सरकार योजना बनाती है, इंप्लीमेंटेशन भगवान भरोसे छोड़ देती है
देहरादून, 31 जुलाई (ब्यूरो)।
उत्तराखंड का पारंपरिक लोक पर्व है हरेला। ज्यादातर कुमाऊं में मनाए जाने वाला यह पर्व अब संपूर्ण राज्य में अपनी पहचान बना चुका है। पूर्ववर्ती हरीश रावत सरकार में इस पर्व को बढ़ावा मिला और पर्व पर हरियाली का प्रतीक माने जाने वाले हरेला त्योहार पर पौधारोपण किए जाने पर जोर दिया गया। यकीनन, तब से लेकर अब तक त्योहार धूम-धाम से मनाया जा रहा है। जुलाई माह में मनाए जाने वाले त्योहार पर पौध रोपण पर भी लगातार जोर दिया जा रहा है। लेकिन, प्लांटेशन राज्य में प्लांटेशन तक ही सिमट कर रह जा रहा है। सोशल मीडिया के दौर में अधिकारी, कर्मचारी, सरकारी डिपार्टमेंट, राजनेता, संगठन, इंस्टीट्यूशंस और आम लोग हरेला पर्व मनाने के साथ प्लांटेशन तो कर रहे हैं। लेकिन, इनकी जमीनी हकीकत कुछ और है। फेस बुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया पर जमकर प्लांटेशन को लेकर फोटोग्राफ अपलोड हो रही हैं। उसके बाद प्लांट्स ग्रो कर रहे हैं, क्या उनकी देखभाल हो पा रही है या फिर अगले हरेला पर्व पर ऐसे प्लांट्स ठीक-ठाक हाल में हैं, किसी को कोई परवाह नहीं है।
47 परसेंट बोले जरूर हो प्लांटेशन
दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इसी को लेकर सोशल मीडिया पर सर्वे पोल कराया। जानने की कोशिश की कि हरेला पर्व के नाम पर जो प्लांटेशन हो रहा है, उससे आप सहमत हैं। 47 परसेंट लोगों ने सहमति दी, जबकि, 42 परसेंट लोगों ने कहा कि हकीकत में प्लांटेशन हो, न कि सोशल मीडिया पर दिखावा हो। 50 परसेंट लोगों ने कहा है कि जो पौधारोपण किया जा रहा है, वह महज दिखावा है, 25 परसेंट लोगों का कहना है कि उनकी कोई देखभाल नहीं की जा रही है। 91 परसेंट लोगों का कहना है कि सरकार योजना बनाती है। लेकिन, इंप्लीमेंट नहीं करा पाती है। 45 परसेंट ऐसे सोशल मीडिया यूजर्स हैं, जिनका कहना है कि प्लांटेशन के बाद उनकी देख-रेख होनी चाहिए। जबकि 27 परसेंट लोगों ने कहा कि इसके लिए पब्लिक अवेयरनेस की भी जरूरत है।
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दून नहीं समस्त उत्तराखंड को कंक्रीट के जंगलों में परिवर्तित किया जा रहा है। पर्यटन, विकास, सड़कों, होटल रिजॉर्ट व बांध आदि के लिए हेवी कंस्ट्रक्शन किया जा रहा है।
-केदारखंडी शिवानंद हम भी हरेला पर्व पर पौधरोपण के पक्ष में हैं, करते भी हैं। सरकार को चाहिए कि निशुल्क लोगों को पौध उपलब्ध कराए और प्लांट्स की देखभाल भी कराए।
-संतोष बिष्ट
देखने में आया है कि जो निजी जमीन में अपना प्लांटेशन करते हैं, उनकी देखभाल होती है। लेकिन, सरकारी जमीन पर जो प्लांटेशन होता है, उसकी जिम्मेदारी सरकारी विभागों को लेनी चाहिए।
भुवन गडिय़ा
पोल में लोगों ने ऐसे रखी अपनी राय
दून शहर पहले से कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा है। लेकिन, लोक पर्व हरेला के नाम पर सोशल मीडिया में खूब पौधरोपण हो रहा है आप कितने सहमत हैं? पूरी तरह---44 परसेंट
ये गलत तरीका--0 परसेंट
हकीकत में पौधारोपण--44 परसेंट
कोई मतलब नहीं---11 परसेंट राजधानी में पिछले कई सालों से बड़ी मात्रा में पौधरोपण हो रहा है। तो कहां जा रहे हैं ये पौधे? देखभाल नहीं----29 परसेंट
महज दिखावा---43 परसेंट
सरकार सीरियस नहीं---0 परसेंट
लोगों की दिलचस्पी नहीं---- 29 परसेंट
सरकार योजना तो बनाती है। लेकिन, उसके रिजल्ट तक पहुंचने के लिए इंप्लीमेंट नहीं कराती। क्या से सच है?
जी हां---90 परसेंट
गलत है--- 0 परसेंट
इसमें आम लोग भी शामलि--- 0 परसेंट
सरकार जिम्मेदार--- 10 परसेंट
हरेला के नाम पर जो पौधरोपण हो रहा है। वह केवल शो-बाजी है। पौध लगाने वाले उनकी देख-रेख तक नहीं कर पा रहे हैं। उनके उसी हाल में छोड़ देते हैं?
देख-रेख करनी चाहिए।---40 परसेंट
ये गलत है--- 10 परसेंट
जागरुकता की जरूरत--- 30 परसेंट
वन विभाग की हो जिम्मेदारी---- 20 परसेंट
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