राजधानी दून में आज भी कई ऐसी इमारतें खेल के मैदान और धरोहरें मौजूद हैं जो न केवल देश के इतिहास को समाहित किए हुए हैं। बल्कि उनसे दून का इतिहास भी जुड़ा है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट इसी क्रम में पिछले कई दिनों से लगातार ऐसी गुमनाम विरासतों व धरोहरों को अपने पाठकों के सामने रख रहा है जिससे युवा पीढ़ी भी उनके महत्व को जान सके। उम्मीद है कि जिम्मेदार विभाग सरकारी एजेंसियों इन धरोहरों को संजोने का काम कर उनके संरक्षण व संवर्धन के लिए प्रयासरत रहेंगी।

देहरादून (ब्यूरो) दून नगर निगम के मुख्य कार्यालय भवन ने 102 साल पूरे कर लिए हैं। अंग्रेजों के जमाने में बने इस इमारत की खासियत ये है कि कहने के लिए ये बिल्डिंग आम होगी। लेकिन, 102 साल का सफर पूरा करने वाली ये इमारत आज भी खास है। नगर निगम के इस भवन का निर्माण 1922 में किया गया था। इसके निर्माण में पत्थर और ईंटों का इस्तेमाल किया गया है। भवन 102 साल बाद भी मजबूत स्थिति में है और ये इमारत अपने आप में बेजोड़ कलाकृति का नायाब उदाहरण हैं। हालांकि, समय-समय पर नगर निगम की ओर से कई बार इसकी मजबूती के लिए रंग-रोगन किया जाता है।

नगर निगम की है शान
नगर निगम की ये इमारत कितनी पुरानी है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस पर दफ्तर म्युनिसपैलिटी आज तक अंकित नजर आ जाता है। इसमें वर्तमान में मेयर, मुख्य नगर आयुक्त समेत अन्य ऑफिस मौजूद हैं। हालांकि, इसी के बगल में दूसरा भवन बना हुआ है। जिसका निर्माण वर्ष 1937 में हुआ। इस पर नगर पालिका देहरादून लिखा हुआ है। जबकि, तीसरा भवन 1938 में भगवान दास बैंक लिमिटेड ने अपने फाउंडर लाला स्व। जुगमंदर दास की याद में बनाया गया, जिसमें ऐतिहासिक टाउन हॉल है।

1975 में 20 हजार लोगों ने देखा था यहां मैच
1939 में बना दून का पवेलियन ग्राउंड न केवल फुटबॉल प्लेयर्स के लिए पहचान रखता है। बल्कि, अब तो ये शहर की आईडी के तौर पर पहचान भी रखता है। ये मैदान दूनाइट्स के लिए हमेशा खास रहा है। इस ग्राउंड की खसियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1975 में मोहम्मेडन स्पोर्टिंग बनाम 5/8 गोरखा के बीच हुए नगर पालिका ऑल इंडिया फुटबॉल टूर्नामेंट के दौरान यहां करीब 20,000 लोगों ने टिकट खरीदकर मैच देखा। पवेलियन ग्राउंड में इतनी बड़ी भीड़ पहले कभी नहीं देखी गई थी।

1938 से परेड ग्राउंड की शुरुआत
पवेलियन ग्राउंड की शुरुआत 1939 में हुई थी। जब भगवान दास बैंक लिमिटेड के डायरेक्टर्स ने रिटायर्ड जेईसी टर्नर के सुझाव पर इस स्टेडियम को बनाने का फैसला लिया। ये स्टेडियम भगवान दास के बेटे स्व। मानसुमराट दास की याद में बनाया गया था। 26 अक्टूबर 1938 को बोर्ड को इसका प्रस्ताव भेजा गया और 29 अक्टूबर 1938 को नगर पालिका बोर्ड के अध्यक्ष के सामने इसे पेश किया गया, जिसे मंजूरी मिली। खास बात ये है कि ये ये ग्राउंड परेड मैदान का हिस्सा था। भगवान दास बैंक ने सारी तैयारियां पूरी कर बोर्ड में भवन की प्लानिंग जमा कर दी। इसके बाद 26 फरवरी 1939 को जिला बोर्ड के अध्यक्ष शेर सिंह ने खेल पवेलियन की आधारशिला रखी।

इसी मैदान पर पड़ोसी मुल्कों के मैच
भले ही आजकल ये ग्राउंड एक फुटबॉल ग्राउंड के तौर पर अपनी पहचान रखता हो। लेकिन, पवेलियन ने भारत के शीर्ष फुटबॉल क्लबों और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के क्लबों को दून में मैच खेलते हुए देखा गया। 1958 और 1967 में गोरखा ब्रिगेड ने ईस्ट बंगाल के साथ यहां प्रदर्शनी मैच खेले, जो फुटबॉल प्रेमियों के लिए बहुत रोमांचक थे। दून के दिल में स्थित इस पवेलियन ने दून घाटी में फुटबॉल को बढ़ावा देने में एक अहम भूमिका निभाई है। यह वही मैदान है, यहीं से दून के जाने माने फुटबॉलरों ने नेशनल से लेकर इंटरनेशनल लेवल तक फुटबाल में अपनी धाक जमाई।

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Posted By: Inextlive