आपको भी अक्सर रहती हैं स्वास्थ्य समस्याएं? घर के ये 9 वास्तु दोष हो सकते हैं कारण
हमारे शरीर में वास्तु से रोग की उत्त्पत्ति मकान की वास्तु रचना एवं मकान में रहने की स्थिति में दोष के कारण होती है क्योंकि वस्तुत: स्थिति पर प्राकृतिक नियमों का पालन नहीं किया जाता है। वास्तु तथा मानव का शरीर का घनिष्ठ संबंध है। वास्तु स्थिति में किसी प्रकार का दोष मानव शरीर को रोगाक्रांत बनाती है। आइये जानते हैं ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी से कि वे कौन से वास्तु दोष हैं, जिनसे हमारे शरीर को नुकसान पहुंचता है।
1. भवन के उत्तर-पूर्व में भारी निर्माण तथा शौचालय बनाने से अनिद्रा, मानसिक रोग, तनाव, चिड़चिड़ापन एवं शरीर निरंतर रोगी रहने लगता है क्योंकि यहां पर प्राकृतिक ऊर्जा बाधित होती है।2. दक्षिण-पूर्व का विस्तार या सोने से या द्वार होने से मानसिक तनाव, अशांत चित्त, उच्च रक्तचाप आदि रोग होते हैं। इस दिशा में भूमिगत जलस्रोत होने से निर्जलीकरण, संतान पीड़ा, शरीर के किसी अंग में तकलीफ, मानसिक अशांति इत्यादि रोग होते हैं।
3. वायव्य कोण अर्थात उत्तर-पश्चिम में निरंतर सोने या बैठने से व्याकुलता एवं मन उच्चाटन प्रवृत्ति का होना, वायु विकार आदि रोग होते हैं। इस कोण में भूमिगत जल, मानसिक पीड़ा, अनिद्रा, बच्चे कम उम्र में प्रौढ़ होने तथा इस दिशा में द्वार होने से दुर्घटनाएं होती हैं।4. उत्तर में भारी तथा दक्षिण में हल्का या पूर्व में भारी तथा पश्चिम में हल्का रखने से स्वास्थ्यवर्धक ऊर्जा एवं हवा बाधित होती है, जिससे अनिद्रा, मानसिक तनाव, शारीरिक दुर्बलता तथा दीर्घकालीन रोग होते हैं।
5. ब्रह्म स्थान अर्थात घर के मध्य भाग में निर्माण, भूमिगत जल स्रोत एवं अग्नि की स्थापना से विनाशकारी रोग, भ्रमिता का शिकार, पेट में पीड़ा, अनिद्रा, मानसिक रोग होते हैं।6. नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) का विस्तार एवं भूमितगत जलस्रोत, पुत्र को रोग, मानसिक पीड़ा, भय, अनिद्रा, दुर्घटनाजनित रोग एवं गुर्दे में जलित रोग देता है।