जीनोम सीक्वेंसिंग- टास्क बड़ा, टूल कम
देहरादून (ब्यूरो)। कोरोना के नए वैरिएंट की जानकारी के लिए संक्रमित व्यक्ति की जीनोम सीक्वेंसिंग जरूरी है। इसके बाद ही कोरोना वैरिएंट को आइडेंटिफाई किया जा सकता है। लेकिन, जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए सिर्फ दून मेडिकल कॉलेज में ही लैब मौजूद है। पूरे प्रदेश के सैैंपल यहीं लाए जा रहे हैैं। फ्यूचर में अगर ज्यादा लोगों की जीनोम सीक्वेंसिंग की जरूरत पड़ी तो सिर्फ एक लैब में यह हो पाना संभव नहीं होगा। दून में बीते 21 नवंबर से जीनोम सीक्वेंसिंग स्टार्ट की गई थी।
जिलों से नहीं आ रहे सैैंपलओमिक्रॉन को लेकर प्रशासन व हेल्थ डिपार्टमेंट अलर्ट है। कई बार मीटिंग कर ओमिक्रॉन से बचाव को लेकर मंत्रणा की गई। सभी जिलों से सैंपल की डिमांड मांगी लेकिन, इसके बाद भी जिलों से जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए सैंपल नहीं आ रहे हैैं। ऐसे में जांच भी सीमित ही हो रही है।
अब तक 90 लोगों की आई रिपोर्ट
दून मेडिकल कॉलेज के अधिकारियों के अनुसार अब तक जीनोम सीक्वेंसिंग की 90 लोगों की रिपोर्ट मिल चुकी है। राहत की बात यह है कि अब तक किसी भी पेशेंट में ओमिक्रॉन वेरिएंट की मौजूदगी नहीं मिली है। सभी सैैंपल्स की जांच में केवल डेल्टा वेरिएंट की ही पुष्टि हुई है।
खास बात
- जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए एक बार में कम से कम 20 सैैंपल की जरूरत।
- एक प्लेट में 20 सैंपल को टेस्टिंग के लिए रखा जाता है एक साथ।
- रिपोर्ट आने में लगते हैैं 7 दिन।
- एक सैंपल की जांच में आता है 10 हजार रुपए का खर्चा।
- 2 लाख रुपए खर्च होता है एक प्लेट में।
कोरोना की आरटीपीसीआर रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद पॉजिटिव आए लोगों के सैंपल जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए भेजे जाते हैैं। सैैंपल को तीन से चार बार चेक करना होता है। बार-बार चेक करने से रिस्पॉन्स बेहतर मिलता है। 2 से 3 दिन इसकी प्रॉसेसिंग में लग जाते हैैं। इसके बाद प्रूफ रीडिंग की जाती है। डॉक्टर्स के मुताबिक करीब 7 दिन रिपोर्ट आने में लग जाते हैैं।