राज्य में पानी के स्रोत सूख रहे हैं और इनसे निकलने वाला पानी भी कम हो गया है। नेशनल हिमालयन स्टडी मिशन के तहत स्टडी में ये फाइंडिंग्स निकल कर सामने आई हैैं। स्पष्ट किया गया है कि स्टेट में 30 परसेंट क्षेत्रों में जलस्रोतों के स्राव में 60 परसेंट तक की कमी देखी गई। ऐसे ही राज्य के 40 परसेंट एरियाज में करीब 50 परसेंट तक स्पि्रंग के स्राव में कमी आई है।

देहरादून (ब्यूरो)। नेशनल हिमालयन स्टडी मिशन के तहत जल सुरक्षा में सुधार के लिए उत्तराखंड में स्पि्रंग और वाटर कैचमेंट एरियाज में पुनर्जीवन के माध्यम से जल संसाधन प्रबंधन पर अध्ययन हुआ। इसमें वित्तीय सहयोग केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का है। प्रोजेक्ट के तहत एक्सपर्ट्स, साइंटिस्ट व इंजीनियर्स की ओर से लगातार 3 वर्षों में राज्य के 1200 पेयजल स्पि्रंग्स की स्टडी की गई। पाया गया कि कई पानी के स्रोत सूख रहे हैं, कहीं पानी के स्रोत में 50 परसेंट तक पानी कम पाया गया। स्टडी टीम की ओर से जल स्राव में कमी के कारणों व समस्याओं का भी अध्ययन किया गया।

इन स्थानों की हुई स्टडी
-सेलूपानी टिहरी
-मसूरी दून
-प्रताप नगर टिहरी
-कर्णप्रयाग चमोली

रूरल एरियाज पर किए जा रहे काम
स्टडी से आए रिजल्ट पर मंथन व विचार विमर्श के बाद उत्तराखंड जल संस्थान के सहयोग से सेलूपानी, टिहरी में डिटेल अध्ययन किया गया। हालांकि, ये कार्य तीसरे वर्ष में हो पाया। लेकिन, इस अध्ययन में जल के पुनर्जीवन के माध्यम व उपायों का जमीनी एक्टिवेशन पर जोर दिया जा रहा है। जिसके तहत डिटेल भूगर्भीय अध्ययन, वायुमंडलीय, आइसोटोप व रेजिस्टिविटी अध्ययन से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर अब ग्रामीण स्तर पर कार्य किए जा रहे हैं।

ऐसे हुई स्टडी
-प्रोजेक्ट के तहत 3 वर्षों में राज्य के 1200 पेयजल स्पि्रंग्स श्रोतों का हई स्टडी।
-इन वाटर स्पि्रंग श्रोतों में पिछले कई वर्षों से प्रवाह में देखी गई कमी।
-क्यों वाटर सोर्स में पानी कम हो रहा, गहराई से स्टडी कराई गई।
-जल श्रोतों पर जलवायु परिवर्तन, लैंड यूज में परिवर्तन व निर्माण कार्यों के प्रभाव का हुआ अध्ययन।

वाटर सोर्स पुनजीर्वित करने पर भी जोर
स्टडी में बताया जा रहा है कि वाटर सोर्स को पुनजीर्वित करने के लिए गांव के सहयोग से प्लांटेशन पर जोर देते हुए जल संरक्षण की संरचनाओं का निर्माण किया जा रहा है। जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए साधन जुटाए जा रहे हैं। बाकायदा, इस कार्य को पूरा करने का लक्ष्य इस वर्ष तक पूरा हो जाना की भी बात कही गई है। इसके लिए वर्षा के प्रवृत्ति, भूगर्भीय मूल्यांकन, संरचनात्मक भूगर्भ शास्त्र व विगत 10 वर्षों में हुए भूमि उपयोग के परिवर्तनों का भी अध्ययन रिमोट सेंसिंग तकनीक से किया गया है। बताया गया है कि ऐसे ही राज्य के दूसरे इलाकों में भी पानी के स्रोत सूख जाने और जल स्राव कम हो जाने के अध्ययन किए जाएंगे। इसके अलावा उन्हें पुनर्जीवित करने की भी तकनीक बताई जाएगी।

रिमोट सेंसिंग टेक्नीक से स्टडी
-वर्षा की प्रवृत्ति
-भूगर्भीय मूल्यांकन
-संरचनात्मक भूगर्भ शास्त्र
-10 वर्षों में हुए भूमि उपयोग के परिवर्तन

युवाओं को मिल रहा लाभ
डीएवी पीजी कॉलेज के कैमेस्ट्री डिपार्टमेंट के डॉ। प्रशांत सिंह ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में युवा एजुकेशनिस्ट भी अपना एक्सपीरियंस प्राप्त कर पा रहे हैं। जल संस्थान से डॉ। विकास कंडारी, डीएवी पीजी कॉलेज से अर्चित पांडे और टेरी स्कूल आफ एडवांस्ड स्टडीज से डॉ। चन्द्रशेखर आजाद व आयुषी प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं। बाकायदा, इन युवा एजुकेशनिस्ट के रिसर्च पेपर्स भी कई स्थानों पर प्रदर्शित व प्रकाशित हो चुके हैं। ।

ये संस्थाएं शामिल
-टेरी स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज नई दिल्ली
-डीएवी पीजी कॉलेज दून
-उत्तराखंड जल संस्थान

ये एक्सपर्ट्स शामिल
-टेरी स्कूल आफ एडवांस्ड स्टडीज के प्रोफेसर डॉ विनय शंकर प्रसाद सिन्हा
-डीएवी पीजी कॉलेज कैमेस्ट्री डिपार्टमेंट से डॉ प्रशांत सिंह
-टेरी एवं इंजीनियर सौरभ भारद्वाज
-उत्तराखंड जल संस्थान के सीजीएम एसके शर्मा

Posted By: Inextlive