राजधानी दून शहर को कंक्रीट में तब्दील होना कहें या फिर पर्यावरण के साथ छेड़छाड़। जो भी हो लेकिन दून के आस-पास वाले इलाकों में सांप दिख जाएं तो हो-हल्ला मच जा रहा है। सोशल मीडिया में फोटो वायरल भी हो रही हंै। यहां तक कि फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के कंट्रोल रूम में फोन की घंटियां बजनी शुरू हो जाती हैं। इधर साइंटिस्ट सांपों की हैबिट व हैबीटेट में बदलाव होने का मुख्य कारण लगातार शहर को विकसित होना बता रहे हैं। जिस वजह से उनका मूवमेंट शहरों व गली-मोहल्लों की ओर होते जा रहा है।

देहरादून, ब्यूरो:
डब्ल्यूआईआई के साइंटिस्ट अभिजीत दास के मुताबिक उत्तराखंड में सांपों की 36 स्पेसीज पाई जाती हैं। इनमें करीब 8 स्पेसीज ही ऐसी हैं, जो जहरीली हैं। लेकिन, लोगों को इस बावत कोई जानकारी नहीं है। जिसके लिए जागरूकता की जरूरत है। जिससे लोगों में हर सांप के जहरीले होने का हो-हल्ला न मचे। विशेषज्ञों के अनुसार जब जहरीले सांपों की पहचान होगी तो काफी हद तक न तो लोगों में डर का माहौल बना रहेगा और न ही सांपों को नुकसान पहुंच पाएगा। साइंटिस्ट अभिजीत दास बताते हैं कि सोशल मीडिया के दौर में सांप दिखने पर सांप की फोटो वायरल हो जाती है। कई बार ये बेहतर भी साबित हो रहा है। जिससे फॉरेस्ट की टीम मौके पर पहुंच जाती है और रेस्क्यू कर उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाता है। जिससे वे सांप बच जाते हैं।

चार सालों में 1214 फोन कॉल्स आए
फिलहाल, लोगों में सांपों को लेकर डर व भय का माहौल बन ही जाता है। 108 इमरजेंसी सेवा सर्विस मुख्यालय पर स्थापित फॉरेस्ट के कंट्रोल रूम में गत चार वर्षों में 1214 ऐसे फोन कॉल्स रिसीव हुए हैं, जो केवल सांपों से संबंधित रहे हैं। ये फोन कॉल्स दून शहर में तमाम इलाकों, गली-मोहल्लों में सांप के दिखाई देने पर रिसीव किए गए हैं। इधर, फॉरेस्ट हेडक्वार्टर क्यूआरटी टीम के मेंबर जितेंद्र बिष्ट के मुताबिक आजकल बरसात में हर रोज 5-6 फोन कॉल्स अकेले वन विभाग को रिसीव होते हैं। उनका कहना है कि बरसात में सांप ज्यादा मात्रा में दिखाई देते हैं। जिसके बाद इलाके के लोग फोन करना शुरू कर देते हैं।

रिसीव हुई फोन कॉल्स
2019-20---360
2020-21---441
2021-22---409
2022-23---1
कुल----1214


दून में मिलने वाली स्नेक स्पेसीज
-रेट स्नेक
-चैकर्ड
-ट्रिंकेट
-कॉमन क्रैथ
-किंग कोबरा
-कोबरा
-पायथन
-रॉक पायथन
-रसैल वाइपर

Posted By: Inextlive