बादल फटने से हुई तबाही के निशान देहरादून की बांदल घाटी में दूर-दूर तक फैले हैं। आपदा से सबसे ज्यादा प्रभावित गांव सरखेत पहुंचने की सभी सड़कें टूट गई हैं। लोग जान जोखिम में डाल इस गांव तक पहुंच रहे हैं। फिलहाल बहुत जरूरी होने पर ही लोग सरखेत जा रहे हैं। डीजीपी अशोक कुमार भी संडे को सरखेत गांव के लिए निकले लेकिन गांव से करीब 200 मीटर पहले से ही उन्हें लौटना पड़ा। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट सरखेत गांव तक पहुंचने में सफल रहा। गांव में मातम पसरा हुआ है। 5 लोग अब भी मलबे में दबे हुए हैं। मलबा हटाने के लिए बड़ी पोकलैंड मशीनों की जरूरत है लेकिन फिलहाल मशीनों का गांव तक पहुंच पाना संभव नहीं है। गांव में हर किसी का नुकसान हुआ है। किसी का परिवार के सदस्यों को आपदा छीन गई तो किसी के दुधारू पशु बह गये। कई एकड़ खेती की जमीन बह गई।

देहरादून ब्यूरो। हालांकि आपदा के बाद से लगातार इसे सौंग नदी का आपदा कहा जा रहा है, लेकिन वास्तव में आपदा बांदल नदी में आई है, जो मालदेवता के पास सौंग नदी में मिलती है। इसी सौंग नदी पर एक पुल के साथ दो लोग बह गये थे। आपदा के निशान मालदेवता से पहले ही नजर आने लगते हैं। मालदेवता से आगे बढ़ते ही बांदल का विकराल रूप नजर आ रहा है। मलबा भर जाने से नदी का तल कई फुट ऊपर उठ गया है। चारों तरफ टूटे पेड़ नजर आ रहे हैं और बीच-बीच बहकर आये छोटे बड़े वाहन आधा दबे दिखाई दे रहे।

दो किमी पैदल फिर जोखिम
बांदल नदी के किनारे-किनारे किनारे चलते हुए नदी के दोनों तरफ दर्जनों रिजॉर्ट के अवशेष नजर आ रहे हैं। कुछ बह गये हैं और कुछ मलबे में धंसे हुए हैं। सरखेत से दो किमी पहले ही सड़कें टूट गई हैं। दो किमी तक मलबे के ढेरों से होकर पैदल जाया जा सकता है, लेकिन उसके बाद रास्ता नहीं है। स्थानीय लोग जान जोखिम में डालकर खतरनाक रास्ते से आ जा रहे हैं। लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए प्रशासन की ओर से कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

डीजीपी भी वापस लौटे
डीजीपी अशोक कुमार कई अन्य अधिकारियों के साथ सरखेत के लिए चले, लेकिन गांव के करीब 200 मीटर पहले ही उन्हें रुक जाना पड़ा। जिस जोखिम भरे रास्ते से स्थानीय लोग आवाजाही कर रहे थे, वहां से जाना संभव नहीं था। उन्हें वापस लौटना पड़ा। हालांकि दैनिक जागरण आई नेक्स्ट किसी तरह गांव तक पहुंचने में सफल रहा।

नहीं पहुंच पा रही मदद
हालांकि प्रशासन लगातार दावे कर रहा है कि सरखेत तक राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है, लेकिन ग्रामीणों ने बताया कि आने का रास्ता ही नहीं है तो राहत सामग्री कैसे आयेगी। पूरी तरह टूट चुके करीब 100 मीटर के पैच को बनाने के लिए जेसीबी मशीन लगाई गई है, लेकिन हार्ड रॉक होने के कारण सड़क बनाने के कई दिन लग सकते हैं।

शव तलाशना भी संभव नहीं
सरखेत में 5 लोग अब भी मलबे में दबे हैं, लेकिन मलबा हटाने के लिए पोकलैंड मशीनों की जरूरत है। रास्ता न होने के कारण फिलहाल मशीनों को वहां तक पहुंचाना मुश्किल है। फिलहाल एनडीआरएफ और एसडीआरएफ के कुछ जवान यहां नजर आ रहे हैं। प्राइमरी स्कूल की टीचर, जो घटना की रात मालदेवता में थी, उन्हें जबरन संडे को गांव में भेजा गया, वहां के फोटो खींचकर भेजने के लिए। टीचर एक छोटी बच्ची के साथ जान जोखिम में डालकर पहुंची।

प्रशासन का कोई आदमी नहीं है सर
सरखेत में एनडीआरएफ के एक जवान का वीडियो दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने उतारा है। जवान कहता हुआ सुना जा सकता है कि यहां चेन वाली जेसीबी चाहिए, इसके बिना बात नहीं बनेगी। गांव वाले कहते सुने जा सकते हैं कि पांच लोग दबे हैं और कोई यहां नहीं आया। जवान कह रहा है, यहां सरकारी एजेंसियों को कोई आदमी नहीं है। वीडियो में गांव वाले इस बात पर हामी भर रहे हैं।

Posted By: Inextlive