...एक थी रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना
-रिस्पना-बिंदाल नदी के डेवलपमेंट योजना पर 50 करोड़ खर्च करने के बाद भी योजना का अता-पता नहीं
- हवा-हवाई साबित हो रहे दावे, रिस्पना-बिंदाल ज्यों की त्यों, अफसर-नेता बदले, नहीं बदली तो नदी की सूरत
कहां खो गया रिवर फ्रंट
दोनों नदियां अतिक्रमण से घिरी हुई हैं। 100 मीटर तक चौड़ी नदियां कहीं पर 10 मीटर भी नहीं रह गई हैं। नदी के करीब 19 किमी। भाग के डेवलपमेंट के लिए एमडीडीए ने वर्ष 2010 में प्रोजेक्ट का ड्रोन सर्वे किया। तब करीब 750 करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार किया गया। पहले फेज में करीब 4 किमी। कार्य प्रस्तावित किया गया। योजना के तहत कुछ जगहों पर पुश्त लगाए गए। हालांकि ये पुश्ते अगले साल ही बरसात में बह गए। इसके बाद न प्रोजेक्ट का कहीं अता-पता है। अब यह प्रोजेक्ट बीते जमाने की बात सी लगती है। पब्लिक पूछ रही है कि आखिर योजना कहां चले गई है।
रिवर फ्र ंट डेवलपमेंट (आरएफडी) के तहत एमडीडीए ने पहले फेज में रिस्पना व बिंदाल नदी के 3.7 किलोमीटर हिस्से को डेवलप करना था। एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट के तहत आवेदन मागे थे। एनबीसीसी ने आवेदन किया था, लेकिन एमओयू के बाद बात आगे नहीं बढ़ पाई। रिस्पना की लंबाई 19 किलोमीटर है, जबकि बिंदाल नदी की लंबाई 17 किलोमीटर है। योजना के तहत पायलट प्रोजेक्ट की सफलता के बाद दोनों नदियों के शेष भाग को भी डेवलप किया जाना था।
होने थे ये डेवलपमेंट वर्क
- पहले फेज में रिस्पना में धोरण पुल से बाला सुंदरी मंदिर तक 1.2 किमी।
- बिंदाल में हरिद्वार बाईपास रोड से 2.5 किमी। में पायलट प्रोजेक्ट में होना था काम
- ग्रीनरी एरिया होने थे डेवलप
- सड़कों का निर्माण और साइकल ट्रैक
- रिवर के किनारे फुटपाथ, रिटेनिंग वॉल-चेक डैम, वर्षा जल निकासी की व्यवस्था
- आवासीय परियोजना, कमर्शियल और मिश्रित परियोजना
- पुल का निर्माण, मल्टी स्पेशलिटी हॉस्पिटल और थीम पार्क का होने थे निर्मित
- 30 साल के लिए किया जाना था प्रोजेक्ट कंपनी से एग्रीमेंट
जिस रिस्पना और बिंदाल नदी को एक दौर में सदानीरा कहा जाता था, वहां पानी की जगह गंदगी बह रही है। प्रदूषण के कारण ये नदियां मरणासन्न हालत में पहुंच चुकी हैं। रिस्पना और बिंदाल नदी को पुनर्जीवन देने के लिए करीब एक दशक पहले दून को जो ख्वाब दिखाए गए थे, वे सपने 10 इस साल बाद भी धरातल पर नहीं उतर पाए।
मेयर गए थे अहमदाबाद
ख्वाब को धरातल पर उतारने के लिए वर्ष 2010 में तत्कालीन महापौर विनोद चमोली ने एमडीडीए के कुछ अधिकारियों के साथ अहमदाबाद का दौरा कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। इसके कुछ समय बाद साबरमती रिवर फ्र ंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की टीम ने रमेश पोखरियाल निशंक की सरकार को अपना प्रेजेेंटेंशन भी दिया। इसके बाद हरीश रावत की सरकार में कुछ काम भी किए गए। हालांकि, बात लीपापोती से आगे नहीं बढ़ पाई। त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार में भी इस पर लंबी-चौड़ी कसरत की गई। साबरमती रिवर फ्र ंट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के साथ भी एमओयू किया गया था। इसके बाद भी अब तक प्रोजेक्ट पर काम शुरू नहीं हो पाया।
फरवरी 2018 में एमडीडीए ने रिस्पना-बिंदाल के 36 किलोमीटर हिस्से को एकमुश्त विकसित करने की जगह तय किया कि पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 3.7 किलोमीटर भाग पर रिवर फ्रंट का विकास करने का निर्णय लिया गया। योजना को 43 हेक्टेयर जमीन एमडीडीए को नियमानुसार हस्तांतरण न होने से 2019 में चीफ सेक्रेट्री की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया। लेकिन ज्यों का त्यों है। हवा-हवाई योजनाएं न बनाई जाए
शहर के विकास के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं में पब्लिक पार्टिसिपेशन होना चाहिए। इससे योजना मजबूती से आगे बढ़ती है। रिवर फ्रंट सरीखी हवा-हवाई योजनाएं नहीं बनाई जानी चाहिए। इससे पब्लिक के पैसे की बर्बादी के सिवाय और कुछ हासिल नहीं होता है।
अनूप नौटियाल, अध्यक्ष, एसडीसी फाउंडेशन यह सही है कि राजधानी दून का निर्माण जिस तेजी के साथ होना चाहिए, उसके अनुरूप नहीं हो रहा है। इसका मुख्य कारण विभागों द्वारा उलूल-जुलूल की योजनाएं बनाना है। योजनाएं पब्लिक को ध्यान में रखते हुए बनाई जानी चाहिए, ताकि उसे धरातल पर उतारने में समस्याओं का अंबार न लगे।
रविंद्र जुगरान, राज्य आंदोलनकारी
रिवर फ्रंट योजना पर लंबे समय से कार्य बंद है। फिलहाल मामले में शासन को निर्णय लेना है। उच्च स्तर से जो भी निर्णय मिलेंगे उसके अनुसार योजना को आगे बढ़ाया जाएगा।
सुनील कुमार, एक्सईएन, एमडीडीए
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