पंजाबी और गुजराती लैंग्वेज दून की पहली पसंद
देहरादून ब्यूरो: एमकेपी पीजी कॉलेज में 1995 में 13 क्षेत्रीय भाषाओं मेें लैंग्वेज का कोर्स शरू किया गया था। मकसद था कि लोग क्षेत्रीय भाषा सीखें, जिससे उन्हें दूसरे राज्यों में जाने पर कोई समस्या न हो और नौकरी मिलने में भी आसानी हो। यही वजह थी कि इसमें उम्र की कोई सीमा नहीं रखी गई थी। लेकिन, अब इन कोर्सेज के आगे चलने पर ब्रेक लग सकता है। कारण है इन कोर्सेज के लिए योग्य टीचर्स नहीं मिल रहे हैं। जिस वजह से कई कोर्सेज में बच्चे एडमिशन नहीं ले पा रहे हैं। बताया जा रहा है कि जो टीचर्स मिल भी रहे हैं तो वो सैलरी जानकर ज्वाइन नहीं कर रहे हैं। हालत ये हो गई है कि अब कुछ कोर्सेज में लोगों ने दाखिला लेना कम कर दिया है।
पंजाबी, गुजराती, नेपाली बनी पसंद
एकेपी पीजी कॉलेज में चलने वाले लैंग्वेज के इन कोर्स में कोई भी कोई भी दाखिला ले सकता है। एक ओर जहां कुछ कोर्सेज में स्टूडेंट्स की संख्या लगातार कम हो रही है। वहीं, दूसरी तरफ बताया जा रहा है कि लोग पंजाबी, गुजराती और नेपाली सीखने में अधिक रुचि ले रहे हंै। सबसे ज्यादा एडमिशन इन तीनों कोर्सेज में हो रहे हैं। वहीं, कुछ लोग सिंधी भी सीखते हैं। इसका फायदा ये होता है कि लोगों को दूसरे राज्यों में रोजगार मिलने में आसानी हो जाती है।
अपनी लैंग्वेज स्किल बढ़ाने के लिए कोई भी इन कोर्सेज में एडमिशन ले सकता है। आप चाहे किसी भी उम्र के हों, मेल हो या फीमेल और कहीं के भी रहने वाले हों। इन कोर्सेज में दाखिला लेकर कोई भी नई लैंग्वेज सीख सकता है। बशर्ते कि आप 12वीं पास होने चाहिए। इन कोर्सेज की समयावधि एक साल की रहती है, जो जुलाई से शुरू होकर अगले साल मई में खत्म होती है। जिसके बाद एग्जाम होता है और पास होने पर सर्टिफिकेट दिया जाता है। नौकरीपेशा लोगों की सुविधा को देखते हुए इन कोर्सेज के क्लासेज की टाइमिंग शाम 5 बजे से 6 बजे तक रखी गई है।
कोरोना के बाद कम हुए स्टूडेंट्स
कोरोना की मार हर सेक्टर पर पड़ी है। उस दौरान कई लोगों के बिजनेस बंद हो गए थे और कई लोगों की नौकरियां तक छूट गईं। इसका असर स्कूलों और स्टूडेंट्स की पढ़ाई पर भी पड़ा। एमकेपी पीजी कॉलेज में जहां कोरोना से पहले तक लैंग्वेज कोर्सेज में लोग अच्छी खासी संख्या में दाखिला लेते थे। वहीं कोरोना के बाद से इसमें गिरावट दर्ज की गई है और लोगों का रुझान कम हो रहा है। स्थिति ये है कि अब मुश्किल से हर साल 30 से 40 ही एडमिशन हो पाते हैं।
एमकेपी पीजी कॉलेज कई सालों से क्षेत्रिय भाषा का कोर्स का करवाता है। अब तक कई लोगों ने क्षेत्रीय भाषाओं में कोर्स पूरा करके सर्टिफिकेट हासिल कर चुके हैं। बताया जा रहा है कि कॉलेज परिसर में कुछ क्लासेज तो रेगुलर चलती हैं लेकिन कुछ कोर्स में टीचर्स न मिलने से सिर्फ नौ भाषाओं में ही कोर्स चल रहे हैं। वहीं, चार कोर्स ऐसे हैं जिनमें टीचर्स नहीं हैं। जिस कारण ये पद खाली पड़े हुए हैं। इसमें कन्नड़, कश्मीरी, तेलगु और मराठी के कोर्स शामिल हैं। जानकारी के अनुसार समय-समय पर इन कोर्सेज के टीचर्स को ढूंढने के एडवरटाइजमेंट जारी भी किए जाते हैं। लेकिन फिर भी इन कोर्सेज में टीचर्स नहीं मिल पा रहे हैं्। जिसका एक कारण टीचर्स की सैलरी कम होना भी बताया जा रहा है। जानकारी के अनुसार लैंग्वेज कोर्स पढ़ाने वाले टीचर्स को हर महीने सिर्फ एक हजार रुपये सैलरी के रूप में मिलते हैं। जिस वजह से भी कई टीचर्स दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।
इन जगहों पर मिल सकती है जॉब
मीडिया
प्राइवेट कंपनी
मेडिकल
लीगल
टेक्निकल
हेल्थकेयर
एजुकेशन
फार्मास्यूटिकल
फाइनेंस
रियल एस्टेट
गवर्नमेंट डिपार्टमेंट्स
डिफेंस इन भाषाओं में कराया जाता है कोर्स
-तमिल
-तेलुगू
-कन्नड़
-बांग्ला
-उड़िया
-गुजराती
-मराठी
-पंजाबी
-सिंधी
-कश्मीरी
-असमिया
-नेपाली
-मलयालम इस समय चल रहे हैं ये कोर्स
-गुजराती
-असमिया
-पंजाबी
-मलयालम
-तमिल
-नेपाली
-सिंधी
-उड़िया
-बांग्ला इन कोर्सेज में नहीं हैं टीचर्स कन्नड़
कश्मीरी
तेलुगू
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