सहस्रधारा में गंधक का पानी अब पुरानी बात हो गई है. बता दें कि सबसे दून ही नहीं प्रदेश का सबसे फेवरेट पिकनिक स्पॉट सहस्रधारा को वाटर टूरिज्म से पहले गंधक के पानी के लिए जाना जाता था.

देहरादून,( ब्यूरो): सहस्रधारा में गंधक का पानी अब पुरानी बात हो गई है। बता दें कि सबसे दून ही नहीं प्रदेश का सबसे फेवरेट पिकनिक स्पॉट सहस्रधारा को वाटर टूरिज्म से पहले गंधक के पानी के लिए जाना जाता था। जानकार बताते हैं कि गंधकयुक्त पानी के शरीर में स्पर्श मात्र से ही चर्म रोग (एग्जिमा) व एलर्जी गायब हो जाती थी। यह बताते हैं कि जिस झरने में गंधक का पानी गिरता था वहां पर ब्लैक स्पॉट बन गया था, लेकिन आज न झरना रहा और न ही न गंधक की पावर का असर। इसकी वजह यह है कि सरकार ने संरक्षण के बजाय इस पानी को पाइप लाइन के जरिए एक हौज में नहाने के लिए छोड़ दिया।

खत्म हो गया महत्व
स्थानीय लोग बताते हैं कि जब से गंधक के पानी को हौज में बांध दिया तब से उसके सारे गुण गायब हो गए। महत्व खत्म होने के बाद अब इस जगह पर लोग सामान्य तौर पर नहाते हैं। एक्सपट्र्स का भी कहना है कि गंधक के पानी के संरक्षण के लिए

कभी बहता था चमत्कारी पानी
जानकार दावा करते हैं कि सहस्रधारा के झरनों से गिरने वाला गंधकयुक्त पानी कभी एग्जिमा और एलर्जी सरीखे रोग दूर हुआ करते थे। औषधीय गुणों से भरा गंधक पीले रंग का रसायन होता है, जिसे त्वचा विकारों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। बाजार में इसकी हर्बल दवाएं और मिश्रित लोशन उपलब्ध हैं। गंधक यानी सल्फर स्किन रोगों को दूर करने के लिए अच्छा माना जाता है। लोग मुंहासे, फुंसी, फोड़े आदि से परेशान होने पर सीधे सहस्रधारा पहुंचते थे, लेकिन धीरे-धीरे महत्व खत्म होने पर लोग गंधक के पानी भूलते जा रहे हैं।

हजारों टूरिस्ट आते हैं रोजाना यहां
देहरादून का मशहूर टूरिस्ट प्लेस सहस्रधारा अपनी सुंदरता, रोमांच और आध्यात्म के चलते हर साल हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है। गर्मियों के दिनों में यहां देश-विदेश से पर्यटकों की भीड़ उमड़ पड़ती है।

कई बीमारियां होती है ठीक
यहां चूना पत्थर के स्टैलेक्टाइट्स से पानी टपकता है, जो इसे सल्फर स्प्रिंग्स में बदल देता है। सहस्रधारा में स्नान करना शुभ माना जाता है, क्योंकि यहां के पानी में ऐसे औषधीय गुण है, जो मांसपेशियों में दर्द, खराब रक्त परिसंचरण, मुंहासे और यहां तक कि गठिया जैसी बीमारियों से पीडि़त व्यक्ति को भी ठीक कर सकते हंै। अभी भी कुछ लोग तो सिर्फ इस औषधीय पानी की तलाश में यहां पहुंचते हैं।

नेचुरल ही रहने दें सोर्स
डीबीएस पीजी कॉलेज के भूगर्भ विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ। दीपक भट्ट का कहना है कि नेचुरल सोर्स को हमेशा नेचुरल ही रखना चाहिए। इसी आर्टीफीशियल नहीं करना चाहिए। इससे उसके नेचुरल स्वरूप तो बदलता ही स्वभाव में परिर्वतन आ जाता है। इसके कंकरीटिंग से पहले जियोलॉजिस्ट और पर्यावरण एक्सपर्ट से राय ली जानी चाहिए थी। कंक्रीटिंग के चलते फॉल्ट मैन बाउंड्री थ्रस्ट के कारण जियो टेक्नीक एक्टिविटी यानि स्प्रिंग में डिसटर्बेंस आ जाते हैं। इसका इम्पैक्ट यह होता है कि स्प्रिंग धीरे-धीरे अस्तित्व खो देती है। स्रोत को नेचुरली ज्वाइंट बंद करना किसी भी तरह से ठीक नहीं है। इसे कच्चा ही रखा जाना चाहिए। मिट्टी से ही उसमें गुण आते हैं। आर्टीफीशियल तरीके इसमें प्रभाव डालते हैं।


गंधक का पानी कई औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है। नुचुरल स्रोत को हमेशा कच्चा रखा जाना चाहिए। मिट्टी के कई तत्व मिक्स होने से इसमें कई और गुण शामिल हो जाते हैं। आर्टीफीशियल करने से उसका अस्तित्व खत्म होने लगता है।
दीपक भट्ट, जियोलॉजिस्ट, देहरादून

यह पर्यटक स्थल गुरु द्रोणाचार्य कि तप स्थली है। यहां पर सहस्रधारा का उद्गम द्रोणाचार्य के बाण चलाने पर हुआ है। यहां एक धारा गंधक के पानी की भी है, जो अस्तित्व खोती जा रही है। इसके संरक्षण के लिए सरकार को एक्सपर्ट के साथ रायशुमारी करनी चाहिए।
मुरारी चमोली

सहस्रधारा में एक ऐसी जल धारा है जिसमें यदि कोई नहाता है या पीता है तो उसका पुराने से पुराना चर्म रोग खत्म हो जाता है। केवल चर्म ही नहीं एलर्जी, गठिया जैसी बीमारियों को भी इससे खत्म हो जाती है। जब से हौज बनाया तब से इसका महत्व ही चला गया।
बलवीर चौहान

सहस्रधारा में सैकड़ों जल धाराएं थी, जो धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर पहुंच रही है। यहां लगातार हो रहे कंक्रीटिंग के अनियोजित निर्माण से जल धाराएं डायवर्ट हो रही है। टूरिस्ट यहां झरने देखने आते हैं यही नहीं रहेंगे तो औचित्य ही खत्म हो जाएगा।
मुकेश नेगी

dehradun@inext.co.in

Posted By: Inextlive