उत्तराखंड: गांव जो एक दिन विधवाओं का हो गया
गुप्तकाशी से एक रास्ता सोनप्रयाग होते हुए केदारनाथ को जाता था और शायद इसी वजह से देवली और बानीग्राम जैसे गांवों के लोग केदारनाथ में काम और नौकरी की तलाश में दशकों से जाते रहे हैं.गाँव में प्रवेश करने पर एक अजीब सी ख़ामोशी आपका स्वागत करती है.कुछ दूर चलने पर एक जर्जर सा मकान मिलता है जिसके सामने पालथी मार कर बैठी एक महिला अपने आप में खोई हुई है.39 वर्षीय विजया देवी हमसे बात करते हुए फूट-फूट कर रोने लगीं.उन्होंने बताया, "मेरे पति पहले ही गुज़र गए थे. दो बेटों में से एक 19 वर्ष का था जो केदारनाथ में हर साल रह कर कुछ पैसे कमाता था. उसी से छोटे बेटे की पढ़ाई और घर का ख़र्च निकलता था. उस बाढ़ मैं वो कहाँ खो गया, पता ही नहीं चला."
वो कहती हैं, "अब घर के ख़र्च में मेरे मायके वाले मदद करते हैं. मुआवज़े से छोटे बेटे की पढ़ाई हो रही है. लेकिन बेटा तो मेरा अब वापस नहीं लौटेगा".देवली
उन्होंने कहा, "पति की मृत्यु के बाद ये भी बीमार हो चुकी हैं और एक बेटा तो पहले से ही विकलांग था. थोड़ा बहुत मुआवज़ा मिला था, लेकिन इन चारों की ज़िन्दगी आगे कैसे चलेगी किसी को नहीं पता".सभी पुरुष सदस्यों को खो दियारंजना देवी के घर के ठीक ऊपर एक छोटी पहाड़ी पर रमेश तिवारी का घर है.62 वर्षीय रमेश तिवारी ने 17 जून, 2013 के दिन केदारनाथ मंदिर में जाकर अपनी जान किसी तरह बचाई थी.लेकिन उस हादसे में उन्होंने अपने परिवार के सभी पुरुष सदस्यों को खो दिया.