राजधानी दून की सुसवा नदी का सच यह है कि इसका पानी पूरी तरह जहर बन चुका है. खुद सरकार भी मानती है कि सुसवा नदी का पानी पीने नहाने पशुओं यहां तक कि खेती के योग्य भी नहीं है.

देहरादून, (ब्यूरो): राजधानी दून की सुसवा नदी का सच यह है कि इसका पानी पूरी तरह जहर बन चुका है। खुद सरकार भी मानती है कि सुसवा नदी का पानी पीने, नहाने, पशुओं यहां तक कि खेती के योग्य भी नहीं है। इससे स्पष्ट हो जाता कि सुसवा नदी पूरी तरह पॉल्यूटेड हो चुकी है। इसका पानी इतना जहरीला हो चुका है कि यह किसी यूज में नहीं लाया जा सकता। लेकिन सुसवा नदी के किनारे बसे लोगों के सामने कोई विकल्प नहीं है। वह लगातार इस पानी का यूज कर रहे हैं, जिससे वह कैंसर और स्किन समेत कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। पिछले दो साल में दुधली क्षेत्र में 10 से ज्यादा लोगों की कैंसर से मौत होने का दावा किया जा रहा है। हालांकि, इस मामले की जांच की जरूरत है।

टीम ने किया क्षेत्र का दौरा
बीते रोज दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने सुसवा नदी की पड़ताल की थी। सुसवा नदी दून की रिस्पना और बिंदाल नदी से मिलकर बनती है। ये दोनों नदियां भी प्रदूषित हंै, लेकिन मोथरोवाला में मिलने के बाद बनने वाली सुसवा नदी में पानी नहीं जहर बह रहा है। कुछ एक्सपर्ट ने सुसवा के पानी पर रिसर्च किया है, जिसमें कई खतरनाक तत्वों की मौजूदगी है।

लगातार उठा रहे मामला
क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता उमेद बोरा व लगातार पिछले लंबे समय से सुसवा के पानी के प्रदूषित होने और इस पानी के इस्तेमाल से दुधली, सिमलास ग्रांट, नागल व मार्खम ग्रांट आदि गांवों में बीमारियां होने की बात शासन-प्रशासन के समक्ष रखते रहे हैं। दून शहर की पूरी गंदगी नदी में आ रही है। स्लम बस्तियों का सीवर नदी में बह रहा है। पॉलीथिन ही नहीं, डेरियों का पानी, इंडस्ट्रीज और हॉस्पिटल का मेडिकल वेस्ट भी रिस्पना बिंदाल में डाले जाने से सुसवा लगातार प्रदूषित हो रही है। इस संबंध में डीएम से लेकर सीएम तक गुहार लगाई गई, लेकिन कहीं से कोई राहत नहीं मिली।

ई कैटेगिरी में पहुंच गई सुसवा
सुसवा नदी इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि यह ई कैटेगिरी में पहुंच गई है। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूईपीपीसीबी) ने भी जांच के बाद कहा कि नदी के पानी को किसी भी यूज में नहीं लाया जा सकता, यानि पानी पूरी तरह जहरीला हो चुका है। इसके बाद बोर्ड ने सुसवा को ई कैटेगिरी में रखा है। इसको पीना तो दूर छूने से भी कई गंभीर रोग होने की संभावना है। इसमें टीडीएस, फास्फेट, फ्लाराइड, लेड, कॉलीफाम व फीकल कॉलीफाम की की मात्रा कई गुना है, जो पानी को जहर बनाते हैं।

नदी से प्रभावित
गांव आबादी
दुधली 10 हजार
नागल 2.50 हजार
सिमलास ग्रांट 2.50 हजार
मार्खम ग्रांट 25 हजार

