बिना विकल्प सिंगल यूज प्लास्टिक बैन
देहरादून ब्यूरो। एसडीसी फाउंडेशन दून सहित पूरे राज्य में सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर लगातार सक्रिय रहा है और देहरादून स्मार्ट सिटी लिमिटेड व नगर निगम के साथ मिलकर सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर कई अभियानों चला चुका है। फाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल कहते हैं कि इस बैन से कुछ दिन अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो सकती है। स्ट्रॉ से पिये जाने वाले पेय पदार्थों का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि प्लास्टिक की जगह अब स्ट्रॉ किस चीज की बनेगी, ये तय नहीं है।
कंपनियों का करनी होगी व्यवस्था
वे कहते हैं कि पॉलीथिन कैरी बैग बैन किया गया है। इसका विकल्प कपड़े का थैला हो सकता है, लेकिन स्ट्रॉ जैसी चीजों का विकल्प कंपनियों को खुद ढूंढना होगा। वे कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर सिंगल यूज प्लास्टिक के कई आइटम्स पहली जुलाई से बैन किये जाने का नोटिफिकेशन कई महीने पहले हो चुका है। ऐसे में कंपनियों को अब तक विकल्प के साथ अपने प्रोडक्ट उतार देने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
बिना विकल्प कैसे होगा बैन
वेस्ट वॉरियर संस्थान के नवीन सडाना कहते हैं कि सिंगल यूज प्लास्टिक के कई आइटम्स बिना विकल्प दिये बैन करना कई सवाल खड़े करता है। प्लास्टिक के ग्लास, चम्मच, कांटे, चाकू जैसे आइटम्स बैन किये जा रहे हैं। लेकिन इससे पहले इनके विकल्प पर ध्यान दिया जाना चाहिए था। सरकार को चाहिए कि जो लोग इस तरह के आइटम्स बना रहे हैं, उन्हें लकड़ी, पेपर या गन्ने के बुरादे जैसी चीजों से ये आइटम्स बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। उन्हें उनकी मशीनें आदि कन्वर्ट करने के लिए लोन और सब्सिडी दी जाती तो यह काम आसान हो जाता। इन सब आइटम्स के एक झटके में बंद हो जाने से कई लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ेगा। यदि पहले ही इन्हें वैकल्पिक चीजें बनाने के लिए सहयोग दिया जाता तो चीजें ज्यादा स्मूदली लागू हो सकती थी।
इस बार ज्यादा उम्मीदें
जानकार मानते हैं कि इससे पहले जब भी सिंगल यूज प्लास्टिक बैन करने की बातें की जाती थी, वे स्थानीय स्तर पर होती थी। राज्य सरकारें या फिर स्थानीय निकाय स्तर पर ऐसे प्रयास किये जाते थे। इस बार केंद्र सरकार की ओर से ये कदम उठाया गया है। इन चीजों के प्रोडक्शन पर भी रोक लगाई गई है। पेट्रो कैमिकल कंपनियों को भी कहा गया है कि वे प्लास्टिक आइटम्स बनाने वाली कंपनियों को रॉ मेटेरियल न दें। इससे इस बार बैन ज्यादा असरकारक हो सकता है। विकल्प के लिए सरकार, कॉरपोरेट और आम लोगों को मिलकर काम करना चाहिए।