सफलता के लिए गांठ बांध लें यह एक बात, वरना जिंदगी भर पड़ेगा पछताना
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कोडेक का नाम सभी जानते हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि इस फील्ड का सबसे पहला और बड़ा खिलाड़ी होने के बावजूद कोडेक बर्बाद हो गया। जॉर्ज ईस्टमैन ने 1888 में कोडेक की स्थापना की थी। 1888 से 1968 तक 80 साल के इस लंबे टाइम में कोडेक ने दुनियाभर की 80 प्रतिशत मार्केट पर कब्जा कर लिया था। फिल्म कैमरा अगर घर-घर पहुंचा तो वो कोडेक की ही वजह से।कोडेक तीन चीजें बनाता था- कैमरा, फिल्म रोल और फोटो पेपर। कोडेक का फिल्म कैमरा बहुत सस्ता था इसलिए उसमें प्रॉफिट मार्जिन कम था। कोडेक की सारी कमाई फिल्म रोल और फिल्म पेपर से ही होती थी। एक बार जिसने कैमरा खरीद लिया, उसे बाकी के दोनों आइटम्स बार-बार खरीदनी पड़ते थी। जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी आगे बढ़ी, मार्केट में फिल्म कैमरा की जगह डिजिटल कैमरा आने लगे। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 1975 में स्टीव नाम के कोडेक के ही इंजीनियर ने सबसे पहले डिजिटल कैमरा बनाया था।
कोडेक इस बात को जानता था कि आगे आने वाला जमाना डिजिटल कैमरा का ही है, लेकिन फिर भी वह इसे मानने को तैयार नहीं था क्योंकि उसने फिल्म रोल और पेपर बनाने के लिए बड़े-बड़े प्लांट सेटअप कर रखे थे। वो रिस्क नहीं लेना चाहता था। 1990 के दशक में जब सोनी, कैनन, निकॉन जैसी कंपनियों के डिजिटल कैमरा की डिमांड मार्केट में बढ़ने लगी, तब कोडेक को अहसास हुआ कि उसने गलती कर दी है। उसने अपना डिजिटल कैमरा लॉन्च किया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। आखिरकार 2012 में कोडेक बंद हो गई।
कम्फर्ट जोन से बाहर निकल बदलाव को अपनाएंफ्रेंड्स, अक्सर जब हम थोड़ा कमाने लगते हैं और हमें लगता है कि जिंदगी ठीकठाक चल रही है तो हम आगे बढ़ने की कोशिश करना छोड़ देते हैं, और सोचने लगते हैं कि बस ऐसे ही पूरा जीवन कट जाएगा। हम अपने कम्फर्ट जोन में चले जाते हैं और बदलाव से डरने लगते हैं। लेकिन कोडेक की कहानी हमें सिखाती है कि वक्त के साथ बदलाव बहुत जरूरी है, वर्ना दूसरे आपकी जगह लेने में जरा भी देर नहीं लगाएंगे इसलिए कैलकुलेटेड रिस्क लेते रहें।काम की बात
1. कम्फर्ट जोन में बने रहना और बदलाव से डरना ये दोनों चीजें हमें सफलता की रेस में पीछे कर देती हैं।2. वक्त के साथ बदलाव जरूरी है, अन्यथा कोई दूसरा आपकी जगह लेने में जरा भी देर नहीं लगाएगा।
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