पुराने ज़माने की शानदार कारें आज भी मन मोह लेती हैं. लेकिन ज़्यादातर पुरानी गाड़ियां तेल बहुत खाती थीं. अगर ये बिजली से चलें तो? बीबीसी ऑटो ने कुछ ऐसी गाड़ियां चुनी हैं जो बिजली से चलें तो कयामत कर दे.
By: Surabhi Yadav
Updated Date: Tue, 09 Apr 2013 05:37 PM (IST)
फॉक्सवैगन बीटल्स क्लासिक:कैलिफ़ोर्निया स्थित जेलिक्ट्रिक मोटर्स ‘इन्वेस्टमेंट ग्रेड’ क्रेडिट रेटिंग का दर्जा हासिल फॉक्सवैगन की क्लासिक बीटल को 100% इलेक्ट्रिक कार में बदलने की योजना बना रही है. इससे प्रेरित होकर बीबीसी ऑटो ने गैस से चलने वाली कुछ विंटेज कारों को चुना है जो इलेक्ट्रिक व्हीकल (ईवी) में बदलने जाने के लिए प्रमुख दावेदार हो सकती हैं.
लैंबोर्गिनी यूरैको (1973-79): लैंबोर्गिनी यूरैको को मिउरा और काउन्टेक जैसी मशहूर कारें बनाने वाले मार्सेलो गान्डिनि ने डिज़ाइन किया है. टू सिटर, बेहद तेज़ और भयंकर महंगी कारें बनाने वाली कंपनी ने यह ठीक-ठाक ताकतवर, तुलनात्मक रूप से खरीदने योग्य और फ़ोर सिटर कार बनाई जो कि अच्छी-ख़ासी चली भी. कंपनी ने छह साल के दौरान 791 कारें बनाईं जो 2, 2.5 और 3 लीटर के वी-8 इंजन से लैस थीं जो क्रमशः 180, 217 और 247 हॉर्सपावर की ताकत देते थे. यूरैको ईवी में कन्वर्ट होने के लिए अच्छी गाड़ी है.
ट्रिंफ टीआर7 (1975-81): भविष्य के लिए डिज़ाइन की गई लेकिन अविश्वसनीयता के लिए मशहूर हुई ट्रिंफ़ टीआर7, चाहे कूप हो या कंवर्टिबल, निर्विवाद रूप से ईवी में बदलाव के लिए उपयुक्त है. इसमें ईवी हार्डवेयर को लगाने के लिए पर्याप्त जगह है और ऐसा लगता नहीं कि कोई इसके दो लीटर इंजन के लिए रोएगा. क्योंकि ट्रिंफ ने 1,12,000 कूप और 29,000 कनवर्टिबल गाड़ियां बनाई थीं, इसलिए इनके मिलने में भी कोई परेशानी नहीं होगी. हां, चालू हालत में मिलने में दिक्कत हो सकती है लेकिन हमारे प्रयोग के लिए इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
शेवरले कोर्वेट (1968-82): हालांकि इसमें इसकी कोई ग़लती नहीं थी, लेकिन तीसरी पीढ़ी की कोर्वेट एक मज़ाक ही थी. कड़े उत्सर्जन नियमों के बोझ तले दबकर अमरीका की यह स्पोर्ट्स कार अपनी शानदार शरीर के हिसाब से प्रदर्शन नहीं कर सकी. 1980 में कैलिफ़ोर्निया कोर्वेट के लॉंच के साथ ही इसका सबसे ख़राब समय आ गया. इसके 350सीसी के वी-8 इंजन को बदलकर काफ़ी हल्का 305सीसी का 180 बीएचपी ताकत वाला इंजन लगा दिया गया लेकिन कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन के स्तर में फ़र्क भी बहुत कम पड़ा. लेकिन 305 सीसी के इंजन को हटाकर लीथियम-आयन बैटरी और उसके अनुसार जबरदस्त इलेक्ट्रिक मोटर लगाने के लिए सी3 बिल्कुल उपयुक्त है.
फिएट एक्स 1/9 (1972-82): बर्टन की डिज़ाइन की गई इस कार की फ़िएट ने करीब 1,40,000 यूनिट बेची. इसके बाद बर्टन ने खुद 1989 तक इसका निर्माण किया और 20,000 और कारें बेचीं. चार दशक पुरानी गाड़ियां भी ज़ंग से बची हुई हैं और अब भी चमकदार दिखती हैं. हालांकि इटली की यह गाड़ी बहुत तेज नहीं भागती थी लेकिन इसका इलाज किया जा सकता है.
पोर्श 914 (1969-76): लॉंच होने के चालीस साल बाद भी पोर्श-फ़ॉक्सवैगन के संयुक्त उपक्रम से बनी पोर्श 914 जर्मन इंजीनियरिंग का शानदार नमूना बनी हुई है. इसके बीच में इंजन वाले डिजाइन के चलते यह ईवी में बदलने के लिए एक प्रमुख दावेदार बन जाती है. कम ही लोग इसके चार सिलेंजर वाले इंजन को बदलने पर ऐतराज़ करेंगे, जो अपने सात साल के निर्माण के दौरान कभी 100 एचपी की ताकत तक नहीं पहुंच पाया (हम महंगे छह सिलेंडर इंजन को छोड़ देते हैं). जर्मन इंजीनियरिंग और इसकी उत्पादन क्षमता का धन्यवाद (1,19,000 गाड़ियां बनाई गई थीं) कि अब भी बहुत सी गाड़ियां चलती मिल जाती हैं.
