कोई भी काम छोटा और बड़ा नहीं होता है बल्कि हर काम का मोल इस बात पर निर्भर करता है कि आप उसे कैसे देखते हैं. दून की सुधा पंवार ने इसी सोच को सच कर दिखाया.


देहरादून, (ब्यूरो): कोई भी काम छोटा और बड़ा नहीं होता है बल्कि हर काम का मोल इस बात पर निर्भर करता है कि आप उसे कैसे देखते हैं। दून की सुधा पंवार ने इसी सोच को सच कर दिखाया। हाल ही में 2 अक्टूबर को, जब स्वच्छ भारत मिशन के 10 साल पूरे होने के अवसर पर पीएम मोदी ने देशभर से स्वच्छता नायकों को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में स्वच्छ भारत दिवस कार्यक्रम शामिल होने के लिए बुलाया तो दून की सुधा भी उनमें से एक थीं। सुधा ने न केवल दून के अलग-अलग हिस्सों को कचरा मुक्त करने का संकल्प लिया, बल्कि समाज की परवाह किए बिना इसे पूरा भी किया। और उन्होंने पर्यावरण सखी से सम्मान तक का बड़ा सफर तय किया।वेस्ट वारियर से पर्यावरण सखी तक
सुधा पंवार ने 2023 में वेस्ट वारियर के साथ जुड़ कर अपना सफर शुरू किया। अपने छोटे-से प्रयास से उन्होंने पर्यावरण की बेहतरी के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया। सुधा ने घर-घर जाकर कूड़ा उठाने का काम शुरू किया। उनका काम केवल एक साल में इतना बड़ा और महत्वपूर्ण बन गया कि उन्हें पीएम मोदी से मिलने का मौका मिला। लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था, सुधा बताती हैं कि जब उन्होंने ये काम शुरू किया तो लोग ताने मारते थे। उन्हें कहा गया, तुम पढ़ी-लिखी हो, अच्छे परिवार से हो, तो कोई और काम क्यों नहीं करतीं। लेकिन सुधा के लिए ये काम सिर्फ कूड़ा उठाने तक सीमित नहीं था, बल्कि उनके पास एक बड़ा मकसद था अपने समाज को स्वच्छ और स्वस्थ बनाने का। उनका कहना है कि मैं कूड़ा उठाने का काम इसलिए नहीं कर रही कि मुझे और कुछ नहीं आता, बल्कि इसलिए कि हम सबको अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। जो कचरा हम फैलाते हैं, उसे हमें ही साफ करना होगा।लोगों की बदलती सोच


सुधा का कहना है कि कई लोग प्लास्टिक और कचरा जलाकर सोचते हैं कि उन्होंने सफाई कर दी, लेकिन उन्हें नहीं पता कि ये तरीका पर्यावरण के लिए कितना खतरनाक है। सुधा ने खुद से ठान लिया था कि वो लोगों की बातों की परवाह नहीं करेंगी। अगर वो दूसरों की सोच से रुक जातीं, तो कुछ भी नहीं बदलता। सुधा मानती हैं कि अगर हम सभी दूसरों की बातों में आकर हार मान लें, तो ये सबका नुकसान है। आज जब सुधा पीएम मोदी से सम्मानित होकर लौटी हैं, तो उनके आस-पास के लोगों की सोच में भी बदलाव देखने को मिला है। वह बताती है की पहले जो लोग उन्हें कूड़ा उठाने वाले काम के लिए नीची नजरों से देखते थे, आज वही लोग उनके पास आकर उन्हें बधाई देते हैं। सुधा को सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि आज उन लोगों ने समझा कि कूड़ा उठाने का काम कोई शर्म की बात नहीं, बल्कि हम सब के लिए बेहद जरूरी है। बेहतर भविष्य बनाना मकसद सुधा इस समय चार महिलाओं के साथ मिलकर काम कर रही है वो इ-रिक्शा चलाकर घर-घर कूड़ा इकठा करने का काम कर रही हैं। उनका कहना है कि अब उन्हें इस बात की परवाह नहीं कि लोग उनके बारे में क्या सोचते हैं या किस नजर से देखते हैं। जो लोग उनके काम की अहमियत समझते हैं, वे उनकी तारीफ भी करते हैं। सुधा को उम्मीद है कि एक दिन बाकी लोग भी उनके काम का महत्व समझेंगे। उनका उद्देश्य आने वाली पीढिय़ों को कचरा और बीमारियों से मुक्त एक स्वच्छ और स्वस्थ माहौल देना है, ताकि उन्हें एक बेहतर भविष्य मिल सके।

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Posted By: Inextlive