जंगली जानवर भी प्रभावित
जानकारी का कहना है कि सुसवा के पानी से दुधली क्षेत्र ही नहीं, बल्कि इस नदी के आखिरी तक सभी लोग प्रभावित हैं। सुसवा नदी डोईवाला से होते हुए छिद्रवाला, रायवाला होते हुए हरिद्वार में गंगा में मिल रही है। इस बीच सुसवा में वन विभाग की तीन वन रेंज आती है। चीला रामगढ़, कांसरो व मोती चूर। वाइल्ड लाइफ एरिया होने के कारण यहां पर जानवर इसी पानी पीते हैं। आशंका है कि जंगली जानवर भी इस पानी से बीमार हो सकते हंै। क्योंकि यूकेईपीपीसीबी ने पानी को जानवरों के लिए भी खतरा बताया है।

ये वाइल्ड लाइफ एरिया भी प्रभावित
चीला रामगढ़
कांसरो
मोतीचूर

इन रोगों का बढ़ा खतरा
कैंसर
स्किन डिजीज
पेट संबंधी रोग
किडनी
लिवर

धीरे-धीरे विलुप्त हो रही खेती
स्थानीय लोगों का कहना है कि दुधली व इसके आस-पास के इलाकों में बासमती की खेती होती थी, वह अब लगभग विलुप्त हो गई है। पानी के प्रदूषित होने से बासमती की पौध डेवलप नहीं हो पा रही है। यहां तक कि दूसरी धान भी नहीं हो पा रही है। प्रदूषित पानी के डर के चलते लोग साग-सब्जी उगाने का भी छोड़ चुके हैं। अब केवल लोग यहां पर गन्ने की खेती करने को मजबूर हैं। पानी से लगातार खेतों की उर्वरक क्षमता घट रही है।


सुसवा नदी कभी लाखों लोगों की प्यास बुझाती थी, लेकिन आज यह खेती लायक भी नहीं रह गई है। मजबूरी में इस नदी से खेती करने पर लोग कैंसर जैसी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। सरकार से आग्रह है समय रहते ग्रामीणों की सुध लें।
उमेद बोरा, सोशल एक्टिविस्ट

सुसवा नदी जहरीली कैसे बन गई। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड किसी चीज की मॉनिटरिंग कर रहा है। हालत यह है कि इस जहरीले पानी से लोग कैंसर जैसे असाध्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। इसका जल्द सरकार को संज्ञान लेना चाहिए।
दरबान सिंह, स्थानीय निवासी

सिंचाई विभाग सुसवा नदी के पानी के सिंचाई यूज के लिए किसानों से टैक्स ले रहा है। जब विभाग सिंचाई योग्य पानी नहीं दे रहा है, तो विभाग को पैसे लेने का अधिकार नही है। जब पानी शुद्ध हो, तभी ग्रामीणों से टैक्स लिया जाएगा।
प्रशांत बसेरा, स्थानीय निवासी

सुसवा नदी के पानी से हर समय हवा में दुर्गंध आती है। कोई दूसरा विकल्प न होने पर ग्रामीण इस पानी का खेती में मजबूरी में यूज कर रहे हैं। खेती करने पर इससे स्किन व पेट संबंधी अन्य बीमारियों से लोग पीडि़त हो रहे हैं। लोग अब डरने लगे हैं।
प्रदीप कुमार, स्थानीय निवासी

सुसवा नदी के पानी की हर माह जांच होती है। यह बात सही है कि सुसवा में लगातार प्रदूषण बढ़ता जा रहा है, लेकिन प्रदूषण कम करने के लिए सरकार एक्शन प्लान पर काम कर रही है। फिलहाल सुसवा नदी को ई कैटेकिगरी में रखा गया है।
क्षेत्रीय अधिकारी, यूईपीपीसीबी, दून

नदियों में गंदगी कम करने के लिए एक्शन प्लान के तहत कार्य किया जा रहा है। अब तक 200 से अधिक गंदे नाले टेप कर सीवर ट्रीटमेंट प्लांट से जोड़े गए हैं। स्वास्थ्य विभाग को निर्देश दिए गए हैं। जल्द ही दुधली इलाके में टीम भेजकर सर्वे कराया जाएगा।
सोनिका, डीएम, देहरादून

dehradun@inext.co.in

Posted By: Inextlive