठा होता है, जो एडल्ट जोक और सीन पर मजे लेता है। सिनेमा मनोरंजन की ऐसी व्यक्तिगत प्रक्रिया है, जो थिएटर में समूह में संभव होती है। थिएटर में भीड़ की मानसिकता काम करती है। हम उस समूह का हिस्सा हो जाते हैं। बाकी दर्शकों की तरह हंसने और ठहाके लगाने लगते हैं। बाद में संकोच और पछतावा होता है कि हम बह क्यों गए थे? वेलकम बैक को देखते हुए ऐसा लग सकता है।Welcome BackDirector: Anees Bazmeecasrt: Anil Kapoor, Nana Patekar, John Abraham,shruti hasan,paresh rawal
द्विअर्थी संवादों की बौछार
अनीस बज्मी ने प्रसंगों को जोड़ कर फिल्म बनाई है। उय और मजनू शरीफ होने के बाद अब शादी करना चाह रहे हैं। तभी उन्हें पता चलता है कि उनकी एक बहन भी है, जिसकी शादी करनी है। बहन की शादी के लिए वे योग्य लड़के की तलाश में निकलते हैं। साथ ही खुद एक ही लड़की के दीवाने हो जाते हैं। स्थितियां हास्यास्पद होती हैं। इन स्थितियों में गंदे, फूहड़ और द्विअर्थी संवादों की बौछार जारी रहती है। फिल्म इंडस्ट्री में माना जाता है कि कभी चवन्नी छाप दर्शकों को ऐसी फिल्में अच्छी लगती र्थी। अभी मल्टीप्लेक्स के दौर में भी अगर इन फिल्मों को दर्शक मिल रहे हैं तो हमें बदले हुए दर्शकों के प्रोफाइल की ठीक से परख करनी होगी। नसीरूद्दीन शाह, परेश रावल, अनिल कपूर और नाना पाटेकर व्यर्थ दृश्यों को भी रोचक बनाने की सफल कोशिश करते हें। राजप्रासाद से कम नहीं
सवाल है कि ये दिग्गज अभिनेता ऐसे फूहड़ कंसेप्ट के लिए क्यों और कैसे राजी होते हैं? अपनी गरिमा और छवि भुला कर वे ऐसी फिल्में क्यों करते हैं? श्रुति हसन और जॉन अब्राहम के बीच होड़ सी लगी है कि कौन कितना निराश करता है। दोनों ही भाव और अभिव्यक्ति में कमजोर हैं। इस फिल्म में अंकिता श्रीवास्तव को डिंपल कपाडि़या के साथ पेश किया गया है। फिल्म खत्म हाने पर उन्होंने लंबी सांस लेने के बाद कहा होगा कि किस से पाला पड़ा। अंकिता श्रीवास्तव को फिल्म में जितना स्पेस दिया गया है, उससे वह अच्छा प्रभाव छोड़ सकती थीं। फिर भी वह निराश करती हैं। इस फिल्म को देखते हुए यह एहसास होता है कि मध्य पूर्व एशिया के अमीरों के पास कितनी आलीशान इमारतें हैं। उनकी इमारतें किसी राजप्रासाद से कम नहीं हैं। फिल्मों और टीवी में तो ऐसे सेट तैयार किए जाते हैं।
Review by: Ajay Brahmatmajabrahmatmaj@mbi.jagran.comHindi News from Bollywood News Desk