देहरादून के आपदा प्रभावित सरखेत गांव पहुुंचने वालों के साथ ही जिला आपदा प्रबंधन और जिला प्रशासन की नजर इन दिनों टिहरी जिले के जैंंत्वाड़ी गांव के रहने वाले दो सगे भाइयों पर लगी हुई है। आपदा में लापता हुए अपने चाचा और चाची को तशालने ये दोनों भाई सरखेत न पहुंचते तो मलबा हटाकर शवों को तलाशने का काम भी शुरू नहीं हो पाता। लगातार तीन दिन तक पोकलेन मशीन चलाने के बाद ये दोनों भाई मलबे में से अपने चाचा और दो अन्य लोगों की डेडबॉडी निकालने में सफल रहे हैं लेकिन अपनी चाची और एक अन्य व्यक्ति को अभी ढूंढ़ नहीं पाये हैं।

देहरादून ब्यूरो। सूरज और अंकित जोशीमठ के आसपास चारधाम रोड प्रोजेक्ट में किसी ठेकेदार की पोकलेन मशीन चलाते हैं। 20 अगस्त को जब उन्होंने सुना कि रिश्तेदारी में सरखेत गांव गये उनके चाचा और चाची आपदा में लापता हो गये हैं तो वे जोशीमठ से लौट आये। सरखेत गांव जाने के लिए निकले तो गांव से पहले ही दो पोकलेन मशीन खड़ी दिखी। आगे सड़क टूटी हुई थी और मशीन आगे ले जाने के लिए ड्राइवरों ने हाथ खड़े कर लिये थे। दोनों भाइयों ने मशीनों का स्टेयरिंग थामा और उफनती बांदल नदी की धार और आपदा में आये मलबे को चीरते हुए पोकलेन मशीनें सरखेत के घुंतू का सेरा पहुंचा दी। जहां उनके चाचा-चाची और तीन अन्य लोगों के दफन होने की आशंका है।

चाचा के अंतिम संस्कार में नहीं जा पाये
पोकलेन मशीनों के साथ सूरज और अंकित 22 अगस्त की सुबह सरखेत पहुुंचे थे। दो दिन तक उन्हें कोई सफलता नहीं मिली। तीसरे दिन यानी वेडनसडे को वे मलबे में दबी तीन डेडबॉडी को निकालने में सफल रहे। इनमें एक डेडबॉडी उनके चाचा राजेन्द्र सिंह राणा की थी और बाकी दो अन्य रिश्तेदारों की। तीनों डेडबॉडी अंतिम संस्कार के लिए हरिद्वार ले जाई गई, लेकिन दोनों भाई चाचा के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाये, क्योंकि चाची और एक अन्य व्यक्ति का शव अब भी मलबे में दबे होने की आशंका है।

नहीं हैं हताश
सूरज और अंकित को चौथे दिन बेशक कोई सफलता न मिली हो, लेकिन वे हताश नहीं हैं और न ही थके हैं। मौके पर मौजूद उन्ही के परिवार के ज्ञान सिंह राणा ने बताया कि इन दोनों बच्चों को साहस देखकर वे खुद हैरान हैं। दोनों पूरे धैर्य के साथ में काम में जुटे हुए हैं।

Posted By: Inextlive