- 422 एकल महिलाएं की गईं स्टेट में चिन्हित

- 17 एनजीओ ने मिलकर किया सर्वे

- 13 जिलों में सर्वे कर रिपोर्ट तैयार

देहरादून

एकल महिलाओं को लेकर महिला आयोग द्वारा कई एनजीओज के साथ वर्कशॉप में चिंतन किया गया। राज्यभर में 422 एकल महिलाएं हैं, जिनकी आर्थिकी और सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा हुई। ऐसे केसेज को स्टडी कर महिला-नीति में प्राथमिकता दी जाएगी। 17 एनजीओ ने स्टेट में एकल महिलाओं पर सर्वे किया, जिसकी फाइंडिंग्स पर भी डिस्कशन हुआ।

वर्कशॉप में सर्वे फाइंडिंग्स

तहसील चौक के पास एक होटल में महिला आयोग की ओर से वर्कशॉप आयोजित की गई। इस मौके पर एक्शनेड और अर्पण संस्था की ओर से एकल महिलाओं पर सर्वे रिपोर्ट सामने रखी गई। साथ ही आयोग को बताया गया कि 13 जिलों में 15 अलग-अलग एनजीओ ने सर्वे में हेल्प की। बताया गया कि राज्यभर में 422 एकल महिलाएं हैं। जिनमें विडो, डाइवोर्सी, परित्यक्ता सहित ऐसी महिलाएं शामिल हैं जिनके पति सालों से लापता है।

न पति का पता, न मदद

इस मौके पर महिला आयोग की अध्यक्ष विजया बड़थ्वाल ने इस बात पर चिंता जताई कि जिनके पति वर्षो से लापता है। ऐसी महिलाओं के लिए भी कोई सरकारी योजना हो। जिससे इनके बच्चे पल सकें। ये आर्थिक रूप से मजबूत हो सकें। ऐसी महिलाओं ने तो यहां तक कहा कि उनके पति को मृत श्रेणी में ही माना जाए और उन्हें विधवा पेंशन दिलाई जाए। महिला आयोग की सचिव कामिनी गुप्ता ने कहा कि एकल महिलाओं को समाज में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। उनकी आर्थिक स्थिति और सुरक्षा जैसे मुददों को महिला नीति में शामिल करने का सुझाव राज्य सरकार को भेजा जाएगा।

जिलेवार एकल महिलाए

देहरादून- 55

अल्मोड़ा- 38

बागेश्वर- 23

चमोली- 24

चंपावत- 20

हरिद्वार- 20

नैनीताल- 52

पौड़ी गढ़वाल- 47

पिथौरागढ़- 39

रुद्रप्रयाग-22

टिहरी - 11

उधमसिंह नगर- 61

उत्तरकाशी- 10

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टोटल- 422

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इन रामी बौराणी को पति का इंतजार

गढ़वाल में प्रचलित रामी-बौराणी लोक कथा गीत के बारे में हर किसी ने सुना होगा। रामी के 12 साल के संघर्ष के बाद उसका पति लौट आया था। लेकिन, उत्तराखंड में आज भी ऐसी कई रामी-बौराणी हैं। जो अपने पति का इंतजार कर रही हैं। 12 से 14 साल बीतने के बाद भी इनके पति वापस नहीं लौटे हैं। बावजूद इसके ये पति के इंतजार में हैं। बच्चे बड़े हो गए हैं। कोई ससुर तो कोई अपनी मां के साथ जिंदगी गुजार रही हैं। इनकी न आर्थिक स्थिति सही है न ये स्वयं को सुरक्षित महसूस करती हैं। ऐसी महिलाओं ने खुद बयां की अपनी पीड़ा

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14 साल से पति नहीं लौटा

ब्रहम गांव मुनस्यारी की लीला देवी ससुर के साथ रह रही हैं। लीला ने बताया कि पति 14 साल पहले पति घर से धारचूला के लिए निकले थे। पांच दिन बाद फोन कर बताया काशीपुर में हैं लेकिन उसके बाद से न फोन लगा न वो खुद आए। हर जगह उन्हें ढूंढा लेकिन कहीं नहीं मिले। ससुर की मदद से अपने दोनों बच्चों को पाल रही हूं। लेकिन उनके बाद बच्चों के पोषण और भविष्य के लिए कुछ नहीं रहेगा।

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12 साल से पति लापता

देवल गांव धारचूला निवासी रेखा देवी ने बताया कि पति ने 12 साल पहले जंगल जाने की बात कही और वह वापस नहीं लौटे। बताया कि उन्होंने पति की तलाश जंगल सहित उनकी पूरी रिश्तेदारी में कर डाली लेकिन कहीं पति का पता नहीं चला। आखिरकार वह अपने मायके आ गई। खुद घरों में काम करने लगी और तीन बच्चों को पाल रही हैं। कहा कि बेटी पुलिस ऑफिसर बनना चाहती है लेकिन हमारी आर्थिक स्थिति को देखते हुए कहती है मैं खुद मजदूरी कर अपना सपना पूरा कर लूंगी।

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इनकी भी कम नहीं दिक्कत

पति है फिर भी अकेली

मेहूंवाला निवासी सुषमा बिष्ट ने बताया कि पति के होते हुए भी वह अकेली है क्योंकि पति ने सात साल पहले हांगकांग जाकर दूसरी शादी कर ली। जैसे ही उसको खबर लगी तो सास-ससुर ने उसको मायके जाने को कह दिया। बताया कि पति ने धोखा-धड़ी से एक तरफा तलाक देने की कोशिश की जिसे सीजीएम कोर्ट से खारिज करवा दिया। पति की तो कोई खोज-खबर नहीं है लेकिन अपनी नौ साल की बेटी के लिए संघर्ष कर रही हैं। उसको उसके ही घर में एक्सेप्ट नहीं किया जा रहा है।

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अलग जाति का मिलता है ताना

गरूण गांव बागेश्वर निवासी हीरा देवी ने बताया कि दस साल पहले पति की डेथ हो गई थी। वो ससुराल वालों की जाति की नहीं है। ऐसे में उसको अलग जाति का होने का ताना मिलता है। आस-पड़ोस के लोग उसको एक्सेप्ट नहीं कर पाए और अब बच्चों पर भी इसका असर पड़ रहा है। बताया कि अकेली महिला को हर ओर से सुनना पड़ता है। यही नहीं ससुराल वालों ने घर को पड़ोसियों को बेच दिया.अपने ही घर को पाने के लिए अब केस लड़ रही हैं।

Posted By: Inextlive