मुहल्लों में आमतौर पर पार्क के लिए जमीन छोड़ दी जाती है। यह इसलिए कि वहां पेड़-पौधे लगाकर बैठने के लिए बेंच आदि की व्यवस्था कर बुजुर्गों को सुबह-शाम टहलने की व्यवस्था की जा सके। छोटे-छोटे पार्कों में भी एक-दो छोटे झूले इसलिए लगाये जाते हैं ताकि बच्चे वहां खेल सकें लेकिन देहरादून में कई जगहों पर पार्क के लिए छोड़ी गई ऐसी जमीनों पर टाइल्स डालकर बाकायदा वहां गाड़ियां पार्क करने की व्यवस्था कर दी गई है। यह नहीं मामूली में नगर निगम की इन जमीनों पर पार्किंग के लिए कोई फीस दी जाती है या नहीं।

देहरादून (ब्यूरो)। सिटी में बताये गये 200 पार्कों को तलाशने में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट को पटेलनगर की गलियों में भटकते हुए एक जगह करीब 200 स्क्वॉयर मीटर खाली जमीन नजर आई। इस जमीन पर टाइल्स लगाई गई हैं और उसमें करीब दर्जनभर कारें पार्क हैं। बताया गया कि यह पार्क की जमीन है। इस जमीन के साथ ही तत्कालीन विधायक के नाम वाला एक बोर्ड भी लगा हुआ है, जिस पर इस जमीन की विकसित करने संबंधी बोर्ड लगा हुआ है। यानी कि पार्क की जमीन में जान-बूझकर पार्किंग में तब्दील किया गया है।

कुछ लोगों को ही मिल रहा लाभ
खास बात यह है कि पूरे मोहल्ले के बुजुर्ग और बच्चे जिस पार्क का लाभ उठा सकते थे, उसे पार्किंग बनाकर कुछ लोगों को ही लाभ मिल पा रहा है। पार्क के आसपास के कुछ घरों की गाड़ियां ही यहां पार्क की जा सकती हैं, बाकी घरों के कारें घर के बाहर पार्क पर ही खड़ी होती हैं। देहरादून में मोहल्लों में कारें आमतौर घर के बाहर की पार्क की जाती हैं। बहुत कम घरों में कार खड़ी करने की व्यवस्था है।

एक गमला तक नहीं
पार्क की जिस जमीन पर पेड़-पौधे लगाकर उसे हरा-भरा बनाया जा सकता था, वहां एक गमला तक नहीं है और न ही इसके लिए जगह है। टाइल्स लगाने के बाद घास आदि उगना वैसे भी संभव नहीं है। आसपास के लोग भी इस व्यवस्था से संतुष्ट हैं। इस तरह के जमीन नगर निगम के रिकॉर्ड में पार्क हैं या पार्किंग, यह बात खुद नगर निगम को भी पता नहीं है।

Posted By: Inextlive