प्लाइमाउथ/क्रिसलर प्रोलेर (1997, 1999-2002): हालांकि उत्पादन शुरू करने पर 1997 के इस मॉडल का मीडिया ने बहुत मज़ाक बनाया था लेकिन प्रोलेर अमरीका की चमकदार प्रतीक थी. लेकिन प्रोलेर की असल कमी इसका इंजन था, वही 3.5 लीटर वी-6 इंजन को किसी भी सामान्य सिडान जासे कि क्रिसलर कॉनकोर्ड और डॉज इंट्रिपिड में मिल जाता था. इसे बहुत से हल्के एल्यूमिनियम के टुकड़ों से बनाया जाता था जिससे इसका वजन 3,000 पाउंज से कम रहता था. क्रिसलर ने पांच साल के दौरान 12,000 प्रोलेर बनाई. बोनस यह है कि असली ‘प्रोलेर ट्रेलर’ भी मिल सकता है, जो 5,000 डॉलर में कार में डिग्गी की दिक्कत को दूर करने के लिए बनाया जाता था. इसमें एक ऑक्सिलेरी बैटरी को रखा जा सकता है.
एस्टन मार्टिन लागोन्डा (1976-90): चाहे आप इससे पसंद करें या ससे नफ़रत करें लागोन्डा की सितारों वाली चमक से इनकार नहीं किया जा सकता. दुर्भाग्य से कई और चीज़ें ऐसी हैं जिनसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. इलेक्ट्रिकल सिस्टम, जिससे कई शानदार डिजिटल उपकरण जुड़े थे, यकीनन अविश्वसनीय था. फिर 5.3 लीटर का कार्बोरेटेड वी-8 इंजन, जो तीन स्पीड वाले क्रिसलर टॉर्कफ्लाइट ऑटोमैटिक ट्रांसमिशन के जोड़ का था, बहुत ज़्यादा तेल पीता था. एस्टन मार्टिन ने 14 साल तक 645 लैगोन्डा बनाईं. इस कार का मिलना कोई आसान काम नहीं है और फिर इसे ईवी में बदलना कमज़ोर दिल और हल्के बटुवे वालों के बस का नहीं. फिर भी अगर ऐसा हो गया तो...
एएमसी पेसर (1975-80): ‘बीसवीं सदी की सबसे ख़राब कार’ चित्र गैलरी की एंकर कार यही है. पेसर अच्छे इरादों और मौलिक फ़ीचर वाली गाड़ी थी- जैसे कि सवारी वाला दरवाज़ा ड्राइवर के दरवाज़े के चार इंच बड़ा था ताकि उतरने और चढ़ने में दिक्कत न हो. गाड़ी को शुरू में वांकेल रोटरी इंजन के लिहाज से डिजा़इन किया गया था लेकिन जब यह योजना सिरे नहीं चढ़ी तो इसमें इन-लाइन सिक्स को बैठा दिया गया. इसका परिणाम यह हुआ कि पेसर दिखती तो अंतरिक्ष में रहने वाले जॉर्ज जेटसन की तरह थी और तेल पाषाण युग के फ्रेड फ़्लिंटस्टोन की तरह पीती थी. लेकिन आधुनिक तकनीक का शुक्रिया, ये दिक्कतें दूर की जा सकती हैं.
डॉज ए 100 (1964-70): वैन 1960 में बहुत हिट थीं. फ़ोर्ड, जनरल मोटर्स, क्रिसलर सभी की इस वर्ग में एक सी आधुनिक गाड़ियां थीं. सभी 1950 की फ़ॉक्सवैगन टाइप-2 से प्रेरित थीं जो सामने से फ़्लैट और पीछे से उठी सी दिखती थी. इनमें सबसे बढ़िया थी डॉज ए 100 जिसके बड़े गोल हैडलैंप थे, बड़ी विंडस्क्रीन थी और 90 इंच का व्हीलबेस था. ये मजबूत भी थीं और इनमें क्रिसलर के स्लैंट-सिक्स इंजन के अलावा सीट के नीचे वी-8 इंजिन भी फिट किए जा सकते थे.
जगुआर एक्सजेएस (1975-96): जगुआर एक्सजेएस की संदिग्ध विश्ववसनीयता ही वह वजह है जिसके चलते यह इस सूची में शामिल हो पाई है. वैसे ई-टाइप की यह अर्ध-वारिस हैं भी काफ़ी संख्या में. 21 साल की अवधि में जगुआर की फ़ैक्ट्री से 1,15,000 कूपे, सेमी-कनवर्टिबल और कनवर्टिबल गाड़ियां निकलीं. एक ख़ूबसूरत गाड़ी को ढूंढना मुश्किल नहीं है और तकनीकी रूप से अक्षम लेकिन ख़ूबसूरत गाड़ी को ढूंढना तो और आसान है.
Posted By: Surabhi Yadav