वक्त की मार, लीची का जायका बेकार
- मार्केट में रामनगर की लीची पहुंच चुकी, दून की लीची का अब तक कोई अता-पता नहीं
देहरादून (ब्यूरो): वजह, आपके सामने है। राजधानी का शायद ही ऐसा कोई इलाका हो, जहां मकान, मल्टीस्टोरी बिल्डिंग न बन रही हों। इस कारण लीची के हर बगीचे कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुके हैं। साफ है कि अब खुद दूनवासियों को दून की ही लीची का स्वाद चखने को नहीं मिल रहा है। वे रामनगर व अन्य शहरों लीची खरीदने को मजबूर हैं।लीची का प्रोडक्शन एरिया सिमटा
कहा जाता था कि 70 के दशक में दून में करीब 6500 लीची के बाग मौजूद थे। हर साल हजारों मीट्रिक टन में लीची का न केवल उत्पादन हुआ करता था, बल्कि, दून की लीची देशभर के शहरों के अलावा एक्सपोर्ट भी की जाती थी। लेकिन, अब यह गुजरे जमाने की बात हो गई है। राज्य गठन के बाद लीची के बगीचों पर आरियां चलने लगीं। हर रोज मकान, बड़ी-बड़ी इमारतें बन कर खड़ी हो रही हैं और इसका असर सीधे तौर पर लीची के हरे-भरे पेड़ों व बगीचों पर पड़ रहा है। हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक पूरे दून जिले में अब करीब 250 हेक्टेअर क्षेत्रफल में ही लीची का उत्पादन रिकॉर्ड किया जा रहा है। उसमें भी ज्यादा हिस्सा विकासनगर, झाझरा व डोईवाला का इलाका शामिल बताया गया है। उसमें उत्पादन करीब 500 से 550 मीट्रिक टन होना बताया गया है। विभाग भी इसको लेकर चिंतित है। विभाग की मानें तो दून के घंटाघर से लेकर करीब 10 किमी के दायरे में अब लीची उत्पादन का शायद ही कोई बगीचा दिख जाए।
-डालनवाला
-रायपुर
-राजपुर
-डोईवाला
-सहस्रधारा रोड
-मोहनी रोड
-इंद्रप्रस्थ कॉलोनी
-सेलाकुई
-विकासनगर
-हर्बटपुर
-सहसपुर
-झाझरा दून में लीची का क्षेत्रफल व उत्पादन
- उत्पादन क्षेत्रफल--250 हेक्टेअर
- उत्पादन---500 से 550 मीट्रिक टन लीची के उत्पादन में गिरावट के कारण
-लगातार भवन व बिल्डिंग्स के निर्माण
-लीची के बगीचों पर चल रही आरियां
-पर्यावरण के साइड इफेक्ट
-पेड़ कट जाने के बाद प्लांटेशन न होना
-जिम्मेदार विभागों का उदासीन रवैया
-सरकार की ओर से ठोस नियम कानूनों का अभाव
इस बार मौसम की मार
जितने क्षेत्रफल में लीची का उत्पादन हो रहा है। उस पर इस बार खासी मार पड़ी है। मई माह में आई तेज आंधी व तूफान के कारण करीब 10 परसेंट लीची ड्रॉप हो गई। उद्यान विभाग के अधिकारी डा। वेद प्रकाश खर्कवाल के अनुसार लीची के बगीचे नष्ट होने के साथ क्लाइमट का भी लीची पर असर देखने को मिल रहा है। इस बार उत्पादन भी गिरावट दर्ज की गई। पेड़ों पर गुच्छे नहीं, अब एकाध ही लीची नजर आ रही है। अबकी बार अभी दून की लीची पेड़ों पर ही है। कलर देना भी शुरू नहीं हो पाया है। जून फस्र्ट तक मार्केट में आने की उम्मीद है। लेकिन, महंगे दाम पर दून की लीची नजर आएगी।
-मई लास्ट से लीची के ठेले लाइन से आ जाते थे नजर।
-अब कहीं भी ठेलियों में नजर नहीं आती दून की लीची।
-दून की लीची बिकती थी 40 से 50 रुपए प्रति केजी तक।
-अब लीची के कीमत 100 प्रति केजी से होती है शुरू।
-दून की लीची का कलर पूरी तरह होता था लाल, अब नहीं। रामनगर की लीची आने लगी नजर
दून की लीची का तो पता नहीं, लेकिन दून शहर में एकाध दुकानों पर रामनगर की लीची नजर आने लगी है। जिसकी कीमत भी 150 रुपए तक पहुंच गई है। मतलब साफ है कि लीची खरीदना अब हर किसी के बस में नहीं रहा।
विभाग लीची बचाने की कर रहा पहल
हॉर्टिकल्चर डिपार्टमेंट के डा.वेद प्रकाश खर्कवाल कहते हैं कि लगातार लीची के पेड़ काटे जा रहे हैं। इस पर मंथन की जरूरत है। उनका कहना है कि वे जल्द निबंधक को पत्र लिखने वाले हैं। जिसमें आग्रह किया जाएगा कि जमीन की रजिस्ट्री से पहले लीची या आम के पेड़ों को बचाया जाए।
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