उत्तराखंड के चमोली में आई प्राकृतिक आपदा ने फिर वर्ष 2013 में केदारनाथ त्रासदी की याद दिला दी है। आज ही के दिन वर्ष 2013 में केदारनाथ क्षेत्र में कुदरत ने कहर बरपाया था। इस विनाशकारी आपदा ने लाशों के ढेर बिछा दिए थे।

- केदारनाथ आपदा के 10 साल पूरे, वर्ष 2013 में 16-17 जून को टूटा था मौत का ग्लेशियर

- केदारनाथ में आज भी 4000 से अधिक लोग आज भी लापता, इस विभत्स आपदा का जिक्र होते ही खड़े हो जाते हैं लोगों के रोंगटे, दास्तां सुनाते-सुनाते फफक पड़ते हैं परिजन

देहरादून (ब्यूरो): हजारों लोगों असमायिक मौत के मुंह में समां गए। जबकि हजारों लोग लापता हो गए थे, जिनका आज भी कुछ पता नहीं चल पाया है। आपदा को गुजरे 10 साल हो गए हैं, लेकिन जब केदारनाथ आपदा की बात होती है, तो इस विनाशकारी त्रासदी में अपनों को खोने वाले विचलित हो जाते हैं।

नहीं मिला संभलने का मौका
16 और 17 जून की वो अभागी रात हजारों लोगों को लील गई। लोगों को संभलने का मौका नहीं मिला। पानी में बहने से किसी का पता नहीं चला। कुल कितने बहे इसका आज तक हिसाब नहीं लगाया जा सका। मीडिया रिपोर्ट में 30 से लेकर 50 हजार से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबरें आई। पानी में बहने से नहीं, बल्कि अचानक आई जल प्रलय से बचने के लिए बड़ी संख्या में लोग ऊपर पहाड़ों के तरफ चढऩे लगे। वे सुरक्षित जगह की तलाश में ऊपर चढ़ते रहे और आखिरकार भूख, प्यास, थकान, ठंड और फिर ऑक्सीजन की कमी के कारण कई लोगों की मौत हो गई। केदारनाथ, रामबाड़ा और गौरीकुंड के ऊपर की पहाडिय़ों में सैकड़ों लोगों के शव मिले और इन शवों के मिलने के सिलसिला बाद के सालों तक भी चलता है।

पत्थरों के नीचे अपनो की तलाशते रहे लोग
अपनों की तलाश में रोज सैकड़ों की तादाद में लोग यहां पहुंचते और हाथों में फोटो और पोस्टर लेकर सड़क का कोई भी कोना लेकर बैठ जाते। उस वक्त तीर्थनगरी की दीवारें मानों लापता लोगों के फोटो और पोस्टरों से पट गईं थीं। हर कोई इस उम्मीद में यहां पहुंचता की शायद उसके अपनों की खबर कहीं न कहीं से यहां तक तो पहुंच ही जाएगी। आज भी करीब 4000 तीर्थ यात्री लापता है, इनका कहीं कोई सुराग नहीं लगा है।

कब क्या हुआ
15 जून: राज्यभर में बारिश शुरू हुई
16 जून: शाम को चौराबाड़ी ताल टूटने से मंदाकिनी में बाढ़ आने से केदारनाथ में मलबा भर गया। रामबाड़ा पूरी तरह तहस-नहस हो गया।
17 जून: सुबह एक बार फिर चौराबाड़ी ताल से पहले से ज्यादा पानी और मलबा आया। केदारनाथ पूरी तरह तबाह हो गया। पूरी मंदाकिनी घाटी में तबाही हुई। हजारों यात्री मारे गए।
18 जून: पहली बार केदारनाथ और घाटी में तबाही की खबरें सामने आई।
19 जून: राहत और बचाव के कार्य शुरू किये गये।

आपदा में हुआ था ये बड़ा नुकसान
4027 लोगों की मौत
1853 पूर्ण क्षतिग्रस्त पक्के मकान
361 पूर्ण क्षतिग्रस्त कच्चे मकान
2349 बुरी तरह क्षतिग्रस्त पक्के भवन
340 बुरी तरह से टूटे कच्चे मकान
9808 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त पक्के मकान
1656 आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त कच्चे मकान
2162 सड़कें क्षतिग्रस्त
86 पुल (मोटर मार्ग व पैदल) टूटे
172 पुलिया ध्वस्त
3484 पेयजल लाइनें ध्वस्त
4515 गांव मेंबिजली आपूर्ति बाधित
13,844.34 करोड़ रुपये की परिसंपत्तियों को नुकसान

अपनी आंखों से देखा वीभत्स मंजर
केदारनाथ आपदा को मैं कभी भुला नहीं सकता। मेरे आंखों के सामने मेरा भांजा और भतीजा और कई रिश्तेदार चले गए। लोग जंगलों-जंगलों में पागलों की तरह अपनों को ढूंढते रहे। 17 जून की सुबह करीब सवा 7 बजे भागो-भागों को पूरी केदारघाटी चीख उठी वह चीख-पुकार आज भी मन को विचलित करती है।
शिव सिंह रावत, रांसी गांव

पिछले तीन दिन से लगातार बारिश हो रही थी। 16 की रात और 17 की सुबह जो तबाही हुई, उसके घाव कभी नहीं भरेंगे। गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ के जंगलचट्टी तक हजारों यात्री, दुकानदार और मजदूर दफन हुए। मेरे बगल के कमरे में सो रहा 21 साल का भतीजा और भाई राजेंद्र भी मौत के मुंह में समां गया। उन्हें न बचाने का गम मुझे सालता रहता है।
अनिल प्रसाद कुमांचली, तीर्थ पुरोहित

मेरी केदानाथ में प्रसाद की दुकान थी। मेरे साथ मेरा दोस्त और पार्टनर भी था। काफी कोशिश के बाद मैं उसे नहीं बचा पाया। किसी तरह मैं जान बचा कर केदारनाथ के ऊपरी पहाड़ी में बेहोश हो गया। मैं छह माह तक सदमें में रहा। कुछ समय घर में रहने के बाद मुंबई चले गया। इस त्रासदी ने मुझे इस कदर खौफजदा किया कि मैं आज तक केदारनाथ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
हरेंद्र सिंह नेगी, कलसिर गांव

मेरा भतीजे ने भाई दयाल सिंह के आंखों के सामने दम तोड़ दिया था। किसी तरह भाई केदारनाथ के ऊपर पहाड़ी तक उसे ले आया था, लेकिन रास्ते में उसने दम तोड़ दिया। इस रूह कांपती इस विनाशकारी प्रलय से डरा-सहमा भाई बेटे की डेड बॉडी छोड़कर किसी तरह घर पहुंचा। बेटे के गम में 2014 में भाई भी सदमे के चलते हमें छोड़कर चला गया। हमारा पूरा परिवार बिखर गया।
कलम सिंह तिंदोारी, चौमासी गांव
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Posted By: Inextlive